खतरे में जीना---


खतरे में जीना ही एक मात्र जीना है। खतरे में जो जीने से ड़रता है, वह जीना ही नहीं चाहता है। इस दुनियां में सत्‍य केवल उनका है, जो खतरों की चुनौती स्‍वीकार करते है। जो अनंत की यात्रा पर निकलते है, अज्ञात की यात्रा पर निकलते है। जो ज्ञात किनारों को छोड़ देते है और अपने सफीना को लेकर बिना किसी नक्‍शे के उस दूर की यात्रा पर निकल जाते है, जिसका कुछ पता नहीं है, ठिकाना नहीं है, हो भी, न हो भी, लेकिन उस दूर किनारा—पता नहीं, है भी या नहीं। लेकिन उस दूर किनारे की खोज का मजा इतना है की खोजी अगर सगर में भी डूब जाए, तो पहूंच जाता है, और जो इस किनारे पर बैठे रह जाते है, डरे-सहमे से, भयभीत से, वे किनारे पर ही बैठे रह जाते है। और सड़ते रहते है, उनकी जिंदगी केवल मौत है, क्‍योंकि वो डरते मौत से फिर उसे लांगगे कैसे, एक ऐसी भी जिंदगी है, जो मौत है, और एक ऐसी भी मौत है, जो जिंदगी है। चुन लो और साहास हो तो चल कर देख लो सत्‍य क्‍या है।

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