कथा यात्रा--
सुभूति ने पूछा भगवान बुद्ध से जो आप बोल रहे है, वह आज आपके संग साथ होने पर भी हम समझ-समझ कर समझ नहीं पाते। क्या आने वाले समय में , युगांतर काल में, आखिरी पाँव सौ वर्षों में, इस सम्यक शिक्षा के पतन काल में जो कि जब इस सूत्र के ये बचन समझायें जा रहे होंगे तो इनके सत्य को समझेंगे?
सुभूति ने पूछा भगवान बुद्ध से जो आप बोल रहे है, वह आज आपके संग साथ होने पर भी हम समझ-समझ कर समझ नहीं पाते। क्या आने वाले समय में , युगांतर काल में, आखिरी पाँव सौ वर्षों में, इस सम्यक शिक्षा के पतन काल में जो कि जब इस सूत्र के ये बचन समझायें जा रहे होंगे तो इनके सत्य को समझेंगे?
तब भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया: ऐसा मत बोलों सुभूति, हां तब भी ऐसे लोग होंगे जो कि इनके सत्य को समझ रहे होंगे। क्योंकि सुभूति, उस समय भी बोधिसत्व होंगे। और ये बोधिसत्व, सुभूति उस प्रकार के न होंगे जिन्होंने कि केवल अकेले एक बुद्ध का सम्मान किया है। न वैसे होंगे जिन्होंने कि अपनी पुण्य की जड़ें केवल अकेला एक बुद्ध में जमा रखी है। उलटे सुभूति वे बोधिसत्व जो कि जब इस सूत्र के ये बचन समझाए जा रहे होंगे, एक अकेला विचार भी निरभ्र श्रद्धा का पायेंगे। वे वैसे होंगे जिन्होंने लाखों-लाखों बुद्धों का सम्मान किया है। वैसे होंगे जिन्होंने अपनी पुण्य की जड़ें लाखों-लाखों बुद्धों में जमा रखी होगी। सुभूति ये ज्ञात है तथागत को। उनकी बुद्ध-प्रत्यभिज्ञा के ज़रिये। सुभूति वे दृश्य है तथा गत को, उनके बुद्ध-चक्षु के ज़रिये। सुभूति वे पूर्णत: ज्ञात है तथागत को। और वे सब सुभूति, अमाप व अगणित पुण्य के अंबर पैदा करेंगे व प्राप्त होंगे।
ये वचन है भगवान बुद्ध के आज से 2500 साल पहले जो उन्होंने सुभूति को कहे थे। ‘’वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता’’ में कहे थे। जिस पर ओशो जी ने अंग्रेजी प्रवचन माला-डायमंड सूत्र( The Diamond Sutra) में कहे गये है। पुस्तक में सुभूति प्रश्न पूछता है, और भगवान उत्तर देते है। भगवान बुद्ध ने एक जगह कहा है अगर कोई ‘’वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता’’ का एक सुत्र भी समझ ले तो मुक्त हो सकता है। और इसी तरह दूसरी पुस्तक जो सारि पुत्र के प्रश्नों पर आधारित है उसका नाम है, (The Heart Sutra) वह भी अति महत्व पूर्ण और अनमोल पुस्तक है।
ध्यान रहे, गौतम बुद्ध के समय से प्रारंभ पच्चीस सौ वर्षीय चक्र के पाँच-पाँच सौ वर्षों में विभाजित पाँच खड़ों का यह अंतिम (पांचवां) खंड है।
इन सूत्रों को समझाते समय ओशो कहते है--
‘’अब तुम चकित होओगे; यही है वह समय जिसकी सुभूति चर्चा कर रहे है; और तुम हो वह लोग.......
‘’बुद्ध तुम्हारे संबंध में बात कर रहे है, यह सूत्र तुम्हें समझाया जा रहा है। पच्चीस शताब्दियों तीत चुकी है।......
‘’यह विलक्षण ही है कि सुभूति ने ऐसा सवाल पूछा। उससे भी बढ़ कर विलक्षण है कि बुद्ध कहते है कि ‘’पच्चीस शताब्दियों’’ बाद वे लोग तुमसे कम सौभाग्यशाली न होंगे। बल्कि अधिक सौभाग्यशाली होंगे।......
‘’यह बहुत रहस्यमय है, लेकिन संभव है। बुद्ध पुरूष को भविष्य का दर्शन हो सकता है। वह भविष्य के कुहासे के पार देख सकते है। उसकी स्पष्टता ऐसी है, उसकी दृष्टि ऐसी है, वह अज्ञात भविष्य में प्रकाश की किरण फेंक सकता है। वह देख सकता है यह बहुत रहस्यमय लगेगा कि बुद्ध तुम्हें ‘’वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता’’ सूत्रों को सुनता हुआ देखते है।.....
‘’यह सोचना तक हर्षोंन्मादक है कि गौतम बुद्ध ने तुम्हें ‘’वज्रच्छेकिका प्रज्ञापारमिता’’ सूत्रों में यह तुम्हारी चर्चा हुई है। यही कारण है कि मैंने इसे चूना। जब मैंने इन वचनों को देखा तो मैंने सोचा, ‘’यही तो बात है मेरे लोगों के लिए। उन्हें जानना ही चाहिए कि वे गौतम बुद्ध द्वारा देख लिए गए थे; कि उनके संबंध में पच्चीस शताब्दियों पूर्व कुछ कहा जा चुका है; कि उनकी भविष्यवाणी हो चुकी है।‘’
जैसे भविष्य में यात्रा संभव है ऐसे ही अतीत में भी यात्रा संभव है। कुछ आश्चर्य नहीं कि गौतम बुद्ध द्वारा देखी गयी ओशो की यह महफिल पच्चीस सदियों पूर्व लगी उनकी महफ़िलों के साथ एक हो जाया करती थी। इसकी कुछ झलक इसकी कुछ पुलक, इसका कुछ स्वाद आपको भी इन प्रवचनों को पढ़ते-पढ़ते मिलेगा—यदि आपके छोड़ा स्वयं को, यदि आपने खुला रख स्वयं को।
स्वामी योग प्रताप भारती
भूमिका—एस धम्मो सनंतनो
भाग—‘
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