अथातो भक्‍ति जिज्ञासा--भाग -2 ऋिषवर शंडिल्‍य ओशो दूसरा प्रश्न :

गीता में कृष्य ने कहा है कि जब—जब धरती पर संकट आता हैमैं अवतार लेता हूं। अवतार लेने के तीन कारण बताए हैं। पहलासाधुओं को रक्षा करना। दूसराधर्म की स्थापना करना। तीसरापापियों को दंड देना। अर्थात् ये तीन कार्य करने के लिए भगवान धरती पर आते हैं। आप अपने को भगवान कहते हैं। क्या आप ये तीनों कार्य कर रहे हैं?


पहली बात। पूछा तुमने, 'गीता में कृष्य ने कहा कि जब—जब धरती पर संकट आता है'; धरती पर कभी भी ऐसा कोई समय है जब संकट नहीं हैधरती संकट है। यहां होना संकट में होना है। कब ऐसा समय था जब संकट नहीं था?ऐसी कोई किताब आज तक नहीं पायी जा सकी हैदुनिया के इतिहास मेंजिसमें लिखा हो कि इस समय धरती पर संकट नहीं है। सभी किताबें कहती हैं कि बड़ा संकट है। हालाकि सभी किताबें कहती हैं कि पहले संकट नहीं था। लेकिन वह पहले कब थाक्योंकि उस समय की किताबें कहती हैं कि संकट था। तुम चकित होओगे यह जानकरसंकट सदा से रहा है।
संकट धरती का स्वभाव है। होना ही चाहिए। क्योंकि धरती छोड़नी हैधरती से मुक्त होना है। यहां अगर संकट न होगा तो धरती छोड़ोगे किसीलिएधरती से मुक्त किसलिए होओगेयहां अगर संकट न होगा तो धर्म की कोई जरूरत ही न रह जाएगी। बीमारी ही न होगी तो औषधि की क्या जरूरत होगी
थोड़ा सोचो। धर्म की सदा जरूरत हैक्योंकि संकट सदा हैआदमी सदा बीमार है। तुम सोचते होकभी कोई ऐसा युग थासतयुगजब लोग बीमार नहीं थेकोई युग थारामराज्यजब लोग बीमार नहीं थे। जरा राम की कहानी देखो! राम के पिता खुद ही बीमार मालूम पड़ते हैं। एक जवान औरत के प्रेम में बेटे को निकाल दिया। अन्याय किया। यह सतयुग थारावण ही तो नहीं था उस दिन अकेलाबहुत रावण थेरावण के संगी—साथी भी थे। स्त्रियां उस दिन भी चुरायी जाती थीं। झगड़े उस दिन भी खड़े होते थे। युद्ध उस दिन भी होते थे। कौन—सी हालत बेहतर थीक्या था जिसके गुणगान करते होअगर गौर से देखने जाओगे और ईमानदारी से जांच करोगे तो तुम पाओगेरामराज्य भी रामराज्य नहीं था। रामराज्य इस धरती पर कभी रहा ही नहींकल्पना में है आदमी के। होना चाहिएआशा हैमगर फलता कभी नहीं।
कृष्य जब थेतब कौन—सा इस जगत में आनंद थायुद्ध थाभयंकर युद्ध हुआ। तुम कोई स्मरण कर सकते होऔर पीछे लौटो—परशुराम! तो कोई दुनिया में शांति रही होगीपरशुराम ने फरसा लेकर पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रियों से समाप्त कर दियाखाली कर दियाविधवाएं ही विधवाएं छोड़ी। बुरे आदमी तो बुरे होते ही होंगेभले आदमी भी बहुत भले नहीं थे। परशुराम कोई बहुत भले आदमी नहीं मालूम पड़ते हैं! तुम किस जमाने की बात कर रहे हो?
बुद्ध को गालिया मिलींपत्थर मिले। महावीर को गांव—गांव से हटाया गयानिकाला गयाकानों में खीले ठोके गये। ये भले लोग थेदुनिया में संकट नहीं था?
मेरे देखेपृथ्वी संकट है। इसलिए यह बात तो फिजूल है। किसने कहीमुझे कुछ प्रयोजन नहीं है। और ध्यान रखनाकृष्य ने कुछ कहा हो तो कृष्य को खोजो उनसे उत्तर लो। मैं उनके लिए उत्तरदायी नहीं हूं। मैं कौन हूं जो उनके लिए उत्तर दूंकृष्य को पकड़ोउन पर अदालत में मुकदमा चलाओ। मैं जो कह रहा हूं उसके लिये उत्तरदायी हूं। मैं जो कह रहा हूं उसके लिए कृष्ण कैसे उत्तरदायी हो सकते हैंलेकिन लोग इस ढंग से पूछते हैं जैसे कि कृष्य ने कुछ कह दियातो उसके लिए मैं उत्तरदायी हूं या कोई भी उत्तरदायी है। कृष्य ने जो कहा वह कृष्य जानें। तुम उनसे झगडू लेना,कहीं मिल जाएं—शायद इसीलिए मिलते भी नहींतुमसे डरते होंगेतुमसे भयभीत होते होंगे कि हजार सवाल तुम खड़े करोगे।
तुम कहते हो, 'गीता में कृष्य ने कहा है कि जब—जब धरती पर संकट आता हैमैं तुमसे कहता हूं धरती पर सदा संकट है। आता नहींजाता नहींधरती संकट है। छ: हजार साल पुरानी चीन में किताब मिली हैऐतिहासिक आधार पर सबसे ज्यादा पुरानी हैउसमें जो भूमिका हैवह तुम पढ़ोगे तो चकित हो जाओगे। भूमिका ऐसी लगती है,जैसे आज के सुबह के अखबार में निकली हो। भूमिका के शब्द अगर सुनोगे तो तुम मान ही न सकोगे कि छ: हजार साल पुरानी है भूमिका में लिखा है कि बेटे अपने मा—बाप का आदर नहीं करते हैं। यह कैसा दुखद युग आ गया है। शिष्य गुरु की नहीं मानते। यह किन पापों का फल मनुष्य भोग रहा है। स्त्रिया सती  नहीं रहींव्यभिचार फैला है। अनाचार हैझूठ हैरिश्वतखोरी है। ये सारी बातें हैं। तो ऐसा लगता है जैसे दिल्ली का कोई अखबार आज ही सुबह छपा हो! राजा भी भरोसे योग्य नहीं रहातो प्रजा का क्या होगायह छ: हजार साल पुरानी किताब! आदमी वैसा का वैसा है। तुम्हें भ्रांति इसलिए पैदा होती है कि तुम सोचते हो कि वैसा कैसे हैआज का आदमी कार चाहता है। यह बात सच है कि कार आज से छ: हजार साल पहले नहीं थीलेकिन छ: हजार साल पहले जो थाउसकी चाह इतनी ही थी;फर्क क्या पड़ता हैबैलगाड़ी चाहता था आदमीशानदार छकड़े की गाड़ी चाहता था। आज फिएट गाड़ी चाहता हैतब एक छकड़ा गाड़ी चाहता था। चाह तो वही है। कल हवाई जहाज चाहने लगेगा उससे क्या फर्क पड़ता हैचाह के विषय बदल गये हैंचाह नहीं बदल गयी है। वेश्याएं आज ही तो नहीं होती हैंतब भी होती थीं। और जमीन पर ही नहीं होतींस्वर्ग में भी होती हैं—उनको तुम अप्सराएं कहते हो। जिन ऋषि—मुनियों ने स्वर्ग की कल्पना की हैवे स्वर्ग में भी वेश्याओं को नहीं छोड़ सकेवेश्या ऐसा अनिवार्य अंग थी कि होनी ही चाहिए। और यहां ही लोग एक—दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं। तुम कहानियां पढ़ते हो पुराणों में कि जब भी कोई ऋषि—महर्षि ज्ञान की गहराई में उतरता है,तप में उतरता हैइंद्र का सिंहासन डोलने लेता है। क्यों इंद्र का सिंहासन डोलने लगता हैक्या इंद्र बेचैन हो जाता है
यह वही की वही कथा हैइसमें फर्क कहां हैजो रोज हो रहा है। और फिर इंद्र करता क्या हैइंद्र वही करता है जो राजनीतिज्ञ अभी कर रहे हैं। इंद्र भेज देता है दो खूबसूरत औरतों को कि जाकर नाचोऋषि को भड़काओउपद्रव,और फोटो निकलवा लेनाअखबार में छपवा देना कि भ्रष्ट है। रिश्वत दे दो। किसी तरह लालच—लोभकिसी तरह इसमें कामवासना जगा दो। अब यह बड़े मजे की बात है कि जो इंद्र भेजता है इन वेश्याओं कोअब इसमें कोई पाप नहीं लगता। पुराण इसकी कोई बात ही नहीं कहते कि इसमें कुछ पाप लगता है कि नहीं लगता। ये ऋषि तो भ्रष्ट हो गये,लेकिन भ्रष्ट जिसने करवायाउसका जुम्माऔर यह ऋषि भी खूब हैं कि दो स्त्रिया आकर नाचने लगती हैं कि भ्रष्ट हो जाता है। जैसे भ्रष्ट होने को ही बैठे थे। प्रतीक्षा ही कर रहे थे कि हे इंद्रअब भेजोकि इतनी देर क्यों हो रही है,अब भेजोअभी तक तुम्हारा सिंहासन नहीं कंपा?
