परिशिष्ट प्रकरण—14 बोतल का रहस्‍य

मेरे पिता, जब वे किस समारोह में, किसी विवाह में, किसी जन्‍म-दिवस की दावत में या कहीं और जा रहे होते,तो मुझको साथ ले जाया करते थे। वे मुझे इस शर्त पर ले जाते थे। कि मैं बिलकुल खामोश रहूंगा, अन्‍यथा तुम कृपया घर में ही रहो।
       मैं कहता: लेकिन क्‍योंमेरे अतिरिक्‍त प्रत्‍येक व्‍यक्ति को बोलने की अनुमति है।
      वे कहते, तुम जानते हो, मैं जानता हूं,और प्रत्‍येक जानता है। कि तुमको बोलने की अनुमति क्‍यों नहीं है—क्‍योंकि तुम एक उपद्रव हो।
      लेकिन, मैं कहता, उन बातों में जितना संबंध मुझसे है आप वचन दें कि आप मेरे मामलों में हस्‍तक्षेप नहीं करेंगे, और मैं बचन देता हूं कि में खामोश रहूंगा।  
      और अनेक बार ऐसा हो गया कि उनको हस्‍तक्षेप करना पडा। उदाहरण के लिए, यदि काई बड़ी उम्र का व्‍यक्‍ति मिल गया—कोई दूर का सबंधी, परंतु भारत में इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है—मेरे पिता उसके चरणस्‍पर्श करते और मुझसे कहते,उनके पैर छुओ।
      मैं कहता: आप मेरे मामले में हस्‍तक्षेप कर रहे है। और हमारा समझौता समाप्‍त। मैं इन बुजुर्ग व्‍यक्‍ति के चरण‍ क्‍यों स्पर्श करूं? उनका मस्‍तक स्‍पर्श क्‍यों न करूं, यदि आप उनके चरणस्‍पर्श करना चाहते है तो उनको दुबारा, तिबारा स्‍पर्श कर सकते है। मैं हस्‍तक्षेप नहीं करूंगा। लेकिन मैं चरण क्‍यों स्‍पर्श क्‍यों करूं?
      और इतना उपद्रव पर्याप्त था। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति मुझको समझता कि वे बूढे है। मैं कहता मैंने अनेक बूढे लोगों को देखा है। मेरे मकान के ठीक सामने एक बूढा हाथी है, मैं कभी उसके पैर नहीं छूता। वह हाथी एक पुजारी का है, वह बहुत बूढ़ा हाथी है, मैंने कभी उसके पैर नहीं छुए। और वह समझदार है—मैं सोचता हूं कि इन सज्‍जन से अधिक समझदार है।
      मात्र बूढ़ा हो जाना उनको कोई गुणवता प्रदान नहीं कर देता। मूर्ख सदा मूर्ख रहता है—शायद जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ेगी वह और मूर्ख हो जाएगा। क्‍योंकि तूम वैसे ही बने रहते हो। तुम और विकसित होते चले जाते हो। और मूढ़ जब अधिक आयु का हो जाता है....तो उसकी मूढ़ता बहुगुणित हो जाती है। और यही वह समय है जब वह अति आदरणीय हो जाता है। मैं इन बूढे सज्‍जन के चरणस्‍पर्श नहीं करने जा रहा हूं। जब तक कि यह सिद्ध न कर दिया जाए कि मैं ऐसा क्‍यों करूं?
