ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—1

ज्‍योतिष शायद सबसे पुराना विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्‍यादा तिरस्‍कृत विषय भी है। सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्‍य जाति के इतिहास की जितनी खोजबीन हो सकी उसमें ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्‍योतिष मौजूद न रहा हो। जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हडडी के अवशेषों पर ज्‍योतिष के चिन्‍ह अंकित है। पश्‍चिम में,पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है। वह जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है। जिन पर ज्योतिष के चिन्‍ह और चंद्र की यात्रा के चिन्ह अंकित है। लेकिन भारत में तो बात और भी पुरानी है। 
      ऋग्‍वेद में पच्‍चान्‍नबे हजार वर्ष पूर्व-नक्षत्रों की जैसी स्‍थिति थी उसका उल्‍लेख है। इसी आधार पर लोकमान्‍य तिलक ने यह तय किया था कि ज्‍योतिष नब्‍बे हजार वर्ष से ज्‍यादा पुराने तो निश्चित है। क्‍योंकि वेद में यदि पच्‍चान्‍नबे हजार वर्ष पहले जैसे नक्षत्रों की स्‍थिति थी, उसका उल्‍लेख है, तो वह उल्‍लेख इतना पुराना तो होगा ही। क्‍योंकि उस समय जो स्‍थिति थी नक्षत्रों की उसे बाद में जानने का कोई भी उपाय नहीं था। अब जरूर हमारे पास ऐसे वैज्ञानिक साधन उपलब्‍ध हो सके हैं कि हम जान सकें अतीत में कि नक्षत्रों की स्‍थिति कब कैसी रही होगी।
      ज्‍योतिष की सर्वाधिक गहरी मान्‍यताएं भारत में पैदा हुईं। सच तो यह है कि ज्‍योतिष के कारण ही गणित का जन्‍म हुआ। ज्‍योतिष की गणना के लिए ही सबसे पहले गणित का जन्‍म हुआ। इस लिए अंक गणित के जो अंक है वह भारतीय है। सारी दुनिया की भाषाओं में। एक से लेकर नौ तक जो गणना के अंक हैं, वे समस्‍त भाषाओं में जगत की, भारतीय हैं। और सारी दुनिया में नौ डिजिट नौ अंक स्‍वीकृत हो गए है। वे नौ अंक भारत में पैदा हुए और धीरे-धीरे सारे जगत में फैल गए।
      जिसे आप अंग्रेजी में नाइन कहते है वह संस्‍कृत के नौ का ही रूपांतरण है। जिसे आप एट कहते है, वह संस्‍कृत के अष्‍ट का ही रूपान्‍तरण है। एक से लेकिन नौ तक जगत की समस्‍त सभ्‍य भाषाओं में गणित के नौ अंकों का जो प्रचलन है वह भारतीय ज्‍योतिष के प्रभाव में ही हुआ है।
      भारत से ज्‍योतिष की पहली किरणें सुमेर की सभ्‍यता में पहुंची। सुमेर वासियों ने सबसे पहले ईसा से छह हजार साल पूर्व पश्‍चिम के जगत के लिए ज्‍योतिष का द्वार खोला। सुमेर वासियों ने सबसे पहले नक्षत्रों के वैज्ञानिक अध्‍ययन की आधार शिलाएं रखी। उन्‍होंने बड़े ऊंचे, सात सौ फिट ऊंचे मीनार बनाए और उन मीनारों पर सुमेर के पुरोहित चौबीस घण्‍टे आकाश का अध्‍ययन करते थे।
      दो कारण से—एक तो सुमेर के तत्‍वविदों को इस गहरे सूत्र का पता चल गया था कि मनुष्‍य के जगत में जो भी घटित होता है। उस घटना का प्रांरभिक स्‍त्रोत नक्षत्रों से किसी न किसी भांति सम्‍बन्‍धित है।