आदमी वैसा का वैसा है। वही स्पर्धा विश्वामित्र और वशिष्ठ में हैजो आज चलती है। वही संघर्ष अहंकार का,वही दौड़ वही हिंसासब वही का वही है। तुम जरा पुराने शास्त्रों में जो शिक्षाएं दी गयी हैंउनको गौर से देख लो। सब शास्त्र कहते हैंचोरी मत करो। इनका मतलब हैतब चोरी होती थी जब शास्त्र लिखा गया। नहीं तो पागल थे शास्त्र लिखनेवाले कि चोरी मत करोसब शास्त्र कहते हैंझूठ मत बोलो। साफ है कि लोग झूठ बोलते थे। सब शास्त्र कहते हैंहिंसा मत करो। साफ है कि लोग हिंसक थे। सब शास्त्र कहते हैंव्यभिचार मत करो। साफ है कि लोग व्यभिचारी थे। और क्या साफ होगाजो लोग करते हैं उसीको तो रोकने के लिए शास्त्र सूचना देता है। अगर लोग व्यभिचारी थे ही नहींलोग चोर थे ही नहींझूठ बोलते ही नहीं थेतो ये शास्त्र लिखनेवालों का दिमाग खराब थाये पागलों ने लिखे होंगे। चिकित्सक तभी औषधि का नाम लिखता है, 'प्रसक्रिप्‍श्‍नदेता है तुम्हेंनुस्खा देता हैजब तुम बीमार होते हो। कौन—सा फर्क पड़ा हैवही की वही बात है।
तुम कहते हो, 'गीता में कृष्ण ने कहा हैजब— जब धरती पर संकट आता है'; संकटमैं तुमसे कहता हूं सदा है। धरती संकट है। यहां होना संकट है। आता नहींजाता नहीं। 'तब— तब मैं अवतार लेता हूं। अवतार लेने के तीन कारण बताए हैं। साधुओं की रक्षा करना। पहली बातसाधुता में ही रक्षा हैकिसी और के आने की जरूरत नहीं है। जो साधुता अपने— आप अपनी रक्षा न कर सकेवह साधुता नहीं है साधुता का मतलब क्या होता हैबड़ी नपुंसक साधुता हुई कि कृष्ण को आना पड़े साधुओं की रक्षा करने। फिर साधुता का अर्थ क्या हुआसाधुता में बल क्या हैयह तो असाधु से कमजोर हुई। असाधु तो अपनी रक्षा खुद कर लेता है। और साधु के लिए कृष्ण को आना पड़ता है! ये साधु बड़े नपुंसक रहे होंगे। साधुता में रक्षा है। सत्य में बल है। सत्यमेव जयते। अगर यह सच है कि कि सत्य जीतता है तो कृष्ण की क्या जरूरत हैसत्य बलशाली हैअसत्य कमजोर हैअपने—आप हारता है। हार ही जाता है। हारेगा ही। उसके असत्य होने में उसकी हार छिपी है। प्रेम जीतता हैघृणा हारती है। मैत्री जीतती हैवैर हारता है। ये साधुता के सूत्र हैं।
तुम कह रहे हो कि कृष्ण तब अवतार लेते हैं जब साधुओं की रक्षा करने का सवाल उठता है। असल में ये बातें साधुओं ने लिख रखी हैं—नपुंसक साधुओं ने। ये साधु—वाधु नहीं हैं। ये असाधु से भी कमजोर हैं। इनका सत्य  बिलकुल लचर हैदो कौड़ी का है। सच्चाइयां कुछ और हैं। रामायण कहती है कि रामचंद्र जी साधुओं की रक्षा के लिए दक्षिण भारत गये। बकवास है। वे साधु—वाधु नहीं थेसब 'पोलिटिकल एजेंटथे। वे राम की सेवा में संयुक्त थे और वहां जासूसी कर रहे थे। दक्षिण में रावण के खिलाफ। साधु—वाधु इसमें कुछ नहीं थे। साधुओं के  लिए क्या रक्षा की जरूरत हैकृष्ण की तो कोई जरूरत नहीं आने की। उसका सत्य ही उसकी रक्षा है।
लेकिन ये तरकीबें हैंये बहुत पुरानी राजनीति की तरकीबें हैं। ईसाइयत का इतिहास कहता है कि ईसाई पहले अपने पादरी को भेजते हैं किसी देश में बाइबिल लेकर फिर उसकी रक्षा के लिए तलवारें लेकर आ जाते हैं। जब वह बाइबिल लेकर आता है उनका पादरीतब तुम्हें लगता हैकोई हर्जा नहीं है। लेकिन फिर उसकी रक्षा के लिए तलवार लेकर पीछे सिपाही आ जाते हैंकि साधु की रक्षा करनी है! इस तरह की भी खबरें उपलब्ध हैं कि ईसाइयों ने अपने साधुओं को भेजकर वहां लोगों को भड़काकर अपने साधुओं पर चोट भी करवायीताकि फिर वे सैनिक भेज सकें। और पीछे सैनिक आकर सफाया करता है। वस्तुत: जो साधु हैउसे कृष्ण के आने की कोई प्रतीक्षा नहींन कोई जरूरत है।  वस्तुत: जो साधु हैउसके भीतर तो परमात्मा का अवतरण हो गयाअब और कृष्ण की क्या जरूरत हैसाधु का मतलब क्या होता हैजिसको प्रभु का साक्षात हुआ। जिसको प्रभु का साक्षात हुआ वही तो साधु है। जिसने सत्य जाना वही तो साधु है। जो सरल हुआ वही तो साधु है। तो मैं तुमसे नहीं कहता कि साधु की रक्षा के लिए किसी कृष्ण के आने की जरूरत है। नाहक कष्ट न करें। कोई आवश्यकता नहीं है। साधु अपनी रक्षा है।
और तुम कहते हो, 'धर्म की स्थापना करने'। धर्म की स्थापना नहीं की जाती है। और न कभी धर्म स्थापित होता हैन अस्थापित होता है। धर्म तो वही है जो शाश्वत है। कृष्ण थोड़े ही धर्म की स्थापना करते हैं। धर्म तो इस जगत का नियम है। धर्म ने इस जगत को धारण किया है—इसलिए उसको 'धर्मकहते हैं। जैसे आग जलाती है और गर्म हैऐसा ही इस अस्तित्व का स्वभाव धर्म है। धर्म यानी स्वभाव। किसी को आकर स्थापना थोड़े ही करनी पड़ती है। तो कृष्ण के पहले क्या मामला थाधर्म नहीं थाकृष्ण ने स्थापना कीफिर कृष्ण के बाद क्या हुआधर्म समाप्त हो गयाधर्म तो इस जगत को संभालने वाले सूत्र का नाम है।
लेकिन तुम्हारे मन में कुछ और बातें हैंहिंदू—धर्म की रक्षा! हिंदू—धर्म धर्म नहीं हैऔर न मुसलमान—धर्म धर्म हैये तो सब राजनीतियो के जाल हैं। धर्म तो एक ही हैन वह हिंदू हैन मुसलमान हैन ईसाई हैन जैन हैन बौद्ध है। धर्म तो वह हैजब तुम अपने भीतर परिपूर्ण शांति में उतरते हो तो अनुभव करते होउस अनुभूति का नाम धर्म है। जब तुम अपने अंतरतम में डूब जाते हो तो जिसका तुम्हें स्वाद मिलता हैउसका नाम धर्म है। लेकिन हिंदू—धर्म को रक्षा की जरूरत मालूम होती हैइस्लाम को रक्षा की जरूरत मालूम होती हैईसाई को रक्षा की जरूरत मालूम होती हैये धर्म नहीं हैं।