      एक बार मैं एक अंतिम संस्‍कार में गया; मेरे एक शिक्षक का देहांत हो गया था। वे मेरे संस्‍कृत के शिक्षक थे—बहुत स्‍थूलकाय, दिखने में हास्‍यास्‍पद, जिस तरह के वस्‍त्र पुराने ब्राह्मण, पुरातन काल के बाह्रम्‍ण पहना करते थे। वैसे हास्य पद वस्‍त्र वे बड़ी पगड़ी के साथ पहना करते थे। सारे विद्यालय के लिए वे हंसी का कारण थे। लेकिन वे बहुत सीधे-सादे भी थे। सीधे-सादे व्‍यक्‍ति को हिंदी में भोले कहते है, इस लिए हम लोग उनको भोले कहा कहते थे। जैसे ही वे कक्षा में प्रवेश करते,पूरी कक्षा जोर से उद्घोष करती, जय भोले। भोले जिंदा बाद। और निस्‍संदेह वे पूरी कक्षा को दंडित नहीं कर सकते थे। अन्‍यथा वे किस भांति पढ़ाते,किसको पढ़ाते।
      उनका देहावसान हो गया। इसलिए स्‍वभावत: यह सोचते हुए कि वे मेरे शिक्षक थे—मेरे पिता ने मुझ से समझौते कि बात नहीं की। लेकिन मैं समझौते का पालन न कर सका। क्‍योंकि वहां जो घटित हो गया उसकी मैंने अपेक्षा नहीं की थी—किसी ने उसकी अपेक्षा नहीं की थी। जब हम वहां पहुंचे तो उनका मृत शरीर वहां रखा हुआ था। उनकी पत्‍नी दौड़ती हुई बाहर आई और उनके उपर गिर पड़ी और बोली, हाए मेरे भोले। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति खामोश खड़ा था। लेकिन मैं नहीं। मैंने शांत रहने का भरसक प्रयत्‍न किया, लेकिन मैंने जितना अधिक प्रयास किया वह उतना ही कठिन होता चला गया। मैं ठहाका मार कर हंस पडा और मैंने कहा, यह तो कमाल हो गया।
      मेरे पिता ने कहा: मैंने यह सोच कर कि वे तुम्‍हारे शिक्षक थे और तुम सम्‍मानपूर्ण रहोगे, तुमने चलने से पहले समझोता कि बात नहीं की थी।
      मैंने कहा: मैं उनके प्रति असम्‍मान पूर्ण नही हूं। लेकिन मैं उस संयोग से आवक रह गया हूं। भोले उनका उपनाम था और वे उससे क्रोधित हो उठते थे। अब वे बेचारे मर चुके है। और उनकी पत्‍नी उनको भोले कह कर पुकार रही है। और अब वे कुछ कर भी नहीं सकते। मुझे बस उनके लिए अफसोस हो रहा है।
      मैं अपने पिता के साथ जहां कहीं भी जाता वे हमेशा समझौता करके जाया करते, लेकिन सदैव इसे भंग करनेवाले पहले पक्ष वे ही हुआ करते। क्‍योंकि कोई घटना या कुछ ऐसा हो जाता और उनको कुछ कह देना पड़ता। और उतना पर्याप्‍त होता,क्‍योंकि वही शर्त थी की उनको मेरे मामले में हस्‍तक्षेप नहीं करना था।
      नगर में एक जैन साधु आए हुए थे। जैन साधु ऊंचे आसन पर बैठते है जिससे कि खड़े होकर भी तुम अपने सिर से उनके चरणस्‍पर्श कर सको...कम से कम पाँच फुट, छह फुट ऊंचे आसन, और वे उन पर बैठते है। जैन साधु एक समूह में चलते है, उनको अकेले आवागमन की अनुमति नहीं है। पाँच जैन साधुओं को एक साथ चलना चाहिए। यह प्रयास न कर सके—जब तक के वह सभी षडयंत्र न कर लें। और मैंने उनको षडयंत्र करते और कोकाकोला प्राप्‍त  करते हुए देख लिया था। इसीलिए मुझे यह घटना याद है।
      उनको रात में पानी तक पीने कि अनुमति नहीं है। और मैंने रात में कोक कोला पीते हुए देखा है। वास्‍तव में दिन में कोको कोला पीना खतरनाक था। क्‍योंकि यदि कोई देख ले तो, इसलिए केवल रात में केवल....मैं स्‍वयं ही लेकर गया था,इसलिए इसके बारे में कोई समस्‍या नहीं थी। उनके लिए और कौन लेकिन आताकोई जैन ऐसा करने को तैयार नहीं होता,लेकिन वे मुझको जानते थे। और वे जानते थे कि कोई भी दुस्साहसी कार्य हो और मैं उसे करने को तैयार रहूंगा।
