ब्रदर्स कार्मोझोव—( ओशो की प्रिय पुस्‍तकें )

फ्योदोर दोस्तोव्सकी
      विश्‍व विख्‍यात रशियन उपन्‍यासकार फ्योदोर दोस्तोव्सकी की श्रेष्‍ठ रचना ब्रदर्स कार्मोझोव ओशो की दृष्‍टि में सर्वश्रेष्‍ठ तीन किताबों में से एक है। यह कहानी है बेइंतहा प्‍यार की, कत्‍ल की और आध्‍यात्‍मिक खोज की। यह कहानी वस्‍तुत: लेखक की अपनी खोज की कहानी है। उसकी खोज यह है कि सत्‍य क्‍या है। मनुष्‍य क्‍या चीज है, जीवन क्‍या है, ईश्‍वर क्‍या है, है या नहीं। इस उपन्‍यास के सशक्‍त चरित्र दोस्तोव्सकी की गहरी निगाह के प्रतीक है जो मनुष्‍य के अवचेतन की झाड़ियों में गहरी पैठती है। इस किताब के विषय में वह खुद कहता है कि ‘’अगर मैंने इस उपन्‍यास को पूरा कर लिया तो मैं प्रसन्‍नतापूर्वक विदा लुंगा। इसके द्वारा मैंने अपने आपको पूरी तरह अभिव्‍यक्‍त कर लिया है।

      यह कहानी बहती है फ्योदोर कार्मोझोव और उसके चार बेटों के अंतर्सबंधों के बीच उपन्‍यास का खलनायक है। यह अर्थपूर्ण है कि दोस्तोव्सकी उसे अपना नाम देता है। उसका सबसे छोटा बेटा जो कि नेक और भला है, सबका प्‍यारा है, इस उपन्‍यास का नायक है।
      फ्योदोर कार्मोझोव वैसा ही है जैसे कि खलनायक आम तौर पर चित्रित किये जाते है—कुरूप, लालची, थोथा, चालाक, भद्दा, सभी उससे नफरत करते है। दूसरे की भावनाओं के प्रति वह बिलकुल जड़ है। शराबखोरी और  व्‍यभिचार के बगैर ऐसे लोगों का चरित्र चित्रण पूरा नहीं होता। फ्योदोर में ये भी गुण है। फ्योदोर के तीन बेटे दो पत्‍नियों से है और चौथा बेटा अवैध है। चारों बेटे उससे घृणा करते है। हर एक के पास अपने पिता की हत्‍या करने का ठोस कारण है। दिमित्रि सबसे बड़ा बेटा अपने पिता की तरह कामुक है। उसकी मां ने उसके लिए जो छोटी सी जायदाद छोड़ी थी, उसे फ्योदोर हड़प कर लेता है। अपने ही बेटे से झूठे दस्‍तखत करवाकर। और बदले में सिर्फ थोड़ी पॉकेट मनी उसे देता है। इतना ही नहीं दिमित्रि जिन युवतियों से दोस्‍ती करता है उन सबको फ्योदोर अपने शिकंजे में फंसा लेता है। बाप बेटे के बीच पैसों के लिए, प्रेमिका के लिए निरंतर कलह चलती रहती है। दिमित्रि क्रोधी, फिजूलखर्च और हिंसक वृति का है। वह आये दिन अपने पिता को मार डालने की धमकियां देता रहता है।
      दूसरा बेटा स्‍मेरद्याकोव, जो कि अवैध है, फ्योदोर का बावर्ची और नौकर बनकर रहता है। वह थोड़ा सिरफिरा भी है। वह मानसिक दृष्‍टि से रूग्ण है।
      इवान तीसरा बेटा है जो कि बुद्धिजीवी कहलाता है, वह अपनी ही बौद्धिक आशंकाओं और संदेहों से घिरा, परेशान सा रहता है। उसे बीच-बीच में भ्रांतियों के झटके भी आते है। सब लोग उसे मानसिक रूप से असंतुलित मानते है।
      सबसे छोटा बेटा, जिसे नायक कहा जा सकता है, फ़क़ीराना ढंग का है। सज्‍जन गहन रूप से धार्मिक, प्रज्ञावान, सौम्‍य, करुणापूर्ण, अल्‍योशा सबकी आँख का तारा है। अत्‍यंत मानवीय और मृदुभाषी अल्‍योशा अपने पिता की क्रूरता और किये गये अपमान के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। अल्‍योशा का धार्मिक रुझान इतना प्रबल होता जाता है कि वह शहर में स्‍थित एक मठ के बुजुर्ग पादरी का शिष्‍य बन मठ में प्रवेश करता है। अल्‍योशा अपने गुरु से इतनी आत्‍मीयता से जुड़ा होता है कि गुरु की मृत्‍यु पर वह मठ छोड़ देता है। अंतत: फ्योदोर के बेटों में से एक बेटा उसकी हत्‍या कर देता है। स्‍वभावत: दिमित्रि पर लोगों का और पुलिस का शक जाता है क्‍योंकि वह सरे आम पिता का खून करने की धमकी दिया करता था। उसे गिरफ्तार कर दोषी भी ठहराया जाता है। लेकिन असली खूनी होता है स्‍मरद्याकोव—अवैध, मानसिक रूग्ण बेटा। वह फ्योदोर की हत्‍या कर खुद को भी समाप्‍त कर देता है, लेकिन मरने से पहले इवान के आग अपना गुनाह कबूल करता है। उन दिनों रशिया में किसी भी संगीन अपराध की सज़ा थी: साइबेरिया के बर्फ़ीले बियाबान में दिन काटना। उपन्‍यास आकस्‍मिक रूप से समाप्‍त होता है। दिमित्रि को साइबेरिया ले जाने की तैयारियाँ हो रही है। और वह चुपके से भाग निकलने की योजना बना रहा है। उधर अल्‍योशा स्‍कूल के बच्‍चों के आगे एक भाषण दे रहा है।
      मानवीय संबंधों के उलझे हुए जाल प्रकट करने के लिए दोस्तोव्सकी को 936 पन्‍ने भी कम मालूम हुए। वह इस कहानी को पूरा करने के लिए एक और उपन्‍यास लिखना चाहता था लेकिन उससे पहले ही उसकी अपनी कहानी खत्‍म हो गई।