तो मैं तुमसे कहता हूं : धर्म तो सदा है। जो सदा है उसी का नाम धर्म है। उसकी न कोई स्थापना करनी होती हैन कभी कोई उसे मिटा सकता है। उसका मिटना संभव ही नहीं है। अगर धर्म मिट जाए तो हम सब बिखर जाएं। अगर धर्म मिट जाए तो चांद—तारे न चलेंसूरज न निकलेपानी न बहेहवा न उठेफूल न खिलेंपक्षी न गाएंलोग न हों। धर्म टूटा कि सब टूट जाए। धर्म तो सबको जोड़े हुए है। धर्म तो वह धागा है जिसमें सबसारे फूलों को अपने में गूंथा हुआ है और माला बनी है। यह सारा अस्तित्व गुंथा है। जिससे गुंथा हैउस सूत्र का नाम धर्म है। कृष्ण इत्यादि की कोई जरूरत नहीं है कि इसको स्थापित करें। कृष्ण धर्म को स्थापित करने नहीं आते हैंजो धर्म है उसको जानने से कोई कृष्ण होता हैजो धर्म है उसको पहचान लेने से कोई कृष्ण होता हैजो धर्म है उसके साथ पूरा—पूरा संगीत—बद्ध हो जाने से कोई कृष्ण होता है।
कृष्ण को धर्म की स्थापना करने की कोई जरूरत नहीं है। यह पंडित—पुरोहितों ने लिखा होगा।
कृष्ण ऐसा नहीं कह सकते। तीसरी बात तुम कहते होपापियों को दंड देना। पाप में स्वयं ही दंड निहित है। जब तुम पाप करते होउसी करने में तुम्हें दुख मिल जाता है। दुख के लिए प्रतीक्षा थोड़े ही करनी पड़ती है कि कृष्ण आएंगे जब तुम्हें दंड देंगे। चोरी तुम करोगेबेईमानी तुम करोगेझूठ तुम बोलोगेहिंसा—हत्या तुम करोगेफिर कृष्ण आएंगे डंडा लेकर और तुमको दंड देंगेइसमें तो बड़ी झंझट होगी। और उन पर भी तो कुछ दया करो।
कृष्ण यही धंधा करते रहेंकृष्ण कोई पुलिस वाले हैंकृष्ण पर थोड़ा तो सदभाव लाओ।
नहींइस जगत की व्यवस्था ऐसी है कि तुमने गलती की कि दंड मिला। आग में हाथ डालते होजल जाता है न! ऐसा थोड़े ही है कि आग में हाथ डालाफिर बैठे हैं हाथ डालेफिर आए कृष्णउन्होंने कहा : क्यों जीतुमने आग में हाथ क्यों डालाअब हम तुम्हें जलाएंगे। अगर ऐसा होता हो तो तो बड़ी झंझट हो जाए बड़ी मुश्किल हो जाए। आग में हाथ डालने से जलना हो जाता है। तुम जरा सोचोजब तुम क्रोध करते हो तो जल जाते हो या नहींऔर क्या दंड चाहिएक्रोध में आग है और क्रोध में नर्क है। भोग लिया नर्क तुमने। तो मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि मेरी दृष्टि में पुण्य का फल पुण्य में छिपा हैपाप का दंड पाप में छिपा है। यही धर्म है। यहां जो शुभ करता हैशुभ पाता है। और यहां जो अशुभ करता हैअशुभ पाता है। जहर पीओगेमर जाओगे। अमृत पीओगेअमृत हो जाओगे। बीच में किसी की कोई आवश्यकता नहीं है। ये जो नियम हैंयह जो ऋत हैइसीका नाम धर्म है।
तो तुम पूछ रहे हो— अर्थात ये तीन कार्य करने के लिए भगवान धरती पर आते हैं। तो यह भगवान तुम्हारे वहीं से नहीं कर सकते ये कार्यइनमें इतनी भी अकल नहीं है कि टेलिफोन लगवा लें। अकल बिलकुल बेंच बैठे हैं?इसके लिए धरती पर आना पड़ता हैये तुम्हारी धारणाएं हैं। इसलिए मैंने कहाकृष्ण से मिलना हो तो तुम उनसे पूछ लेना। मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं है। मैं अपनी बात कहता हूं और अपनी बात के लिए उत्तर देने को तैयार हूं।
अब तुम पूछते हो कि आप अपने को भगवान कहते हैंक्या आप ये तीनों कार्य कर रहे हैंमैं इन तीनों कार्यों को करने योग्य मानता ही नहीं। और अपने को भगवान इसलिए नहीं कहता हूं कि मैं भगवान हूं और तुम भगवान नहीं हो। अपने को भगवान इसलिए कहता हूं कि यहां सब भगवान हैयहां भगवान होने के अतिरिक्त उपाय ही नहीं है। भगवान होने में मैं किसी विशिष्टता की घोषणा नहीं कर रहा हूं। उसी से तुम्हें कष्ट होता हैतुम्हें पीड़ा यही है कि एक आदमी ने अपने को भगवान कह दियाफिर हमारा क्या होगातो हम आदमी ही रह गये और आप भगवान हो गये! जब मैं भगवान कह रहा हूं तो यही कह रहा हूं कि आदमी भगवान हैपौधे
भगवान हैंपक्षी भगवान हैंपशु भगवान हैंभगवत्ता हमारा सहज स्वभाव है। भगवान होना हमारी कोई विशिष्ट बात नहीं है। यह हमारा सामान्य गुण— धर्म है। तुम इसे पहचानोमैंने इसे पहचान लिया हैबस इतना ही फर्क होगा। तुम भी इसमें जागोमैं इसमें जाग गया हूं। और मैं जो तुमसे कहता हूं कि मैं भगवान हूं इसमें कुछ घोषणा नहीं है,न कोई दावा है। यह सिर्फ इसलिए कहता हूं ताकि तुम्हें भी याद दिला सकूं कि देखोतुम्हारे जैसे ही हड्डी—मास— मज्जा का व्यक्ति भगवान हो सकता हैतुम क्यों नहीं हो सकतेतुम्हारे जैसी ही भुख लगती है मुझेप्यास लगती है मुझेतुम्हारे जैसा ही जीवन हैतुम्हारे जैसे ही मेरी मौत होगीबिलकुल तुम जैसा हूं तुमसे जरा भी भिन्नता की घोषणा नहीं कर रहा हूं। भगवान कहने के पीछे इतना ही राज है कि तुम्हें याद दिला रहा हूं कि तुम झूठी बातों में पड़ गये हो।
