अथातो भक्‍ति जिज्ञासा--भाग-2 ओशो

तीसरा प्रश्न :

जब कुंड़लिनी या सक्रिय ध्यान में ऊर्जा जाग्रत होती हैतो उसे नाचकर क्यों खत्म कर दिया जाता है


अरे कंजूस! तुम भारत के सच्चे प्रतिनिधि मालूम होते हो! यह भारतीय बुद्धि का इतिहास है। कुछ खर्च न हो जाए! बस खर्च न होबचा—बचाकर मर जाओ!
हर चीज में यह दृष्टि हैतुम इसे थोड़ा समझने की कोशिश करना।
यह भारत के बुनियादी रोगों में से एक है—कंजूसीकृपणता। कहीं खर्च न हो जाए। और मर जाओगे! तब यह कुंड़लिनी और यह ऊर्जा और यह सब पड़ा रह जाएगा। इस देश में अधिक लोग कब्जियत से परेशान हैं। डाक्टरों से पूछोवे भी यही कहते हैं। भारत जितना कब्जियत से परेशान हैदुनिया का कोई देश इतना कब्जियत से परेशान नहीं है। यह कब्जियत आध्यात्मिक है।
इसमें मनोविज्ञान है। हर चीज को पकड़ लो! मल—मूत्र को भी पकड़ लो! और अगर ज्यादा आगे बढ़ जाओतो मोरारजी जैसा पी जाओ उसे वापिस। वह भी कंजूसी का हिस्सा है। कहीं निकल न जाए! कोई सारतत्व खो न जाए! 'रि—साइक्लिंग'। फिर डाल दो भीतर फिर—फिर डालते रहो। उसको बिलकुल चूस लो। कुछ निकल न जाए! इसलिए तुम मल तक को पकड़ लेते हो भीतर उसको छोड़ते ही नहीं कुछ खर्चा हुआ जा रहा है। सड़ गये हो इसी में। इसलिए जीवन यहां फैल नहीं सकासिकुड़ गया। हर बात में एक कृपणता छा गयी।
तुम जिसको ब्रह्मचर्य कहते होमेरे देखेतुम्हारे सौ ब्रह्मचारियों में निन्यानबे सिर्फ कृपणता की वजह से ब्रह्मचर्य को स्वीकार कर लिये। कहीं वीर्य ऊर्जा खर्च न हो जाए! कंजूस हैं। एक ब्रह्मचर्य है जो आनंद से फलित होता हैब्रह्म के शान से फलित होता हैवह तो बात अलग। मगर जिनको तुम आमतौर से ब्रह्मचारी कहते होये ब्रह्मचारी सिर्फ कृपण हैंकंजूस हैं। इनका सिर्फ भाव इतना ही है कि कहीं कुछ खर्च न हो जाए। ये मरे जा रहे हैंहर चीज को रोक लो—और सब पड़ा रह जाएगा! तुम्हारा वीर्यतुम्हारी ऊर्जातुम्हारी कुंड़लिनी सब पड़ी रह जाएगी! सब मरघट पर जलेगी। और मजा यह है कि जो जितना रोकेगा उतना ही कम उसके पास ऊर्जा होगीइस विज्ञान को ठीक से खयाल में ले लेनाक्योंकि कुछ चीजें हैं जो बांटने से बढ़ती हैं और रोकने से घटती हैं।
परमात्मा तुम्हारे साधारण अर्थशास्त्र को नहीं मानता। ऐसा समझो कि एक कुआ हैउसमें तुम रोज पानी भर लेते हो ताजा—ताजातो नया ताजा पानी आ जाता हैझरनों से नया पानी आ रहा है। तुम अगर कुएं से पानी न भरोगेतो तुम यह मत समझना कि कुएं में पानी के झरने बहते रहेंगे और कुआ भरता जाएगा भरता जाएगा और एक दिन पूरा भर जाएगा। कुएं में उतना ही पानी रहेगा। फर्क इतना ही रहेगा अगर तुम भरते रहे तो ताजा पानी आता रहेगाकुएं का पानी जीवंत रहेगा। और अगर तुमने न भरातो कुएं का पानी सड़ जाएगामर जाएगाजहरीला हो जाएगा। और जो झरने कुएं को पानी दे सकते थेतुमने भरा ही नहींउन झरनों की कोई जरूरत नहीं रहीवे झरने भी धीरे— धीरे अवरुद्ध हो जाएंगे। उन पर पत्थर जम जाएंगेकीच जम जाएगीमिट्ठी जम जाएगीउनका बहाव बंद हो जाएगा। तुमने हत्या कर दी कुएं की।
