वासना से मैत्री--


मैं कोई स्‍वेच्‍छाचारी समाज की शिक्षा नहीं दे रहा हूँ। मैं निश्चित ही चाहता कि तुम मुक्‍त हो ही तब सकोगे, जब तुम वासना के प्रति सारा दुर्भाव छोड़ दो, सारी निंदा छोड़ दो। तुम वासना से मैत्री साधो। क्‍योंकि वासना तुम्‍हारी है, तुम वासना हो। दुर्भाव साधोगे, तो भीतर एक कलह शुरू हो जाएगी, शांति निर्मित नहीं होगी। लड़ों मत, लड़ोगे तो खंड़-खंड़ हो जाओगे, दो टुकड़ो में बंट जाओगे। और आदमी दो टुकड़ो में बंट गया है। वह आदमी परमात्‍मा को कभी न जान पाएगा। परमात्‍मा को वही जान पाता है जो एक हो गया है।

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