      जीसस से छह हजार वर्ष पहले सुमेर में यह धारणा थी की पृथ्‍वी पर जो भी बीमारी पैदा होती है, जो भी महामारी पैदा होती है वह सब नक्षत्रों से सम्‍बन्‍धित है। अब तो इसके लिए वैज्ञानिक आधार भी मिल गए है। और जो लोग आज के विज्ञान को समझते है वे कहते है कि सुमेर वासियों ने मनुष्‍य जाति का असली इतिहास प्रांरभ किया। इतिहासज्ञ कहते है कि सब तरह का इतिहास सुमेर से शुरू होता है।
      उन्‍नीस सौ बीस मैं चीजेवस्‍की नाम के एक रूसी वैज्ञानिक ने इस बात की गहरी खोजबीन शुरू की और पाय कि सूरज पर हर ग्‍यारह वर्षों में पीरिर्योडिकली बहुत बड़ा होता है। सूर्य पर हर ग्‍यारह वर्ष में आणविक विस्‍फोट होता है।  और चीजवस्‍की ने यह पाया कि जब भी सूर्य पर ग्‍यारह वर्षों में आणविक विस्‍फोट होता है। तभी पृथ्‍वी पर युद्ध और क्रांति यों के सूत्रपात होते है। और उसके अनुसार विगत सात सौ साल के लम्‍बे इतिहास में सूर्य पर जब भी कभी ऐसी घटना घटी है। तभी पृथ्‍वी पर दुर्घटनाएँ घटी है।
      चीजवस्‍की ने इसका ऐसा वैज्ञानिक विश्‍लेषण किया था कि स्‍टैलिन ने उसे उन्‍नीस सौ बीस में उठाकर जेल में डाल दिया था। स्‍टैलिन के मरने के बाद ही चीजवस्‍की छूट सका। क्‍योंकि स्‍टैलिन के लिए तो अजीब बात हो गयी। मार्क्‍स का और कम्युनिस्ट का ख्‍याल है कि पृथ्‍वी पर जो क्रांतियां होती है। उनका मूल कारण मनुष्‍य-मनुष्‍य के बीच आर्थिक वैभिन्‍य है। और चीजवस्की कहता है कि क्रांति यों का कारण सूरज पर हुए विस्‍फोट है।
      अब सूरज पर हुए विस्‍फोट और मनुष्‍य के जीवन की गरीबी और अमीरी का क्‍या संबंध। अगर चीजवस्‍की ठीक कहता है तो मार्क्‍स की सारी की सारी व्‍याख्‍या मिट्टी में चली जाती है। तब क्रांति यों का कारण वर्गीय नहीं रह जाता। तब क्रांति यों का कारण ज्योतिषीय हो जाता है। चीजवस्‍की को गलत तो सिद्ध नहीं किया जा सका क्‍योंकि सात सौ साल की जो गणना उसने दी थी इतनी वैज्ञानिक भी और सूरज में हुए विस्‍फोटों के साथ इतना गहरा संबंध उसने पृथ्‍वी पर घटने वाली घटनाओं का स्‍थापित किया था कि उसे गलत सिद्ध करना तो कठिन था। लेकिन उसे साइबेरिया में डाल देना आसान था।
      स्‍टैलिन के मर जाने के बाद ही चीजवस्‍की को स्‍ख्‍ुश्रचेव साइबेरिया से मुक्‍त कर पाया। इस आदमी के जीवन के कीमती पचास साल साइबेरिया में नष्‍ट हुए। छूटने के बाद भी वह चार-छह महीने से ज्‍यादा जीवित नहीं रह सका। लेकिन छह महीने में भी वह अपनी स्‍थापना के लिए और नये प्रमाण इकट्ठे कर गया। पृथ्‍वी पर जितनी महामारियाँ फैलती है, उन सबका संबंध भी वह सूरज से जोड़ गया है।
      सूरज, जैसा हम साधारण: सोचते है ऐसा कोई निष्कृत अग्रि का गोला नहीं है। वरन अत्‍यन्‍त सक्रिय और जीवन्‍त अग्‍नि संगठन है। और प्रतिफल सूरज की तरंगों में रूपांतरण होते रहते है। और सूरज की तरंगों का जरा सा रूपांतरण भी पृथ्‍वी के प्राणों को कंपित कर जाता हे। इस पृथ्‍वी पर कुछ भी ऐसा घटित नहीं होता जो सूरज पर घटित हुए बिना घटित हो जाता है।