मनुष्य एक कुआ है। जैसे हर कुआ सागर से जुड़ा हैनीचे झरनों सेदूर विराट सागर से जुड़ा हैजहां से सब झर—झर कर आ रहा हैऐसे ही मनुष्य भी कुआ है और परमात्मा के सागर से जुड़ा है। कंजूसी की यहां जरूरत ही नहीं है। लेकिन प्रेम में आदमी ड़रता है कि कहीं खर्चा न हो जाए। छोटे—मोटे आदमियों की तो बात छोड़ दोसिग्मंड़ फ्राँयड़ जैसा आदमी भी यह लिखता है कि बहुत लप्तेगें को प्रेम मत करना नहीं तो प्रेम की गहराई कम हो जाएगी। जैसे एक को प्रेम किया तो ठीकफिर दो को किया तो आधा— आधा बंट गयाफिर तीन को किया तो एक बटा तीन मिला एक—एक को। ऐसे पचास— सौ आदमियों के प्रेम में पड़ गये कि बस फैल गया सब। बहुत पतला हो जाएगागहराई न रह जाएगी।
फ्राँयड़ बिलकुल नासमझी की बात कह रहा है।
फ्राँयड़ यहूदी था। वह यहूदी कंजूसी उसके दिमाग में सवार है! तुम जितना प्रेम करोगेउतना ज्यादा तुम प्रेम पाओगे। उतना प्रेम करने की क्षमता बढेगी। उतनी प्रेम की कुशलता बढ़ेगी। और जितना तुम प्रेम लुटाते रहोगेउतना तुम पाओगे परमात्मा से नये— नये झरने फूट रहे हैं और प्रेम आता जाता है। दो और तुम्हारे पास ज्यादा होगा। रोको और तुम कृपण हो जाओगे और कंजूस हो जाओगे और सब मर जाएगासब सड़ जाएगा। और ध्यान रखनाजो चीज बड़ी आनंदपर्णू है बांटने मेंअगर रुक जाएसड़ जाएतो वही तुम्हारे लिए रोग का कारण बन जाती है। जिन लोगों ने प्रेम को रोक लिया हैउनका प्रेम ही रोग बन जाता हैकैंसर बन जाता है।
अब तुम आ गये हो यहां— भूल से आ गये। तुम गलत जगह आ गये। यहां मैं उलीचना सिखाता हूं। यहां मैं बांटना सिखाता हूं। यहां मैं खर्च करने का आनंद तुम्हें सिखाना चाहता हूं। और तुम पूछते होजब कुंड़लिनी या सक्रिय ध्यान में ऊर्जा जाग्रत होती है तो उसे नाचकर क्यों खत्म कर दिया जाता हैनाचने से ऊर्जा खत्म नहीं होती है। नाचने से ऊर्जा निखरती है। नाचने से ऊर्जा बंटती है। और जितनी बंटती हैउतनी तुम्हारे भीतर पैदा होती है। जितना सृजनात्मक व्यक्ति होता है उतना शक्तिशाली व्यक्ति होता है। तुमने अगर एक गीत गाया तो तुम दूसरा गीत गाने में समर्थ हो जाओगे। और दूसरा गीत पहले से ज्यादा गहरा होगा। फिर तुम तीसरा गीत गाने में समर्थ हो जाओगेवह उससे भी ज्यादा गहरा होगा। जैसे— जैसे गीत गाते जाओगे वैसे तुम पाओगे—नयी तले उघड़ने लगीनयी गहराइयां प्रकट होने लगींतुम्हारे भीतर नये आयाम छूने लगे।
लेकिन तुम डर से पहला ही गीत रोके बैठे हो कि कहीं गाया और कहीं गान की ऊर्जा खत्म हो गयीऔर कुंड़लिनी फिर सो गयीतो मारे गये। तो तुमको सिखाया गया है कि शक्ति जगाकर और बस पकड़े रहना भीतर उसको! पकड़े रख सकते होमगर वहीं अटके रह जाओगे। ये पकड़ने का भाव भी तो यही कह रहा है कि मैं संसार से अलगमैं अस्तित्व से अलगमुझे अपनी फिक्र करनी है। अलग हम हैं नहीं। 'त्वदीयं वस्तु गोविंद तुभ्‍यमेव समर्पये।उसीसे मिलता हैउसी को लौटा देते हैं। अब तुम ऐसा समझो कि गंगा अपने पानी को रोक लेकि ऐसे सागर में गिर जाऊंगी तो मारी गयी! सब पानी खत्म हो जाएगाऐसे रोज—रोज गिरती रही सतर में। ये जो करोड़ों—करोड़ों गैलन पानी रोज सतर में डाल रही हूं, खत्म हो जाएगा तो बस सूख जाऊंगी। बिलकुल रोक ले अपने पानी को। तो क्या परिणाम होगासड़ जाएगी।
