भौतिक समृद्धि ओर आध्‍यात्‍मिक खोज

क्‍या भौतिक समृद्धि के साथ-साथ अध्‍यात्‍मिक खोज नहीं चल सकती?
      दोनों में कोई भी विरोध नहीं है। आध्‍यात्‍मिक विकास और भौतिक समृद्धि साथ-साथ चल सकते है। बस एक बात याद रखनी चाहिए कि भौतिक समृद्धि दास बनी रहे और आध्‍यात्‍मिक साधना स्‍वामी के स्‍थान पर रहे। किसी भी बिंदु पर भौतिक समृद्धि के लिए आध्‍यात्‍मिक विकास को बलि पर मत चढ़ाना। कभी भी जब भी जरूरत पड़े,आध्‍यात्‍मिक विकास के लिए भौतिक समृद्धि का त्‍याग किया जा सकता है। अगर इतनी बात स्‍पष्‍ट हो जाये, तो फिर कोई समस्‍या नहीं है। समस्‍या इसलिए पैदा होती है। क्‍योंकि भौतिक समृद्धि मालिक बनी रहती है। और फिर भी तुम आध्‍यात्‍मिक रूप से विकसित होना चाहते हो। नौकर के स्‍थान पर रहकर तुम्‍हारी आत्‍मा का विकास नहीं हो सकता। आत्‍मा तुम्‍हारे शरीर की गुलाम नहीं हो सकती। तुम्‍हारा अध्‍यात्‍मिक अगर मालिक बना रहे। तो बाकी सब कुछ खुद अपनी-अपनी जगह पर पहुंच जाता है।
      और जीवन को खंडों में बांटने की जरूरत नहीं है। पूरे जीवन को स्‍वीकार करो। बस इतना याद रखो कि कौन मालिक है और कौन दास है।

--ओशो

No comments:

Post a Comment

Must Comment

Related Post

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...