ध्यातन है अंतर्यात्रा।

और जिसकी अंतर् याता सफल है,
उसकी बहिर्यात्रा भी सफल हो जाती है।
क्‍योंकि फिर वे ही आंखे,
भीतर के रस को लेकर बाहर देखती है।
वो उस पाम रस का अनुभव होने लगता है।
जिस दिन तुम्‍हें अपनी पत्‍नी में परमात्‍मा दिखाई पड़े,
अपने पति में परमात्‍मा दिखाई पड़े
अपने बच्‍चें में परमात्‍मा दिखाई पड़े।
उस दिन जानना कि धम्र का जन्‍म हुआ है।
उस दिन जानना कि संन्‍यास हुआ, इससे पहले नहीं।
उससे पहले सब पलायन है,
कायता है, भगोड़ा पन है।    -ओशो

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