किताब की झलक:
      आशय और भाषा शैली, दोनों पहलुओं में दोस्तोव्सकी लाजवाब है। कहीं-कहीं उसकी गद्य विशुद्ध बन जाता है। ओशो उसकी इसी विशेषता की प्रशंसा करते है।
      प्रस्‍तुत है दोस्तोव्सकी की भाषा शैली की एक झलक--
      ‘’तीस सेकंड तक अल्‍योशा शव पेटिका की और देखता रहा, ढँके हुए उस निश्‍चल शरीर की और जिसके सीने पर एक चिन्‍ह था और सिर पर क्रॉस बना हुआ ताज। उसे अभी-अभी मृत गुरु की आवाज सुनाई दी थी और वह आवाज अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी। अल्‍योशा कानों में परे प्राण लाकर सुन रहा था। शायद फिर एक बार.....अचानक वह चल पडा और कमरे से बाहर निकल आया।
      ‘’वह दरवाजे के बाहर नहीं रुका शीध्रता से आँगन में आ गया। उसकी आत्‍मा भावनाओं से छलक रही थी। और उसे लगा कि घुटन से मुक्‍त होकर घूमने के लिए उसे बहुत सा अवकाश चाहिए। सिर के ऊपर आसमान का विशाल गोल गुंबद था जिसमे चमकते हुए खामोश सितारे जड़ें थे। निश्‍चल, मद्धिम आकाशगंगा क्षितिज तक फैली हुई दो धाराओं में बंट गई थी। पूर्णतया स्तब्ध रात पृथ्‍वी से लिपटी हुई थी। सफेद मीनारों और सुनहरे गुंबद गहरे नीले आकाश के आगोश में चमक रहे थे। पतझर के शानदार फूल इमारतों से लिपटी हुई क्‍यारियों में भोर होने ते चैन की नींद ले रहे थे। धरती की खामोशी आसमान की खामोशी में घुल रही थी। और धरती का रहस्‍य सितारों के रहस्‍य में विलीन हो रहा था। खड़ा-खड़ा अल्योशा इस परिदृश्‍य को कुछ देर आंखों से पीता रहा, और फिर कटी घास की भांति जमीन पर गिर पडा।
      उसकी समझ  में नहीं आ रहा था कि वह जमीन को क्‍यों आलिंगन कर रहा था। उसे कितना ही चूमे, उसका मन भरता नहीं था। आखिर चूमनें की चाहत ही क्‍यों उठ रही थी। वह बार-बार जमीन को चूम रहा था। उसे आंसुओं से भिगो रहा था, कसमें खा रहा था, कि वह जमीन से हमेशा-हमेशा प्‍यार करेगा। उसकी आत्‍मा में एक स्‍वर गुंजा, ‘’आनंद के आंसुओं से धरती को सिंचो, और उन आंसुओं से प्रेम करो।‘’
      वह किस खातिर रो रहा था? वह मस्‍ती से रो रहा था। वे अनगिनत तारे तो अनंत दूरी से उस पर रोशनी बरसा रहे थे उनसे पुलकित होकर रो रहा था। वह अपनी मस्‍ती से जरा भी शर्मिंदा नहीं था। मानो परमात्‍मा के उन अनगिनत लोको के सूत्र उसकी आत्‍मा से आ मिले है। और उसकी आत्‍मा उन विभिन्‍न लोको के संस्‍पर्श से स्‍पंदित हो रही थी। उसके भीतर हर कुछ और हर किसी को क्षमा करने की ललक जाग उठी, साथ ही क्षमा मांगने की भी। उसकी आत्‍मा में आवाज गूँजती रही, गुनगुनाती रही। प्रतिपल वह सुस्‍पष्‍टता से, लगभग शारीरिक तल पर किसी यथार्थ, अविनाशी तत्‍व को महसूस करने लगा ऊपर फैले हुए आकाश की गोलाई की भांति जो उसकी आत्‍मा में प्रवेश कर रही थी।
      न जाने कोई एक ख्‍याल उसकी आत्‍मा में सदा के लिए बस गया था। जब वह जमीन पर गिरा तब कमजोर जवान था, जब उठा तब मजबूत निश्‍चयी योद्धा था। अब वह ज्ञानी था। उस मंत्रमुग्‍ध क्षण में वह ज्ञान घटा था। और उसके बाद अल्‍योशा कभी भी, एक बार भी उस क्षण को नहीं भूलेगा। वह बाद मै दृढ़ निश्‍चय से लरजते हुए स्‍वर में कहेगा। ‘’उस घड़ी कोई मेरी आत्‍मा में पाहुन बना था।‘’
      तीन दिन बाद, गुरु के आदेश के अनुसार उसने मठ को छोड़ दिया और बाहर की दुनिया में निकल पडा।‘’

