यह कहानी है उत्तप्त भावोन्मेष की, सृजन के विवश करनेवाले विस्फोट की; प्रसिद्ध डच चित्रकार विंसेंट बैन गो की जो अपनी ही प्रतिभा की आग में जीवन भर जलता रहा और अंतत: उसी में जलकर भस्मसात हो गया।
अजीब किस्मत लेकिन पैदा हुआ यह प्रतिभाशाली, बदसूरत कलाकार। हॉलैंड के प्रतिष्ठित वैनगो परिवार में जन्मा वैनगो बंधु योरोप के उच्च वर्गीय, ख्यातिलब्ध चित्रों के सौदागर और प्रदर्शक थे। पूरे योरोप में उनकी अपनी आर्ट गैलरीज थी। छह भाईयों में से दो धर्मोपदेशक थे। उनमें से एक धर्मोपदेशक भाई की संतान थी विंसेंट और थियो। थियो विंसेंट से दो साल छोटा था। थियो समाजिक रस्मों रिवाज के मुताबिक चलने वाला, अपने व्यवसाय में सफल आर्ट डीलर था। विंसेंट उससे ठीक उलटा। समाज के तौर तरीके, शिष्टाचार उसे कभी रास नहीं आते थे। संभ्रांत व्यक्तियों दंभ और नकलीपन से बुरी तरह बौखला जाता था। और उसी समय प्रतिक्रिया करता।
घर से बुज़ुर्गों ने उसके लिए धर्मोपदेशक का रास्ता चुना। विंसेंट को समाज के गरीब तबके से बहुत हमदर्दी थी। उसने सोचा इस काम में वह उन लोगों की मदद कर सकेगा। विंसेंट का प्रशिक्षण शुरू हुआ। वह दिन रात धर्मग्रंथों का अध्ययन करने लगा। लेकिन उसकी एक बहुत बड़ी कमजोरी थी। वह व्याख्यान नहीं दे पाता था। किसी प्रकार का शाब्दिक संप्रेषण उसके लिए संभव नहीं था। और धर्मोपदेशक की पूरी ताकत ही उसकी वाणी होती है। आखिर परीक्षा में वि उत्तीर्ण नहीं हो पाया। लेकिन उसके एक शिक्षक उससे हमदर्दी रखते थे। उन्होंने कहां, दक्षिण बेल्जियम में बॉरिनेज नाम का एक गांव है। वहां कोयले की खदानें है। पूरी बस्ती ही खदान में काम करती है। वहां के हालत बड़े बदतर है। कि कोई पादरी वहां जाने को तैयार नहीं है। विंसेंट खुश से वहां गया। लेकिन वहां के लोगों की जिंदगी देखकर उसे बड़ा धक्का लगा। सारे मजदूर तेरह घंटे जमीन के नीचे 700मीटर की गहराई पर अंधेरे में बिताते थे। उनके बच्चे बिबियाँ हमेशा बीमार, भूखे और अर्धनग्न हुआ करते थे। उन्हें विंसेंट कौन सा धर्म सिखाये? उनके दिल में आपने लिए विश्वास जगाने की खातिर। विंसेंट उनके जैसा भूखा, चिथड़ों में लिपटा और बीमार रहने लगा। उसने अपने कपड़े मजदूरों में बांट दिये, बदन पर कोयले की कालिख पोत ली। वहां चर्च में यह खबर पहुंचते ही दो विशप बॉरिनेज आये और उन्होंने ईसाइयत की तौहीन करने के जुर्म में विंसेंट को निकाल दिया।
विंसेंट अपने माथे पर दो लकीरें बहुत गहरी खुदवाकर लाया था। गरीबी और लोगों की नफरत। वह जिस परिवार में जन्मा था उस स्तर पर कभी नहीं जी पाया, हमेशा गरीबी में झुलसता रहा। भोजन का अभाव और बुखार उसके सदा के दोस्त थे। दूसरा अभिशाप—किसी स्त्री का प्रेम उसे कभी नहीं मिल पाया। ऊंचे खानदान की दो स्त्रियों से उसने पागलपन की हद तक प्रेम किया। लेकिन दोनों से उसे नफरत ही मिली। और जिन दो स्त्रियों ने उसे प्रेम की थोड़ी सी उष्मा दी वे दोनों वेश्याएं थी। बाजारू औरतें थी। अंत: उनके प्रेम से उसे सदमा अधिक मिला, पोषण कम।
