प्रिय मधु,
प्रेम । ‘कम्यून’ की खबर ह्रदय को पुलकित करती है।
बीज अंकुरित हो रहा है।
शीघ्र ही असंख्य आत्माएं उसके वृक्ष तले विश्राम पाएंगी।
वे लोग जल्दी ही इकट्ठे होंगे—जिनके लिए कि मैं आया हूं।
और तू उन सब की आतिथेय होने वाली है।
इसलिए, तैयार हो—अर्थात स्वयं को पूर्णतया शून्य कर ले।
क्योंकि, यह शून्यता ही आतिथेय, होस्ट बन सकती हे।
और तू उस और चल पड़ी है—नाचती, गाती, आनंदमग्न।
जैसे सरिता सागर की और जाती है।
और मैं खुश हूं।
सागर निकट है—बस दौड़....ओर दौड़।
रजनीश का प्रणाम
(15-10-1970)
(मां आनंद मधु ओशो की पहली संन्यासी थी, उनके पति इस कारण ओशो को छोड़ कर चले गये कि उनकी पत्नी को सन्यास पहले क्यों दिया। ओशो ने कहां में पहली सन्यासी औरत को ही बनाना चाहूँगा। ये श्री मोरारजी देसाई की भानजी है, जो बुद्धत्व को प्राप्त कर अभी भी ऋषि केश में रहती है।)
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