ओशो का नज़रिया:
      फ्योदोर दोस्तोव्सकी अपनी कोटि आप है। वह जीनियस था। विश्‍व की भाषाओं में यदि दस सर्वश्रेष्‍ठ उपन्‍यासों को चुनना हो तो उन दस में तीन उपन्‍यास दोस्तोव्सकी के होंगे।
      मनुष्‍य और उसकी समस्‍याओं के विषय में उसकी अंतर्दृष्‍टि तुम्‍हारे तथाकथित मनशिचकित्‍सकों से कहीं अधिक गहरी थी। और उनमें वह महान रहस्यदर्शीयों की ऊँचाइयों छूता है। लेकिन वह खुद बीमार है। एक मनोवैज्ञानिक रूग्ण। उस पर करूणा करनी जरूरी है क्‍योंकि वह बहुत पीड़ा में जिया, असहनीय पीड़ा में। उसे कभी खुशी का एक क्षण नसीब नहीं हुआ। वह विशुद्ध दुःख और संत्रास था। फिर भी वह ऐसे उपन्‍यास लिख सका जो शायद विश्‍व साहित्‍य में सर्वश्रेष्‍ठ है। ब्रदर्स कार्मोझोव इतना महान है कि कोई बाईबिल, कुरान या गीता उसकी बराबरी नहीं कर सकते है।
      उसके बारे में यह आश्‍चर्यजनक तथ्‍य है: वह इतनी अद्भुत अंतदृष्‍टियां लिख रहा था मानों आविष्‍ट हो गया था। लेकिन वह खुद नर्क में जी रहा था। और वह नर्क उसने स्‍वय निर्मित क्या हुआ था। उसने कभी किसी से प्रेम नहीं किया। और न ही उससे किसी ने किया। उसे कभी पता नहीं चला कि हंसी जैसा भी कुछ होता है। उसकी गंभीरता रूग्‍णता बन चुकी थी। और भीतर भी उसके भीतर इतनी स्‍पष्‍टता थी। वह एक सुव्‍यवस्‍थित पागल था।
      उपन्‍यास का एक पात्र इवान कार्मोझोव एक अर्थपूर्ण वचन कहता है—शायद दोस्तोव्सकी उसके द्वारा बोल रहा है—‘’यदि ईश्‍वर होगा और मुझे मिल जायेगा तो मैं उसकी टिकट वापस कर दूँगा। और उससे कहूंगा ‘’तूने मुझसे पूछे बगैर मुझे जीवन में क्‍यों भेज दिया।? तुझे क्‍या हक है? मैं तेरी टिकट तुझे वापस करना चाहता हूं।‘’
      यह आत्‍मघाती मस्‍तिष्‍क है। उसने हमेशा यही लिखा है कि अस्‍तित्‍व निरर्थक हे, सांयेागिक है, और जीवन में कहीं कोई सार नहीं दिखाई देता।
      उसके निष्‍कर्ष गलत थे लेकिन आदमी बहुत प्रतिभाशाली था, अत्‍यंत सक्षम। अगर वह कुछ बातें गलत भी लिखता है तो इतनी सुंदरता से और कलात्‍मक ढंग से कि लाखों लोग उससे प्रभावित हुए।‘’
ओशो
दि गोल्‍डन प्‍यूचर

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