तुम कहते होभगवान वह है जो आकर ये तीन कार्य करता है। तो कृष्ण आए थेसाधुओं की रक्षा हुईकहां हैं वे साधु जिनकी रक्षा हुईधर्म की स्थापना हुईकृष्ण के बाद जितना अधर्म इस देश में फैलाकभी नहीं फैला था। क्योंकि भयंकर युद्ध हुआ। और दूसरों की तो छोड़ दोकृष्ण के अनुयायीयदुवंशीइस भयंकर तरह से लड़े एक—दूसरे सेउन्होंने सब विनाश कर डाला। कृष्ण के द्वारा पापियों को दंड मिलाकौन—से पापियों को दंड मिला गयातुम कहोगे कि मिलाकौरवों को मिला। कौरव पापी थे! और तुम्हारे धर्मराज युधिष्ठिरयह जुआ खेल रहे हैंयह पापी नहीं हैंऔर ऐसे ही जुआ नहीं खेल रहे हैंअपनी औरत तक को जुए में दाव पर लगा रहे हैंये पापी नहीं हैंइनको दंड कब मिलाकैसे मिलाइनको धर्मराज कह रहे हो! जरा जाकर अपनी औरतों को दाव पर तो लगाकर देखो। जेल में सडोगे। वहां यह नहीं कह सकोगे कि हम धर्मराज हैंहम युधिष्ठिर हैंयह हमारे साथ क्या अन्याय हो रहा हैहे भगवान! आओहमारी रक्षा करो! धर्मराज की रक्षा तो करनी ही चाहिए।    यह तुम देखते होयह जो कौरवों—पांडवों की बीच झंझट थीइस झंझट में तुम सोचते हो कौरव ही जिम्मेवार थेतो तुम गलत सोचते हो। इसमें पांडव उतने ही जिम्मेवार थे। धर्मराज में धर्म जैसा कुछ नहीं मालूम होता। और ये पांच पुरुष एक स्त्री के पति बन गये हैंइसमें तुम्हें कुछ धर्म मालूम होता हैइन्होंने एक अबला को बिलकुल वेश्या में रूपांतरित कर दिया हैइसमें तुम्हें कुछ धर्म मालूम होता हैऔर ये किसलिए इतने आतुर थेराज्य के लिए आतुर थे। जैसा दुर्योधन आतुर थावैसे ही ये भी आतुर थे कि राज्य हमारा हो। राज्य हमारा होइसमें तुम्हें कुछ धर्म मालूम होता हैवही बलवही अहंकारवही मालकियत,वही कब्जे की आकांक्षा ! इसमें तुम्हें धर्म—जैसा क्या मालूम होता हैये कोई साधु थेये एक ही जैसे थे। वे निश्चित ही चचेरे भाई थेइनमें कुछ फर्क नहीं था।
तुम अगर अपनी कथाओं को ठीक से समझोगे तो तुम बड़े हैरान हो जाओगे।
और फिर उसके बाद हुआ क्यामहाभारत के बाद इस देश का ऐसा पतन हुआ कि यह अभी तक नहीं सम्हला है। महाभारत के बाद यह देश सम्हला ही नहीं। महाभारत के बाद इस देश ने वह ऊंचाई कभी पायी ही नहीं। और तुम सोचते होकृष्ण जब आते हैं तो साधुओं की रक्षा होती हैधर्म की स्थापना होती हैपापियों को दंड मिलता है। यह तो जब कृष्ण आए थे तब भी नहीं हुआआगे की व्यर्थ आशाओं में मत पड़ो।
मैं जब कहता हूं तुमसेतो मेरे कहने का प्रयोजन बहुत ही भिन्न है। लेकिन तुमने और बातें सुनी हैंउनसे तुम्हारा मन भरा हैइसलिए तुम मेरी बात नहीं समझ पाते। कृष्ण जब कहते हैं कि मैं भगवान हूं तब तुम्हें अड़चन नहीं होती। क्यों तुम्हें अड़चन नहीं होतीपहली तो बात यह हैकृष्ण से इतना फासला हो गया है कि अब तुम उन्हें हड्डी—मांस—मज्जा के मनुष्य की तरह नहीं देख पाते। इतनी कहानियां जुड़ गयी हैं उनके आसपासइतनी भव्य प्रतिमा निर्मित कर ली गयी है कि अब तुम उनमें मनुष्य नहीं देख पाते। लेकिन कृष्ण तुम जैसे मनुष्य थे। तुम मान लेते हो वह भगवान हैंलेकिन अर्जुन ने भी मान नहीं लिया था। दुर्योधन ने तो कभी नहीं माना था। नहीं तो युद्ध ही न होता लाखों लोग कृष्ण को भगवान नहीं मानते थेचालबाजकूटनीतिज्ञ मानते थे। जो मौजूद थे उन्होंने कृष्ण को भगवान नहीं माना। तुम मान लेते होक्योंकि तुम्हें अब असली कृष्ण का कुछ हिसाब नहीं है। मौजूद होते तो न मान पाते। तुम्हारी स्त्री से छेड़खानी करते कृष्ण तो न मान पाते कि भगवान हैं। किसी तुम भी और की स्त्री से की होगीतुम्हें लेना—देना क्या है?
तुम्हारी पत्नी नहा रही होती और उसके कपड़े उठाकर झाडू पर बैठ जाते तो तुम पूजा और ही अर्थ में करते उनकी! मराठी अर्थ में शिक्षा देते उनको! वही किया था जो लोग मौजूद थे उन्होंने। लेकिन तुम्हारे लिए भगवान हैं। अब बात बहुत दूर हो गयी। पांच हजार साल बीत गयेपांच हजार साल में हजारों कहानियां बीच में खड़ी हो गयीपरदे पर परदे हो गये। अब तुम कृष्ण को देख सकते हो दिव्य।
मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कहानियों के आधार पर किसी को दिव्य देखने से कुछ लाभ नहीं होताक्योंकि वे कहानियां झूठी हैं। दिव्यता को यहां देखोअभी देखोसामान्य में देखो। क्योंकि सामान्य में दिव्यता को देख सकोतो ही तुम्हारी दिव्यता मुक्त हो सकती है। मैं अगर तुमसे कह रहा हूं कि मैं भगवान हूं, तो इसमें मेरा कोई दावा नहीं है;इसमें मुझे कोई रस ही नहीं है। अगर रस है तो तुममें है। और जब तक तुममें मेरा रस है तब तक मैं कहूंगा कि मैं भगवान हूं। जिस दिन मैं देखूंगा कि कोई सार नहीं है तुम में रस लेने मेंतुम्हें ही रस नहीं है तुम में तो कब तक मैं रस लूंउसी दिन भगवान कहना बंद कर दूंगा। उसमें कोई प्रयोजन नहीं है। मुझे कुछ लेना—देना नहीं। मैं जो हूं हूं। भगवान कहूं र न कहूं र इससे क्या फर्क पड़ता हैलेकिन अभी मुझे तुम में रस है। अभी और थोड़ी कोशिश करूंगा। अभी तुम्हें और याद दिलाने की चेष्टा करूंगा। शायद इसी बहाने तुम्हें याद आ जाए। लेकिन तुम यह मान नहीं सकते कि तुम भगवान हो। यही तुम्हारे जीवन में भगवत्ता और तुम्हारे बीच बाधा है कि मान नहीं सकते कि तुम भगवान हो। तुम्हें लगता हैमुझ जैसा पापी और भगवान! मुझ जैसा जुआरी और तुम भगवान! मुझ जैसा शराबी और भगवान! मैं तुमसे कहता हूं कि तुम शराब पीते हो तब इतना ही फर्क पड़ता है कि भगवान शराब पी रहे हैंऔर कुछ फर्क नहीं पड़ता। जब तुम जुआ खेलते हो तो इतना ही है कि भगवान जुआ खेल रहे हैं। तुम्हारी भगवत्ता अछूती रहती है। तुम्हारे कृत्य तुम्हारी भगवत्ता को नहीं छूते हैं। तुम्हारे सब कृत्य स्वप्न जैसे हैं। जैसे रात स्वप्न देखा तुमने और तुम भिखारी हो गयेलेकिन जब आंख खुलती है सुबह तो तुम पाते हो कि तुम भिखारी नहीं होअपने बिस्तर पर सोए हो। तुम्हारे सारे कृत्य स्वप्न जैसे हैंयही माया के सिद्धात का अर्थ है। तुमने चोरी कीतुमने शराब पीतुमने अच्छा कियातुमने बुरा कियातुमने मंदिर बनवायातुमने पुण्य कियादान कियासब—सब के सब तुम्हारे भीतर उठे एक स्वप्न की भाति हैं। जागोगे जिस दिन उस दिन तुम पाओगेभगवत्ता तुम्हारी है। तुम भगवान हो। 
