‘शत्रुघ्न सिन्‍हा:

ओशो: काले वातावरण में चमकता हुआ प्रकाश पुंज--
     ओशो साधारण व्‍यक्‍तियों के बीच एक असाधारण व्‍यक्‍तित्‍व है। असाधारण इसलिए कि उन्‍होंने अपनी शक्‍ति को न केवल पहचाना है बल्‍कि उसका विकास भी किया है। इस साधारण हाड़-मांस के शरीर को अपनी बुद्धि, तपस्‍या, ज्ञान, गुण, परिपक्‍वता, साधना, संयम, साहस इन सारी बातों के बल पर अपने आपको बिलकुल भिन्‍न कर दिया है। असाधारण व्यक्तित्व में परिवर्तित कर दिया है। साथ-साथ उन्‍होंने यह भी रास्‍ता दिखा दिया है कि मनुष्‍य अगर अपनी क्षमता को पहचाने, और रियाज़ करे तो अपनी शक्‍ति को पूर्ण विकसित कर सकता है। लोगों के संग रहते हुए भिन्‍न हो सकता है। ओशो ने जो पाया वह मनुष्‍य के लिए मुश्‍किल तो है; नामुमकिन नहीं।

      में दावे के साथ कह सकता हूं कि आज के इस काले वातावरण में ओशो ने केवल एक चमकती हुई सुनहरी किरण है बल्‍कि बहुत ही जबर्दस्‍त प्रकाश पुंज है। यह बात दूसरी है कि जो सम्‍हलकर न देखे उसकी आंखे चुंदियाँ जाती है। आंखे बंद हो जाती है। लेकिन अगर सम्‍हलकर देखें तो पूरा वातावरण दिव्‍य होगा। प्रकाशमय होगा। ओशो-वाणी ने केवल आपको अंधेरे से लड़ने से प्ररेणा देती है। बल्‍कि अंधेरे को बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से पार करने की शक्‍ति देती है।
      इनकी वाणी में कड़वा-मीठा सत्‍य है। सिर्फ कड़वा सत्‍य नहीं, कड़वा-मीठा सत्‍य। यह इस देश का दुर्भाग्‍य है कि जहां, बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों पर हमने श्रद्धा की वहां ओशो जैसे महर्षि को हमने यह कहकर टालने के कोशिश की कि ये अपने समय से पहले आ गए है। हालांकि यह तो हमारे लिए सौभाग्य होना चाहिए। कि यदि आनेवाले समय से पहले आ एक है तो हमारे लिए आगे का रास्‍ता बहुत ही सुगम होगा, सरल होगा, प्रकाशमय होगा। लेकिन प्रकाश से चुँधियाते हुए लोगों को आंखे खोलने में अभी वक्‍त लगेगा।
      यकीन नहीं होता कि आज ओशो शरीर से हमारे बीच नहीं है। और इसे मैं शुभ मानता हूं क्‍योंकि यकीन न होने से हम ओशो को उनकी वाणी में ढूंढते है, ओशो चिंतन में ढूंढते है। ओशो वह व्‍यक्‍तित्‍व है जिसे किसी मजहब के दायरे में नहीं बांधा जा सकता, किसी मुल्‍य की सरहद में नहीं रखा जा सकता। ये पूरे विश्‍व के है और कह सकते है कि इस जहां में और उस जहां की बीच की कड़ी का नाम ओशो है।
      ऐसा आदमी सदियों में ही शायद पैदा हुआ होगा। ओशो का सानी मुझे दूर-दूर तक नजर नहीं आता। वे हमारे बीच आए और झिझोड़ कर रख दिया हमें। उन्‍होंने हमें जगा दिया है। अब यह हमारे ऊपर है कि हम जागे रहे और आगे लोगों को जगाते रहें, नींद से उठाएं। वरना कई बार सब कुछ पाने के बाद, मंजिल के करीब आने के बाद भी हम थक जाते है, टूट जाते है।