सागर में देने से सड़ती नहीं। सागर में पानी उतर जाता हैफिर मेघ बन जाते हैं। फिर हिमालय पर बरस जाते हैंफिर गंगोत्री में बह आते हैंएक वर्तुल है। गंगा सागर को देती हैसागर गंगा को दे देता है। यहां तुम जितना दोगे उतना पाओगे। यहां देना पाने की कला है। नाचोगाओसृजनात्मक होओ।
इस पीड़ा से भारत बहुत ज्यादा परेशान रहा है। यहां के तथाकथित योगी भी दुकानदार की भाषा बोलते हैं। खर्चा न हो जाए! अपनी ऊर्जासम्हाल कर रखो। नाचना तो दूरतुम्हें सिखाया जाता है कि जब ध्यान करने बैठो तो शरीर हिले भी नहीं। क्योंकि जरा ही हिले और छलक गयी ऊर्जाफिर! हिलना ही मतपत्थर की तरह बैठ जाना। मैं तुमसे कहता हूं—नाचो। मैं कहता हूं—तुम बांटो। उंडेला दो सागर में ऊर्जा को। जिसने दी हैवह और देगा। इतनी घबड़ाहट क्याइतना भी भरोसा नहीं है परमात्मा पर कि जिसने अब तक दिया है वह आगे भी देगा! तुम इतने डरे हुए आदमी मालूम होते हो कि तुम अगर सांस भीतर ले लोगे तो बाहर न निकालोगे। क्योंकि अगर बाहर निकाल दीफिर न आयी तो! फिर न लौटीफिर क्या करेंगेशक्ति खत्म हो गयी। अपने हाथ से चली गयी। ले लो सांस और सम्हाल कर बैठ जाओ भीतरबस मर जाओगे उसी सांस के साथ!
तुम देते रहोजिसने दी हैवह देगा। इतने दिन तक दियाअब तक दियासब रूप में दियाइतने तुम घबड़ाते क्यों होयह आस्था की कमी है। यह श्रद्धा की कमी है। श्रद्धालु तो कहेगा कि ले लो मेरा जो काम लेना हो। जितना लेना हो!
और तुमने एक मजे की बात देखीजितना सक्रिय आदमी होता हैउसके पास उतना ही समय होता है। और जितने काहिल और सुस्त होते हैंउनके पास बिलकुल समय नहीं होता है। सुस्त और आलसी से पूछोवह कहता है,भईसमय नहीं है। और सक्रिय आदमी को पूछोजो बहुत कामों में लगा हैवह हमेशा समय निकाल लेता है।
पश्चिम के एक बड़े विचारक श्वीत्जर ने लिखा है कि मेरे जीवन का अनुभव यह है कि जितने रचनात्मक,सृजनात्मकसक्रिय लोग होते हैंजितना ज्यादा करने वाले लोग होते हैंउनके पास उतना ही ज्यादा समय होता है। और अगर कोई काम करवाना हो तो ऐसे आदमी से कहना जो बहुत काम कर रहा हो। वह समय निकाल लेगा। सुस्त और काहिलजो बिस्तरों में पड़े रहते हैउनसे अगर तुम कहो कि भईजरा कर देना यह कामवे कहेंगे भाईसमय कहां हैवह अपनी शक्ति बचाए पड़े हैं बिस्तर में। अपनी रजाई ओढ़े। कि कहीं शक्ति खर्च न हो जाए! वहीं रजाई में मर जाओगे।
यह कंजूसी छोड़ो। इस कंजूसी से मेरी जरा भी सहमति नहीं है। मैं तुमसे कहता हूं—जीवन की उत्कुल्लता से जीओ। और यह अनेक अर्थों में समझ लेने की बात है। ब्रह्मचर्य आना चाहिएथोपा नहीं जाना चाहिए। कंजूसी के कारण नहीं थोपा जाना चाहिए। ब्रह्मचर्य आना चाहिए प्रेम की विराटता से। तुम्हारा प्रेम इतना फैलेइतना फैलेइतना गहरा हो जाए कि उसमें से कामवासना समाप्त हो जाए—गहराई के कारण। तुम इतना प्रेम दो कि उसमें कामवासना शून्य हो जाए। इतने शुद्ध प्रेम की धाराएं बहने लगें कि उसमें कामवासना न रह जाए। तब एक ब्रह्मचर्य आता है। वही ब्रह्मचर्य है। वही ब्रह्मचर्य शब्द का ठीक—ठीक द्योतक है।
ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है। ईश्वर जैसी चर्या। ईश्वर कंजूस हैतुम देखते ईश्वर की कंजूसी कहीं भी इस प्रकृति मेंएक बीज से करोड़ों बीज पैदा होते हैं। एक—एक वृक्ष में करोड़ों बीज पैदा होते हैं। उन करोड़ों बीज में से दस— पांच बीज शायद वृक्ष बन पाएंगे। जब जरा सोचो तुमपरमात्मा कितना फिजूलखर्च है! दस—पांच वृक्ष बन पाएंगे और करोड़ों बीज पैदा कर रहे होवैज्ञानिक कहते हैंएक आदमी—सिर्फ एक आदमीएक पुरुष—के वीर्य में इतने जीवाणु होते हैं कि वह सारे पृथ्वी को भर सकता है आबादी से। एक पुरुष में। एक संभोग में कम से कम एक करोड़ जीवाणु तुम्हारे भीतर से विदा हो जाते हैं। बच्चे तो तुम्हारे कितने होंगेइंदिरा का वक्त होता तो थोड़े कमअभी मोरारजी का हैथोड़े ज्यादा हो सकते हैंबाकी कितने दर्जनदो दर्जनकितनेइस समय पृथ्वी की जितनी आबादी हैउतने जीवाणु एक पुरुष में होते हैं। उतने बच्चे पैदा हो सकते हैं। और फिजूलखर्ची देखोगे भगवान कीदस—पांच बच्चों के लिए इतनाइतने जीवाणु पैदा करना!
यह मामला क्या है?
भगवान कंजूस नहीं है। फिजूलखर्च है। आनंद है उसकाउल्लास है उसका। हिसाब—किताब से नहीं चलतामस्ती से चलता है। अब ये सज्जन अगर कुंड़लिनी जग रही होगी तो यह बड़े घबड़ाते होंगे कि अब थोड़ी—सी ऊर्जा आ रही है,अब जल्दी से मार कर कब्जा इस पर बैठ जाओकहीं खर्चा न हो जाए। बस तुम्हारे कब्जा मार कर बैठने में ही मर जाएगी। होने दो प्रकट। यह जो उठ रहा है फन तुम्हारी कुंड़लिनी काइसे फैलने दो। इसे बंटने दो। ये जाएगी कहां?कहीं कुछ जाता नहीं हैसब यहीं हैक्योंकि हम सब एक हैं। हम सब संयुक्त हैं। कुछ खोता नहीं है। कुछ मरता नहीं है। सब शाश्वत रूप से यहीं है। लेकिन जब तुम देने में कुशल  होते होजब तुम्हारे भीतर बहाव होता हैतब तुम्हारे भीतर जीवन अपने परम रूप में प्रकट होता है। तुम्हारे भीतर ब्रह्मचर्य फलेगा। लेकिन ब्रह्मचर्य कंजूसी से नहीं फलेगा। ब्रह्मचर्य दान से फलेगा। प्रेम से फलेगा। और तुम्हारे भीतर विराट ऊर्जा आएगी। लेकिन वह तभी आएगी जब तुम उलीचते रहोगेउलीचते रहोगेउलीचते रहोगे। कबीर ने कहा है— 'दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन को काम'। उलीचते रहो। रुकना ही मत उलीचने से।
तुम मेरा प्रयोग करके देख लो! कंजूस की तरह तुमने रहकर जी लिया हैअब तुम उलीचकर भी देख लो तुम। और तुम चकित हो जाओगेइतना आता है! मगर देनेवाले के पास ही आता है। धन्य हैं वेजो बांटने में शर्तें नहीं लगाते। जो दिये चले जाते हैं।

ओशो
अथातो भक्‍ति जिज्ञासा--भाग-2
प्रवचन--तेहरवां, 24 मार्च, 1978
श्री रजनीश आश्रम पूना।

No comments:

Post a Comment

Must Comment

Related Post

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...