      जब सूर्य का ग्रहण होता है तो पक्षी जंगलों में गीत गाना चौबीस घण्‍टे पहले से ही बंद कर देते है। पूरे ग्रहण के समय तो सारी पृथ्‍वी मौन हो जाती है। पक्षी गीत बंद कर देते है और सारे जंगलों के जानवर भयभीत हो जाते है। किसी बड़ी आशंका से पीड़ित हो जाते है।
      बन्‍दर वृक्षों को छोड़कर नीचे आ जाते है। वे भीड़ लगा कर किसी सुरक्षा का उपाय करने लगते है। और एक आश्चर्य कि बन्‍दर तो निरन्‍तर बातचीत और शोर-गुल में लगे रहते हे। सूर्य ग्रहण के वक्‍त इतने मौन हो जाते है जितने कि साधु और संन्‍यासी भी ध्‍यान में नहीं होते है। चीजेवस्‍की ने ये सारी की सारी बातें स्‍थापित की है।
      सुमेर में सबसे पहले यह ख्‍याल पैदा हुआ था। फिर उसके बाद पैरासेल्‍सस नाम के स्‍विस चिकित्‍सक ने इसकी पुनर्स्थापना की। उसने एक बहुत अनूठी मान्‍यता स्‍थापित की, और वह मान्‍यता आज नहीं तो कल समस्‍त चिकित्‍सा विज्ञान को बदलने वाली सिद्ध होगी। अब तक उस मान्‍यता पर बहुत जोर नहीं दिया गया है। क्‍योंकि ज्‍योतिष तिरस्‍कृत विषय है—सर्वाधिक पुरानी, लेकिन सर्वाधिक तिरस्‍कृत यद्यपि सर्वाधिक मान्‍य भी।
      अभी फ्रांस में पिछले वर्ष गणना की गई तो सैंतालीस प्रतिशत लो ज्‍योतिष में विश्‍वास करते है। यह विज्ञान है—फ्रांस में,अमरीका में पाँच हजार बड़े ज्‍योतिषी दिन रात काम में लगे रहते है। और उनके पास इतने ग्राहक हैं कि वे पूरा काम भी निपटा नहीं पाते है। करोड़ों डालर अमरीका प्रति वर्ष ज्‍योतिषियों को चुकाता है। अन्‍दाज है कि सारी पृथ्‍वी पर कोई अठहत्‍तर प्रतिशत लोग ज्योतिष में विश्‍वास करते हे। लेकिन वे अठहत्तर प्रतिशत लोग सामान्‍य हे। वैज्ञानिक, विचारक, बुद्धिवादी ज्‍योतिष की बात सुनकर ही चौंक जाते है।
      सी. जी. जुंग ने कहा है कि ती सौ वर्षों से विश्विद्यालयों के द्वार ज्‍योतिष के लिए बंद है, यद्यपि आनेवाले तीस वर्षों में ज्‍योतिष इन बंद दरवाज़ों को तोड़कर विश्‍वविद्यलयों में पुन: प्रवेश पाकर रहेगा। प्रवेश पाकर रहेगा इसलिए कि ज्‍योतिष के संबंध में जो-जो दावे किए गए थे उनको अब तक सिद्ध करने का उपाय नहीं था। लेकिन अब उनको सिद्ध करने का उपाय है।   
      पैरासेल्‍सस ने एक मान्‍यता को गति दी और वह मान्‍यता यह थी कि आदमी तभी बीमार होता है। जब उसके और उसके जन्‍म के साथ जुड़े हुए नक्षत्रों के बीच का तारतम्‍य टुट  जाता है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। उससे बहुत पहले पाइथागोरस ने यूनान में, कोई ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व आज से कोई पच्‍चीस सौ वर्ष पूर्व, ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व पाइथागोरस ने प्लैनेटोरियम हार्मोन, ग्रहों के बीच एक संगीत का संबंध है—इसके संबंध में एक बहुत बड़े दर्शन को जन्‍म दिया था। ............क्रमश:  आगे।

--ओशो 

2 comments:

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