मेरा संदेश: उत्सहव, महोत्सभव—


मैं गीत सिखाता हूं, मैं संगीत सिखाता हूं, मेरा संदेश एक ही है: उत्‍सव-महोत्‍सव। और उत्‍सव-महोत्‍सव को सिद्धांत नहीं बनाया जा सकता, केवल जीवनचर्या हो सकती है यह। तुम्‍हारा जीवन की कह सकेगा। ओंठों से कहोगे, बात थोथी और झूठी हो जाएगी। प्राणों से कहनी होगी, श्‍वासों से कहनी होगी, और जहां आनंद है वहीं प्रेम है। और जहां प्रेम है वहीं परमात्‍मा है। मैं एक प्रेम का मंदिर बना रहा हूं। तुम धन्य भागी हो, उस मंदिर के बनाने में। तुम्‍हारे हाथों का सहारा है, तुम ईटें चुन रहे हो उस मंदिर की। तुम द्वार-दरवाजे बन रहे हो उस मंदिर के।।

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