ताज महल पर ध्यान

तामहल सूफी फ़क़ीरों की कल्‍पना है। बनवाया तो एक सम्राट ने, मगर जिन्‍होंने योजना दी, वे सूफी फकीर हैं। जिन्‍होंने निर्माण किया,वे भी सूफी फकीर है। इसलिए ताज महल करे अगर तुम पूर्णिमा की रात घड़ी-दो घडी शांत बैठकर देखते रहो तो अपूर्व ध्‍यान लग जायेगा। सूफियों के हस्‍ताक्षर हैं उस पर। आकृति ऐसी है कि डूबा दे ध्‍यान में।   
      लाखों बुद्ध की प्रतिमायें बनीं, किसने बनाई? वह दुकानदारों का काम नहीं है। यह तकनीशियनों का काम भी नहीं है। ऐसी प्रतिमायें बुद्ध की बनी कि जिनके पास बैठ जाओ... पत्‍थर है, मगर पत्‍थर में इतना भर दिया, पत्‍थर में ऐसी आकृति दी,ऐसा रंग दिया, ऐसा रूप दिया, ऐसा भाव दिया, कि पत्‍थर के पास भी बैठ जाओ तो तुम्‍हारे भीतर कुछ थिर हो जाए।
      चीन में एक मंदिर है—दस हजार बुद्धो का मंदिर। उसमें दस हजार बुद्ध की प्रतिमायें है। सदियों में बना। भिक्षु बनाते ही रहे, बनाते ही रहे, बनाते ही रहे। यह काम उर्जा का ऊर्ध्‍वगमन है।
      लेकिन इस देश में एक भ्रांति फैल गई है। कि संन्‍यासी को कुछ करना नहीं चाहिए, उसे कुछ निर्माण भी नहीं करना चाहिए। संन्‍यासी का तो कुल काम इतना है कि वह सेवा ले, लोगों से सेवा ले, खुद कुछ भी न करे। लोग उसके पैर दबाये बस इतनी ही उसकी कृपा बहुत हे। ये संन्‍यासी कामवासना को न दबायेंगे तो क्‍या करेंगे? शरीर में पौष्टिक भोजन जाएगा काम के स्‍नायु जीवंत हो जाएँगे। इसी लिए जैनियों ने उस शरीर को ही सुखाना- सताना शुरू कर दिया जिससे काम न उठे, और जब कामवासना दबायेंगे तो आज नहीं कल फूटेगी, पीछे के दरवाज़ों से निकलेगी। उसे शाही मार्ग चाहिए ऊर्ध्‍वगमन के लिए शरीर से जितना काम ले उतना ही वो सहयोगी होगा।
ओशो—सहज योग
 दिन में ताज के दर्शन:
      में हाई स्‍कूल के दिनों में ताज महल पहली बार देखने गया। हमारे हिंदी का अध्‍यापक श्री महाजन जी, वो मुझे बेहद प्‍यार करते थे। ताज महल अंदर जाते हुए उन्‍होंने मुझे से कहां ताज को सीधा मत देखना, मेरे साथ नीची गर्दन करके चलना इधर उधर मत देखना। मेरे मन कुतूहल जागा, सो में उनके पीछे चल दिया। वो मुझे ताज महल के एक दम सामने वाली जगह पर ले गये और कहां। आंखों बंद कर लो और गहरी श्‍वास लो जब तक में नहीं कहुं आंखे न खोलना। में बैठ गया। पाँच मिनट बाद गहरी होती श्‍वास मंद से मंदतर होती गई। तब उन्‍होंने मुझे कहां कुछ न सोचना केवल देखना, और होना, पूर्णता से। सच आप को विश्वास नहीं होगा। ताज महल को देख कर मेरे विचार रूक गये,मुझे लगा में किसी ओर ही लोक में चला गया। पूरा शरीर पुलकित हो गया। एक नई जीवंतता मेरे रोये-रोये में भर गई। मानों किसी कुंवारी कली को किसी भ्रमर ने छू लिया हो। और मेरी आंखों से आंसू बहते रहे। शायद में वहां आधा घंटा बैठा रहा। मैने ताज महल अंदर से नहीं देखा।
      मुझे उस हालत में छोड़ कर महाजन सर और बच्‍चों के साथ चले गये। जब वापस आये तो मुस्कराते हुए मेरे पास आये। में उन से लिपटकर रो पडा। शायद अमन अवस्था के वो मेरे पहला साक्षात्कार था। वो आशों का पढ़ते और ध्‍यान करते थे। आज कहीं भी हो मेरा प्रेम उनके लिए हमेशा झरता रहेगा।
      कुछ मित्रों के साथ जब हम सपरिवार ताजमहल देखने गये। तब वो प्रकिया मैने दोहराई वो मित्र तो ताज महल को पहले भी देख चुके थे। फिर भी वो इतने गद-गद हो गये की हमने इससे पहले कई बार ताज महल देखा पर इतना सुंदर,अभूतपूर्व पहले कभी नहीं देखा। सच माने वो ताज महल को अंदर देखने भी नहीं गये और घर चले गये। कि अब इतनी खूबसूरती के बाद कुछ देखने को मन नहीं करता। आप भी जब कभी दिन में जाए तो  उसे इसी तरह देखने की कोशिश करना शायद आपको भी कुछ अभूतपूर्व लगे.....
मनसा आनंद मानस

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