धर्मोपदेशक के काम से छुट्टी मिलने पर अचानक विंसेंट को अपने भीतर की चित्रकला का पता चला। बॉरिनेज की एक झोपड़ी में बैठे-बैठे उसने पेंसिल से और कोयले से चित्र बनाना शुरू किया। अकस्मात उसके भीतर कोई द्वार खुल गया। कोई सोई हुई चेतना जाग उठी। और वह घंटो चित्र बनाने में डूबा रहने लगा। खदान के मजदूर उनके बच्चे राहगीर हर किसी को वह विषय बनाने लगा। लेकिन चित्र बनाकर पेट तो नहीं भरता था। भूख पेट और शरीर कब तक सहन करता। विंसेंट बहुत बीमार हो गया। उसके भाई थियो को खबर मिली और वह आकर उसे हॉलैंड अपने मां-बाप के पास ले गया।
मां बाप उससे परेशान थे। यह जवान लड़का, न पैसे कमाता है, न कोई काम करता है, बस कागज पर लकीरों से खेलता रहता है। लेकिन विंसेंट से बहस करने का मतलब था की वह फिर घर छोड़ कर चला जाये। उसके गांव के लोग भी उसका तिरस्कार करते थे। क्योंकि वह सुबह-सुबह ईजेल और रंगों का बक्सा लेकर खेतों में चला जाता और दिन भर किसानों के चित्र बनाता रहता। सुख-सुविधा विंसेंट को रास नहीं आती थी। कुछ वक्त बीता नहीं की फिर उसे एक झोंका आता और वह अपनी बोरिया-बिस्तर लेकर चल पड़ता।
विंसेंट ने कभी पैसे नहीं कमाये। वह हमेशा थियो के पैसों पर जीता रहा। थियो दोनों के गुज़ारे के लिए पैसे कमाता। थियो छाया की तरह विंसेंट का साथ निभाता और उसे भरोसा दिलाता। थियो को यकीन था एक दिन जरूर विंसेंट के चित्रों की लोग कदर करेंगे जो आज उनका मजाक उड़ाते है। विंसेंट के चित्र उसी के जैसे थे। अनगढ़, ग्रामीण, माटी से नाता जोड़ते हुए। उस समय जो अन्य चित्रकार थे उन्हें विंसेंट अपने चित्र दिखाता। सभी निराशा में गर्दन हिला देते। कहते, ये चित्र बड़े भद्दे और अजीब है। उनमें अनुपात नहीं है। रेखाओं की सुघडता नहीं है। लोग उसे सलाह देते। किसी विद्यालय में जाओ और ठीक से सींखो। लेकिन किसी भी तरह की व्यवस्था या प्रशिक्षण विंसेंट के आजाद मिज़ाज के अनुकूल नहीं था।
चित्र बनाना विंसेंट की विवशता थी। कोई ऊर्जा उसके भीतर से ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ती थी और वह उसे कैनवास पर अभिव्यक्त करता। कुदरत को देखने की उसकी अपनी आँख थी। वह अनेकता में एकता देखता था। अगर खेतों में काम करने वाले किसान के चित्र बना रहा है तो पता नहीं चलता कहां किसानों के शरीर खत्म हुए ओर कहां मिट्टी शुरू हुई। क्योंकि वह कहता दोनों एक ही मिट्टी से बने है। यदि थियो उसे पैसे और चित्रकला का सामान न भेजता रहता तो विंसेंट कभी का मर चुका होता। और संसार एक अद्भुत चित्रकार से वंचित रह जाता।