कुछ और बातें इस प्रश्न के संबंध में।
पहली बाततुमने कहा है कि अवतार तब होता है जब ये तीन काम उसे करने होते हैं। परमात्मा का अवतरण होता हैअवतार नहीं होता। अवतार का तो मतलब होता हैकि बस कृष्ण में हुआराम में हुआ—गिनती का। तो दस अवतार हुएकि चौबीसया जितनी गिनती तुमने मान रखी है उतने अवतार होंगे। फिर बाकीबाकी वंचित रह जाएंगे। इसलिए मैं कहता हूं : परमात्मा का अवतार नहीं होताअवतरण होता है। जो भी समाधि में पहुंचता हैवही परमात्मा का अवतार हो जाता है। करोड़ों लोग पहुंचे हैं। करोड़ों लोग पहुंचेंगे। और प्रत्येक व्यक्ति का यह स्वरूपसिद्ध अधिकार हैजिस दिन चाहे और अपने भीतर समाधि को जन्मा लेउस दिन वह भी अवतार हो जाएगा।
फिर अवतार का कारण कोई हेतु नहीं होताकि यह काम करने के लिए। जब तक कर्ता का भाव हैतब तक कहां कोई अवतारयह तो कर्ता का ही भाव हुआ कि ये काम करने हैंइसलिए। इसमें तो हेतु हुआइसमें तो वासना हुई। नहींअवतरण तब होता है जब सब हेतु समाप्त हो जाते हैंसब वासनाएं गिर जाती हैंभीतर कोई करने का कारण ही नहीं रह जाता। जहा कर्ता समाप्त हो जाता हैवहां अवतरण होता है।
तो मेरी धारणाएं अलग हैं। तुम और शास्त्रों को मेरे बीच में मत लाओ। और जब मैं इन शास्त्रों पर भी बोलता हूं तब भी तुम ध्यान रखना कि मैं अपने पर ही बोलता हूं। मेरी धारणाएं मेरी हैं। मैं तुम्हें अपनी धारणाएं समझा रहा हूं। मुझे इससे कुछ प्रयोजन नहीं है कि कृष्ण का क्या अर्थ थाक्या नहीं था। इसमें माथा—पच्ची करने में मुझे। रस ही नहीं है। मैं कोई पंडित नहीं हूं, न कोई व्याख्याकार हूं। मेरे पास अपना अनुभव हैवह मैं तुम्हें दे रहा हूं।
इसमें कोई हेतु नहीं है। न तो किसी साधु की रक्षा करनी है मुझे क्योंकि जिसको अभी साधु— असाधु में फर्क होवह अभी अवतार ही नहीं है। द्वंद्व जिसके मन में होवह कहां अवतारमैं उस व्यक्ति को कहता हूं परमात्मा,जिसके भीतर से द्वंद्व गयान अब साधु है कोईन असाधुन कुछ पापन कुछ पुण्यन कुछ धर्मन कुछ अधर्म। यह द्वंद्व गयायह विरोध गयायह द्वैत गयासब अद्वय हो गया। सब लीला हैसब एक है। मेरे देखे राम के बिना रावण नहीं हो सकता है और रावण के बिना राम नहीं हो सकते। अगर रावण को नष्ट कर दोगे तो राम को भी नष्ट कर दोगे।
इसे समझ लेना।
जरा सोचोरावण को अलग कर लो राम की कथा सेफिर कितने राम बचेंगेक्या बच रहेगारावण को अलग करते ही कथा गिर जाएगी। रावण के बिना राम की कथा खड़ी नहीं हो सकती। राम के बिना रावण की कथा खड़ी नहीं हो सकती। दोनों एक—दूसरे पर निर्भर हैं। अगर दोनों एक—दूसरे पर इतने निर्भर हैंतो तुम उनको अलग— अलग मत करो। पाप और पुण्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैंधर्म और अधर्म भीसाधु— असाधु भी। जैसे दिन और रात हैंजैसे काटा और फूल हैंजैसे स्त्री और पुरुष हैंऐसे सारे द्वंद्व एक—दूसरे को संभाले हुए हैं। इस जगत में कभी ऐसा नहीं होगा कि सिर्फ भलाई बचे। भलाई अकेली नहीं बच सकती हैबुराई बचेगी। बुराई के साथ ही भलाई बच सकती है। और बड़े चमत्कार की बात है कि दोनों में सदा संतुलन रहता है। जितनी भलाई होगीउतनी बुराई होगी। जितनी बुराई होगी,उतनी भलाई होगी। संतुलन कभी नहीं टूटता है। यहां राम और रावण दोनों सदा हैं। यही तो जगत का द्वंद्व है। इसी को तो मैंने पृथ्वी का संकट कहा। लेकिन अगर अवतार भी देखता है कि यह साधुइसको बचानायह असाधुइसको मारनातो वह अभी अवतार नहीं है। अभी उसे असली बात दिखायी नहीं पड़ी। अभी उसे यह नहीं दिखायी पड़ा कि दोनों के पीछे एक ही परमात्मा छिपा है। उसे अभी एक का अनुभव नहीं हुआ है।
मुझे न तो साधु को बचाना हैन असाधु को मिटाना है। न पुण्य फैलाना हैन पाप को मिटाना है। न धर्म की स्थापना करनी हैन अधर्म को उखाड़ना है।
फिर मुझे क्या करना हैमुझे तुम्हें याद दिलानी है कि दो जब तक हैंतब तक भ्रांति हैसपना हैमाया है,द्वंद्व है। इन दो के बीच एक को देख लो। एक को देखते ही मुक्ति हैनिर्वाण है। तीसरा प्रश्न भी उन्हीं मित्र का है;वैसे का वैसा है। पूछनेवाले हैंदेवराज खुरानापंजाब। ऐसे प्रश्न पंजाब में से ही आ सकते हैं। पंजाबियों की बुद्धिमत्ता तो जग—जाहिर है।


तीसरा प्रश्न है :


नानक अपने को प्रभु का दास कहते थे। कबीर भी प्रभु के भक्त थे। बुद्ध और महावीर ने भी कभी भगवान होने का दावा नहीं किया। यीशु मसीह ने भी अपने को ईश्वर का इकलौता बेटा कहा था। आप भी उन्हें की तरह एक पूर्ण संत हैंफिर आप अपने को भगवान क्यों कहते हैंभगवान तो वह है जो सब को पैदा कर रहा है। क्या आप सबको पैदा कर रहे हैं?