      तो वहां पर पाँच आसन बने हुए थे। लेकिन एक साधु बीमार था, इसलिए जब मैं अपने पिता के साथ वहां गया तो मैं पांचवें आसन पर चला गया आरे उस पर बैठ गया। मैं अब भी अपने पिता को , और जिस ढंग से उन्‍होंने मुझको देखा था,याद कर सकता हूं.....उनको बोलने के लिए शब्‍द तक नहीं मिल सके; वे बोले, तुमसे क्‍या कहा जाए। और वे मेरे क्रियाकलाप में हस्‍तक्षेप नहीं कर सकें, क्‍योंकि मैंने किसी के साथ‍ कुछ गलत नहीं किया था। बस एक मंच पर, लकड़ी के मंच पर बैठ कर मैं किसी व्‍यक्‍ति या किसी चीज को आहत नहीं कर रहा था। वे मेरे पास आए और उन्‍होंने कहा,ऐसा प्रतीत होता है कि समझौता हो या समझौता न हो तुम करने वाले हो जो तुम करना चाहते हो, इसलिए अब से आगे हम लोग समझौता नहीं करेंगे, क्‍योंकि यह नितांत अनावश्‍यक है।      
      मैंने उस साधु से कहा: आप दो बार सोचें फिर कुछ बोले। बोतल को याद कर लें।–क्‍योंकि उनको कोकाकोला मैंने ही लाकर दिया था।
      उन्‍होंने कहा: हां, यह ठीक है, हमें बोतल याद है। तुम कृपया इस मंच पर जितनी देर बैठना चाहो उतनी देर बैठ सकते हो।  
      मेरे पिता ने कहा: बोतल क्‍या?
      उन्‍होंने कहा: यह पूरी तरह से संतुष्‍ट है। तुम यहां बैठ सकते हो, कोई हानि नहीं है। लेकिन कृपया बोतल के बारे में चुप रहो।
      अब वहां बहुत से लोग उपस्‍थित थे, और वे सभी उत्‍सुक हो उठे....कौन सी बोतल? जब मंदिर से बाहर निकला तो प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति मेरे चारों और एकत्रित हो गया, उन सभी ने कहा: क्‍या है यह बोतल?
      मैंने कहा: यह एक रहस्‍य है। और इन मूर्खों के ऊपर जिनके आप लोग चरणस्‍पर्श करते है। यहीं मेरी शक्‍ति है। यदि मैं चाहूं तो मैं उन लोगों से यह भी कह सकता हूं कि मेरे चरणस्‍पर्श करें, अन्‍यथा बोतल.....ये मूढ़ लोग है।
      रास्‍ते में मेरे पिता ले मुझसे पूछा: तुम बस मुझको बता दो। मैं किसी को भी नहीं बताऊंगा: क्‍या है यह बोतल? क्‍या वे शराब पीते है?
      मैंने कहा: नहीं। अभी मामला इतना नहीं बिगड़ा है, लेकिन यदि वे यहां कुछ दिन और रुके रहे तो मैं उसकी व्‍यवस्‍था भी कर दूँगा। मैं उनको शराब पीने के लिए बाध्‍य कर दूँगा....वरना मैं बोतल का नाम बता दूँगा।
      सारा नगर बोतल के बारे में चर्चा कर रहा था। बोतल का मामला क्‍या है। और वे क्‍यों भय भीत हो गए थे। हमने तो हमेशा सोचा था कि ये लोग कितने आध्‍यात्‍मिक संत है। और इस लड़के ने उनको भयभीत कर दिया। और वे सभी सहमत हो गए थे। कि लड़का वहां मंच पर बैठ सकता है। जो कि शास्‍त्रों के विरूद्ध है। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति मेरे पीछे पडा था वे मुझे रिश्‍वत खिलाने को भी तैयार थे। चाहे जो कुछ भी मांग लो हमे बोतल का राज बात दो—इस बोतल की क्‍या कहानी है।
      मैंने कहा: यह एक रहस्‍य बड़ा रहस्‍य है। और मैं आप लोगों को इसके बारे में कुछ भी नहीं बताऊंगा। आप वहां क्‍यों जाते और अपने साधुओं से क्‍यों नहीं पूछते कि बोतल क्‍या है? मैं भी वहां रह सकता हूं जिससे वे झूठ न बोल सकें—और तब आप जान लेंगे कि  आप किस तरह के लोगों की पूजा करते है।
--ओशो

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