      इस मुकद्दर की यह तस्‍वीर देखो
      डूबते जा रहे है हम देखो,
      और वो सामने किनारा है
      किनारा बिलकुल सामने है लेकिन अगर अभी भी हम नहीं समझे ओशो की, उनकी बातों के प्रवाह को देश-विदेश में, जन-जीवन में, विशेष कर युवा पीढ़ी की रग-रग में, कण-कण में नहीं डाला तो शायद यही होगा: मंजिल तो सामने होगी, दिखाई पड़ेगी लेकिन हम दूर होगें। नजदीक आगर भी डूब सकते है।
      ओशो ज्ञान के अथाह समुंदर है। कभी न खतम होने वाले ज्ञान रूपी समुंदर का दूसरा नाम ओशो है। मैं उनके विचारों का जबर्दस्‍त भक्‍त हूं। उनकी वाणी का, उनकी अदायगी का, उनके वक्‍तव्‍य का, कलाकार होने  के नाते मुरीद हूं। उनके बात करने का अंदाज, जो अच्‍छे-अच्‍छे अभिनेताओं में, यहां तक कि विश्‍व के कलाकारों में वह ‘’पॉज’’ वह अंतराल देने की कला नहीं है जो ओशो में है। बोलने में विनोद को कैसे पंक्‍चुएट करना, एक भी शब्‍द की पुनरूक्‍ति न करना। अपनी वाणी में जादू को ले आना साधारण वक्‍ता के सब की बात नहीं है। वे हजारों लोगों के बीच रहे हो, लेकिन लगता है कि एक-एक व्‍यक्‍ति से बात कर रहे है। उनकी बातें ऐसी होती है जैसे घर के अंदर ड्रॉईंग रूम में बैठकर बात चीज कर रहे है।
      काश हमारे राजनीतिज्ञ ओशो के भाषणों से कुछ सीखें। ये लोग लंबे-लंबे भाषणों से लोगों को बोर करते रहत है। उन्‍हें समझना चाहिए की श्रोताओं मे बच्‍चे भी होते है। औरतें भी होती है। उन सबकी समझ में आए इस तरह से बोलना चाहिए। यहीं तो बोलने की कला है। जो सब के ह्रदय में उतर जाये और आप को पता भी न चले। पर हम सब सोए हुए लोग नींद में ही बड़बड़ा रहे है, नींद में ही लोग सुन रहे है। ये कला कहां पा सकते है....प्रवचनों के दौरान वे कितनी लंबी कहानी सुनाए या मजाक को पेश करें। वापिस उसी बिंदू पर आ जाते है। जहां से छोड़ा था, इनके चंद कैसेट सुन लें, चंद कैसेट देख लें तो आपको किसी विश्‍व-विद्यालय में जाने की जरूरत नहीं है। ओशो स्‍वयं एक जीता-जागता विश्‍विद्यालय है।
      ओशो के प्रवचनों में मैंने नव रसों का सम्‍मिश्रण देखा। वे हंसा सकते है, रुला सकते है, वातावरण को गंभीर बना सकते है, उल्‍लास बना सकते है, अपनी बातों से झकझोर सकते है। ओशो की बातों में इतना जबर्दस्‍त चुंबक है कि वे महीनों नहीं सालों तक आपके दिलों-दिमाग पर छाए रहते है।
      ओशो ने अपना काम पुरा किया। उन्‍होंने हमे राह दिखा दी। अब यह हमारी जिम्‍मेदारी है कि हम उस राह पर चलें, उनके विचारों पर अमल करें। तो न केवल स्‍वयं को बलकि समाज को, देश को, विश्‍व को, स्‍वर्णिम बना सकते है। ओशो के पास पहुंचने का यही एक मार्ग है।
शत्रुघ्न सिन्‍हा
मशहूर फिल्‍मी कलाकार

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