देखा! इसलिए मैंने कहा कि ऐसा प्रश्न पंजाब से ही आ सकता है। थोड़ा समझने की कोशिश करो। शायद नानक ने इसलिए अपने को भगवान नहीं कहा होगापंजाबियों के डर के कारण! कि इन मूढों से सिर कौन मारेगाजरा नानक पर दया करो। नानक कोई भले आदमियों के बीच में नहीं थे। झगड़ा—फसाद खड़ा हो जाएलट्ठ निकल आएं। नानक ने अपने को नहीं कहा कि मैं भगवान हूं र इसका यह अर्थ नहीं है कि नानक ने नहीं जाना कि मैं भगवान हूं। नानक ने जानाखूब जानाउसीको जानकर तो वे नानक हुएउसीको जानकर तो वे गुरु हुए।
गुरु का अर्थ क्या होता हैजिसने अनुभव लिया है कि मैं भगवान के साथ एक हूं। जिसने अनुभव कर लिया,वही तो तुम्हें अनुभव करवा सकता है उस एकता का। लेकिन कहा नहीं कि मैं भगवान हूंयह दुर्दिन की बात है। कहा नहींसुननेवालों का खयाल रखा होगाउनकी जड़ता को देखा होगा। लेकिन कृष्ण ने तो कहा कि मैं भगवान हूं। क्यों कृष्ण कह सकेकारण था सुननेवाला अर्जुनएक सुसंस्कृत प्रतिभाएक मेधावी व्यक्तिजो समझ सकेगा। गंवारों से नहीं बोल रहे थे। गीता की जो ऊंचाइयां हैं वे इसलिए हैं कि जिससे बोल रहे थेवह एक समझनेवाला मित्र थासमझने के लिए चेष्टा कर रहा थासहानुभूतिपूर्ण था। नानक भीड़—भीड़ में घूम रहे थेगांव—गांव घूम रहे थेलोगों से बोल रहे थे।
मैं भी कोई पंद्रह वर्षों तक गांव—गांव घूमा हूं। उसमें पंजाब भी मेरा हिस्सा था घूमने का। पंजाब मैं काफी गया हूं। गांव—गांव घूमकर मुझे यह लगा कि जिस तरह के लोगों से बोलना होउस तरह से बोलना पड़ता हैसमझौते करने पड़ते हैं। इसलिए मैंने जाना बंद कर दिया। अब मुझे जो बोलना है वह बोलूंगाजिसे सुनने आना हैउसे आना चाहिए। समझौता उसे करना हो तो कर लेअब मैं समझौता नहीं करूंगा। क्योंकि जो तल होता है लोगों का उस तल की ही बात करनी पड़ेगी। इसलिए मैं पसंद नहीं करता हूं कि मेरे सामने गैर—संन्यासी बैठे। इसलिए गैर—संन्यासियों को पीछे बिठाता हूं। उसका कारण है। उसका कुल कारण इतना हैजो मुझे सुनते रहे हैंजिन्होंने मुझे समझा हैजिन्होंने मुझे चाहा हैजिनसे मेरा हृदय जुड़ा हैवे मेरे सामने होंतो मैं ज्यादा ऊंचाइयां ले पाता हूंतो मैं वही कह पाता हूं जो कहने का मेरा मन है। अगर सामने ऐसे लते बैठे हों जो जम्हाइयां ले रहे हैंइस तरह बैठे हों कि पता नहीं क्यों आ गये हैंकि कहां फंस गयेकि इतनी देर तो दुकान ही कर ली होतीया बार—बार घड़ी देख रहे हैं कि दफ्तर चले जाएं,उस तरह के लोग अगर मेरे सामने बैठे हों तो मुझे बार—बार नीचे खींच ले आते हैं। फिर मैं उड़ान नहीं ले पाताफिर उन पर मुझे ध्यान रखना पड़ता हैनहीं तो उनका डेढ़ घंटा व्यर्थ जाएगा। उनके मतलब की कुछ बात कहूं र उनकी बुद्धि में आ सके ऐसी कुछ बात कहूं। तुम पूछते होनानक ने अपने को भगवान क्यों नहीं कहातुम्हारी वजह से। देवराज खुरानातुम रहे होओगे। तुम्हें देखकर उन्होंने कहा होगाअब क्या कहनाअब किससे कहना
'कबीर भी अपने को प्रभु का भक्त कहते थे'। नहींतुम्हें पता नहीं है। कबीर अपने को प्रभु का भक्त कहते थे,जब खोज कर रहे थेजब खोज पूरी हो गयीतब नहीं। तब तो कहा है :
हेरत हेरत हे सखीरह्या कबीर हेराइ
बुंद समानी समुद मेंसो कत हेरी जाइ 
फिर तो और ऊंची उड़ान ली :
हेरत हेरत हे सखीरह्या कबीर हेराइ
समुद समाना बुंद मेंसो कत हेरी जाइ
समुद्रविराट आकर बूंद में समा गया। और क्या मतलब होता है भगवान काबुद्धि इतनी जड़ है कि तुम सिर्फ शब्द को ही समझोगेइशारे न समझोगेकबीर कहते हैं : बूंद में सागर आकर समा गया हैकबीर तो गयाअब सतर ही बचा है। और क्या अर्थ होता है भगवान को खोज लेने काकबीर ने कहा है : एक दिन था कि मैं परमात्मा को खोजता घूमता थाअब ऐसा दिन आ गया है कि परमात्मा मेरे पीछे—पीछे चलता हैकहता है : कबीरकबीर! और क्या मतलब होता हैतुम पूछते हो, ' और महावीरबुद्ध ने कभी भगवान होने का दावा नहीं किया। तुम्हें पता नहीं है। महावीर ने कहा है : अप्पा सो परमप्पा', आत्मा परमात्मा है। और क्या कहना हैजिसने आत्मा को जाना उसने परमात्मा को जाना। महावीर ने तो कहा हैऔर कोई परमात्मा है ही नहीं। इसलिए महावीर ने भगवान को नहीं माना,कि कोई दुनिया को बनानेवाला भगवान है। महावीर ने तो कहा हैजो स्वयं को जान लेता हैवह भगवान है। भगवत्ता आत्म— अनुभूति का नाम है।
और तुम्हें बुद्ध का भी कुछ पता नहीं। क्योंकि बुद्ध ने कहा है कि मैंने वह सब पा लिया जो पाया जा सकता हैअब पाने को कुछ भी नहीं बचा। मैंने परिपूर्ण सम्यक संबोधि पा ली। मैं उस जगह आ गयाजहा सब जान लिया गया है। भगवान का और क्या अर्थ होता हैसंक्षिप्त शब्द में इन्हीं सारी बातों को कहने का ढंग है।
तुम कहते हो, 'यीशु मसीह ने भी अपने को ईश्वर का इकलौता बेटा कहा है '। उससे मैं राजी नहीं होता। इकलौता बेटा कहना गलत बात है। क्योंकि फिर तुम किसके बेटे होनाजायजअगर जीसस ईश्वर के इकलौते बेटे हैं,तो तुम किसके बेटे होवह तो बात गलत है। उससे मैं राजी नहीं हूं। वह तो उन्होंने गलत बात कहीं। उससे तुम भी राजी मत होना। क्योंकि उसका मतलब यह होता है कि जीसस भर उनके बेटे हैं। और तुममैं कहता हूं र तुम सब उसके बेटे हो। लेकिन बेटे में थोड़ा फासला रह जाता है। उतना फासला भी क्यों रखना। बेटा बाप नहीं हैफासला है। इतना फासला भी क्यों बचाना चाहते होतुम उस परमस्रोत के साथ एक क्यों नहीं होना चाहते?
जीसस को भी कहने का कारण था। इतना फासला बनाकर रखायहूदियों की वजह से। यहूदी तो यह भी बर्दाश्त नहीं कर सके कि जीसस ईश्वर के बेटे हैं। ईश्वर हैंयह तो कहने पर बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। यह लप्तेगें की जड़ताओं के कारण इस तरह की बातें कहनी पड़ी। लेकिन बहुत जगह जीसस ने सूचना दे दी है अपने शिष्यों को,कि मेरा पिता और मैं एक हैं। तुमने अगर मुझे देख लिया तो मेरे पिता को देख लिया। यह वचन है। जिसने मुझे चाहाउसने परमात्मा को चाह लिया।
लेकिन इकलौता बेटा शब्द मुझे पसंद नहीं है। वह जीसस ने कहा भी नहीं है। ईसाइयों ने गढ़ा है। ईसाइयों को गढ़ना पड़ा। क्योंकि ईसाइयों को डर लगा कि अगर कई बेटे होंतो झंझट— झगड़ा होगाफिर बंटवारा होगाफिर पूंजी बटेगी। और ईसाइयों का दिल है कि सारी दुनिया ईसाई हो जाए। अगर कृष्य भी ईश्वर के बेटे हैंऔर बुद्ध भी और महावीर भी और मुहम्मद भीतो फिर झंझट होगी। फिर यह जमीन बटेगी। फिर तुम यह नहीं कह सकते कि सारी जमीन ईसाइयत हो जाए। फिर हिंदू भी रहेंगेमुसलमान भी रहेंगेबौद्ध भी रहेंगे। इनको इनकार करने के लिए ईसाइयों ने यह कहानी गढ़ी कि ईश्वर का इकलौता बेटा!
इस तरह की कहानियां सभी धर्मों ने गढ़ी हैं। वे मनुष्य के ओछेपन से पैदा होती हैं। जैसे हिंदू कहते हैंईश्वर ने बस एक ही किताब लिखी है—वेद। वह भी वही की वही बात हैताकि बाइबिल गलत हो जाएकुरान गलत हो जाए,धम्मपद गलत हो जाए। वही की वही तरकीब है। ईश्वर का बेटा एक ही हैताकि बाकी सब बेटे नाजायज हो गये। ये तरकीबें चालबाजिया हैंइनसे सावधान हो जाओ। कुरान भी उसकी किताब हैबाइबिल भी उसकी किताब हैवेद भी उसकी किताब है। असल में तो जब भी सत्य उतरेगाउसी का होगा। किसी और का हो सकता हैऔर कृष्य भी उसी के बेटे हैंऔर बुद्ध भी। और कृष्ण और बुद्ध और क्राइस्ट ही नहींतुम भी उसी के बेटे होउसी की बेटी हो। क्योंकि और कहां से आओगेवही मूलस्रोत है। लेकिन एक और ऊंची ऊंचाई हैजो उपनिषदों ने छुईजब कहा : अहं ब्रह्मास्मि', मैं ब्रह्म हूं। बेटा बाप में लीन हो गया। 'बूंद समानी समुद मेंसमुद समाना बुंद में'। कब तक दूरी रखोगे?लीन क्यों नहीं हो जाते?
यीशु मसीह ने भी अपने को ईश्वर का इकलौता बेटा कहा था। आप भी उन्हीं की तरह एक पूर्ण संत हैं। न तो मैं पूर्ण हूं। और न मैं संत हूं। मैं ठीक तुम जैसा अपूर्ण आदमी हूं। मैं इस बात को दोहराना चाहता हूं। तभी मेरी बात समझ पाओगे। पूर्ण हूं संत हूं बस तुमने दूर करना शुरू किया। तुमने कहाहम हम हैं, तुम— आप आप हैं। आपकी बातें सुनेंगेआपकी पुजा कर लेंगेआपके चरणों में सिर झुका देंगेमगर आपकी बातें मानेंगे नहीं— आप आप हैंहम हम हैंहम तो अपने ही ढंग से जीएंगेहम तो कीड़े—मकोड़े की तरह ही सरकेंगे। हम आकाश में नहीं उड़ सकते। आप पूर्ण संत हैं। नहींमैं पूर्ण संत नहीं हूं। मैं ठीक तुम जैसा हूं। मेरा सारभूत संदेश यही है कि ठीक तुम जैसा हूं और फिर भी मैं कहता हूं मैं भगवान हूं। ताकि तुम्हें याद मैं दिल सकूं कि तुम भी भगवान हो। और यह याद तुम्हारे भीतर सघन हो जाए तो क्रांति हो जाएगीआग जलेगीसब भस्मीभूत हो जाएंगे तुम्हारे स्वप्न। यह आग इतनी बड़ी है।
लेकिन तुम पूर्णता थोपना चाहोगे मेरे ऊपरतुम संतत्व थोपना चाहोगे। ये तुम्हारी तरकीबें हैंतुम्हारे दूर करने के उपाय हैं। जीतना दूर बन सके तुम करना चाहोगे। अभी तुम कह रहे होपूर्ण संत होजब मैं मर जाऊंगातुम कहोगे— भगवान! तब बिलकुल फासला कर दिया। ईश्वर के अवतार! बात खत्म कर दी। तुमने छुटकारा कर लिया। तुम भागे अपनी दुकान मेंकि अब ईश्वर के अवतार से अपना क्या लेना—देनामंदिर में बिठा दोकभी पूजा कर लेंगे वर्ष में एक दिनकभी जाकर प्रसाद चढ़ा देंगेबांट देंगे। लेकिनबस छुटकारा हो गया। तुमने कृष्ण की सुनीतुमने राम की सुनीतुमने बुद्ध की सुनीतुमने उनको भगवान कहकर छुटकारा पा लिया।  और मरने के बाद तुम भगवान कहकर छुटकारा पाते हो। 
इसलिए मैं खुदअभी जिंदा मैं तुमसे कह रहा हूं कि मैं भगवान हूं। छुटकारा पाने का मैं उपाय नहीं छोड़ रहा हूं। और तुमसे जिंदा में कह देना चाहता हूं ताकि यह बात कायम—रिकार्ड पर रहेकि मैं संत नहीं हूं मैं पूर्ण नहीं हूं मैं ठीक तुम जैसा आदमी हूंऔर फिर भी कहता हूं—मैं भगवान हूं। और चाहता हूं कि तुम भी उदघोषणा करो कि तुम भी भगवान हो।
भगवान होने के लिए न तो पूर्ण होना जरूरी हैन संत होना जरूरी है। भगवान हम हैं। सिर्फ जानना जरूरी है। इस भेद को खयाल में लो। भगवान कोई लक्ष्य नहीं है आगेभविष्य मेंकि चढ़ेंगेपहुंचेंगेबड़ी यात्रा करेंगेतपश्चर्या,यहवहफिर एक दिन पहुंच पाएंगे। भगवान कोई गौरीशंकर का शिखर नहीं है। भगवान तुम्हारी अंतर्दशा है। तुम भगवान हो। इसका तुम्हें बोध नहीं है। बस इसकी प्रत्यभिज्ञा करनी हैइसकी पहचान करनी है।
मंजिलों के करीब होकर भी 
मंजिलों की है जुस्तजू बाकी
तुम करीब होतुम वहीं विराजमान होमंजिल मिली हुई है। मगर तुम तलाश रहे होइसलिए खो रहे हो। रोको तलाशझांको भीतरऔर पा लो।
और ध्यान रखनाऐसा नहीं है कि कभी—कभी किसी एकाध को भगवान होना है। यहां कुछ कंजूसी नहीं हैयह अस्तित्व कंजूस है ही नहीं। तुम इतने घबड़ाओ मत। तुम कहते हो कि अब सभी भगवान हो जाएंगेऐसा कैसे हो सकता हैयहां सभी वृक्षों में फूल खिल रहे हैंऐसा कैसे हो रहा हैयहां सभी प्राणों में हृदय धड़क रहा हैऐसा कैसे हो रहा हैऐसे ही तुम सब भगवान भी हो जाओगे।   लेकिन कई अड़चनें हैं। हिंदू को डर लगता हैअगर मैं कहूं कि मैं भगवान हूं तो वह कहता हैफिर हमारे कृष्ण और हमारे राम! उनका दावेदार पैदा हो गयाउनके भीतर राजनीति पैदा होती है। जैन को अड़चन होती है। र्तीथकर कर तो चौबीस ही हुएबस उसके बाद खत्म कर दिया उन्होंने सिलसिलाउसके बाद कोई र्तीथकर हो नहीं सकताकोई भगवान हो नहीं सकता। पच्चीसवां वे कैसे स्वीकार करेंऔर मैं कहता हूं पच्चीसवें पर रुकने की जरूरत नहीं हैकहीं रुकने की जरूरत नहीं हैहर दीया जलना चाहिएसब दीये जलने चाहिए।
मैकदे पर तश्नगी छा जाएगी।
एक मैकश भी अगर प्यासा रहा

इस मधुशाला में कोई प्यासा नहीं रहना चाहिएएक भी प्यासा नहीं रहना चाहिए। जिस दिन यह सारा जगत भगवत्ता में होकर नाचेगाउस दिन आएगा रामराज्यजिस दिन सब राम होंगेउस दिन आएगा रामराज्य। किसी राम के आने से नहीं आता। राम तो कई बार आए और गये। उससे रामराज्य नहीं आता। जब तुम्हारे सबके भीतर राम की सुगंध उठेगी! राम का मंत्र नहीं जपोराम की सुगंध उठने दो। भगवान— भगवान कहकर मत पुकारो,

 भगवान हो जाओ।
जहां आंसू गिरे इक चश्मए—जमजम वहां उबला
पड़ी बुनियाद काबे कीजहां मैंने जबीं रख दी






तुम जिस दिन इस भगवत्ता के भाव से भरोगेजहा तुम्हारे आंसू गिर जाएंगेवहां चश्मए—जमजमवहा अमृत का झरना फूट पड़ेगा। और जहां तुम सिर झुका दोगेवहां काबा बन जाएगाजहां तुम बैठोगेवहां तीर्थ! इस उदघोषणा को करने के लिए ही मैं कुछ कह रहा हूं।
तुम पूछते हो कि भगवान तो वह है जो सबको पैदा कर रहा है।
भगवान वह नहीं है जो सबको पैदा कर रहा है। जरा उस पर भी तो दया करो! अब तक घबड़ा गया होगा। अब तक परेशान हो गया होगा। अब तक थक गया होगा। तुम्हें पैदा करते—करते कितना समय हो गयाहार गया होगा;उदास हो गया होगाया पागल हो गया होगा। भगवान वह नहीं है जो तुम्हें पैदा कर रहा है। भगवान स्रष्टा नहीं हैवह धारणा छोड़ो। भगवान इस सृष्टि का आधार है। भगवान सृष्टि है। वही फूल में खिल रहा हैवही मनुष्य में बोल रहा हैवही पत्थर में सो रहा है। भगवान अलग नहीं है। ऐसा नहीं है भगवान जैसे मूर्तिकार मूर्ति बनाता है। फिर मूर्ति बन गयी तो मूर्तिकार अलग हो गयामूर्ति अलग हो गयी। भगवान ऐसे है जैसे नृत्यकारनर्तकनाचता है तो नृत्य रहता हैनाच बंद हुआ कि नृत्य भी गया। नृत्य को और नर्तक को अलग नहीं कर सकते हो। इसलिए तो हमने नटराज की प्रतिमा बनायी। जो लोग कहते हैंभगवान कुम्हार की तरह हैघड़े की तरह तुम्हें ढाल रहा हैउन्हें कुछ पता नहीं है। भगवान नटराज है। तुम उसका नृत्य हो। उससे अलग नहीं हो। तुम्हें पैदा नहीं कर रहा हैतुम्हारे भीतर पैदा हुआ है।
इस भेद को खयाल में लेना। यह भेद बुनियादी है। जो मुझे समझना चाहते हैंउन्हें यह समझ लेना पड़ेगा। भगवान ने तुम्हें पैदा नहीं किया हैभगवान तुम्हारे भीतर पैदा हुआ है। भगवान ने तुम्हें बनाया नहीं हैतुम बना है। और तुम्हारे भीतर ही नहींइतना विराट है कि तुममें कैसे चुक जाएगाइसलिए वृक्षों मेंपौधों मेंपत्थरों मेंचांद—तारों मेंसब में वही हुआ हैअनेक— अनेक रूपों मेंअनेक ढंगों में। सतर के किनारे जाओसतर में उठती लहरों को देखो। सागर लहरों को पैदा नहीं कर रहा हैसतर लहरा रहा है। अगर सागर लहरों को पैदा करता होतो दो— चार लहरों को बीनकर और गट्ठर बांधकर घर ले आना। न ला सकोगे। सागर से लहरें अलग नहीं की जा सकती। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि सागर लहरों को पैदा कर रहा हैठीक यही होगा कहना कि सागर लहरों में लहरा रहा है। ठीक ऐसा ही अस्तित्व है। यहां स्रष्टा सृष्टि में लहरा रहा है। यह दृष्टि तुम्हें साफ हो तो ही मेरी बातें तुम्हें समझ में आ सकेंगी। अन्यथा तुम बचकाने प्रश्न पूछते रहोगे।
तुम पूछ रहे हो कि क्या आप सबको पैदा कर रहे हैंमैं ऐसी झंझट क्यों लूंगामुझे क्या लेना— देना किसी को पैदा करने सेकोई पैदा नहीं कर रहा हैकोई कर्ता की तरह अलग नहीं बैठा है। यह जो विराट ऊर्जा है अस्तित्व की,यही भगवत्ता है। सृष्टि की क्रिया हो रही हैलेकिन स्रष्टा कोई भी नहीं है। सृजन की क्रिया घट रही हैलेकिन घटा कोई भी नहीं रहा है। यही तो इसका रहस्य हैयही तो इसकी अपूर्व गरिमा है। यहां कोई बनानेवाला नहीं हैऔर चीजें बन रही हैं। स्रष्टा स्वयं अनेक— अनेक रूपों में ढल रहा है। सृजन शक्ति है परमात्मास्रष्टा नहीं। वह भाषा गलत है। लेकिन तुम्हें दिखायी नहीं पड़ रहा हैक्योंकि तुम धारणाओं में जकड़े बैठे हो। तुम सोच रहे होऊपर कहीं कोई बैठा है,वह सारा काम चला रहा है—कोई बड़ा इंजीनियरकि कोई बड़ा यंत्रविद। तुम्हारी धारणा बच्चों की धारणा है।
हैरान हूं क्यों मुझको दिखायी नहीं देते
सुनता हूं मेरी बज्म में वह आए हुए हैं
दिखायी दे नहीं सकताजब तक तुम्हारी ये धारणाएं न गिर जाएं। ये धारणाएं जाएं तो तुम्हें दिखायी दे। बुद्ध का बड़ा प्रसिद्ध वचन है कि जब मेरी दृष्टि बिलकुल निर्मल हुई तो मुझे कुछ दिखायी नहीं पड़ाबस दृष्टि निर्मल रह गयीकोई दिखायी नहीं पड़ा। कोई परमात्मा नहींकोई विषय नहींदृष्टि जब मेरी निर्मल हुईशुद्ध हुईतो कोई दिखायी नहीं पड़ा। फिर क्या हुआदृष्टि की इस शुद्धता में दृष्टि ने अपने को जाना। द्रष्टा को कोई दिखायी नहीं पड़ाद्रष्टा को द्रष्टा का अनुभव हुआ। इसको आत्मज्ञान कहा हैसमाधि कहा हैनिर्वाण कहा है।
तुम जिस दिन अपने भीतर छिपे हुए द्रष्टा को देख लोगेउसी दिन तुम हसोगे कि तुम कहां खोजने चल पड़े थेदूर जाने की जरूरत न थी। कहीं जाने की जरूरत न थी। जाने की जरूरत न थी। सिर्फ शात होकर भीतर देख लेने की जरूरत थी।
मैंने देखा और पाया। मैं तुमसे कहता हूं, तुम भी देखो और पा लो। तुम सिद्धातों में मत उलझे रहो।

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