थियो पेरिस की आर्ट गैलरी ‘’गुपिल्स’’ का संचालक था। वह विंसेंट को पेरिस ले आया। वहां पहली बार विंसेंट ने चित्रकला में हुए परिवर्तन को देखा, इंप्रेशानिज्म से परिचित हुआ। उस समय के अन्य प्रतिभाशाली चित्रकारों से मिला। पेरिस में कला अपने पूरे वैभव में थी। पेरिस कला नगरी बन गई थी। पॉल गोगां, लोत्रेक, मॅनेट, देगास जैसे कई चित्रकार वहां रहते थे। उनके मिलना-जुलना, उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान करना, इस सब से विंसेंट की कला में नया मोड़ आ गया। इंप्रेशानिज्म के बीज उसके भीतर थे ही। वे जोर से अंकुरित हुए। लेकिन एक जगह बसना विंसेंट की किस्मत में नहीं लिखा था। उसकी आवारगी ने फिर सिर उठाया। पेरिस का माहौल, चित्रकारों के साथ बातचीत, उनका ओछापन, इससे विंसेंट बुरी तरह ऊब गया। फिर उसने अपना सामान समेटा और दक्षिण की और आर्ल्स गया।
आर्ल्स भूमध्य सागर के किनारे बसा गांव था। विंसेंट को अब सूरज की तलाश थी। प्रखर तपता हुआ सूरज और उसकी रोशनी में खिले हुए कुदरत के लाल, हरे, पीले नीले रंग....इन रंगों को कैनवास पर उतारने के लिए वह तड़प रहा था। थियो ने फिर एक बार उसका साथ निभाया, उसे सहारा दिया। आर्ल्स में विंसेंट का दिन क्रम वही था—सुबह अपना साजो सामान उठाकर खेतों में जाना और शाम ढलने तक चित्र बनाना। उसके कैनवासों के ढेर पर ढेर बनते जा रहे थे। उन्हें रखने के लिए अलग कमरे की जरूरत पड़ती। लेकिन अब तक उसका एक भी चित्र बिका नहीं था। जिसके चित्र बाद में लाखों डालर में बिकते थे और योरोप ही हर आर्ट गैलरी में खान से टंगे रहते थे उन्हें देखने के लिए भी लोग तैयार नहीं थे। और उनके जन्मदाता को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हुआ।
आर्ल्स के लोग विंसेंट को फाऊ-राऊ कहते थे। ‘’फाऊ-राऊ’’ पागल चित्रकार। विंसेंट कभी-कभी वेश्या घरों में जाता था। वहां एक लड़की थी रेशोल, वह विंसेंट से प्यार करती थी। वह मजाक में विंसेंट से कहती मुझे तुम्हारा कान काटकर दो। तुम्हारा कान मुझे बहुत अच्छा लगता है। एक दिन पागलपन के दौर में विंसेंट ने सचमुच अपना दायां कान काटकर उसे भेट कर दिया।
यह विंसेंट के पागलपन की शुरूआत थी। इसके बाद हर तीन महीने में फिट पड़ने लगे। उस दौर में वह कुछ भी कर बैठता। इसलिए उसे पागल खाने भरती किया गया। थियो को खबर मिली, वह आकर उसे पेरिस ले गया। दो दौरों के बीच विंसेंट बिलकुल ठीक रहता। अब विंसेंट के चित्रों पर लोगों की नजर पड़ने लगी। कुछ पत्रिकाओं में उसके चित्रों की प्रशंसा में लेख भी छापने शुरू किये। लेकि अब विंसेंट इन बातों से अछूता था। जुलाई के महीने में जब उसे दौरा पड़ने वाला था। विंसेंट के हाथों में एक पिस्तौल आ गई। खेतों में चित्र बनाने के लिए गया था, वहीं उसने अपने आपको गोली मार ली।
उसके ठीक छह महीने बाद थियो ने शरीर छोड़ दिया।
कभी-कभार ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि वह जीने के लिए समझौता करते-करते थक चूका है। वैनगो ने इसीलिए आत्महत्या की—वह एक अनूठा आदमी था। महान चित्र कार। लेकिन जीवन में कदम-कदम पर उसे समझौता करना पडा। उन सब समझौतों से वह थक चूका था। अब वह भीड़ की मानसिकता का हिस्सा बने रहना वह और नहीं सक सकता था। अपनी निजता पाने के लिए उसने आत्महत्या कर ली। वह वर्षों से सूर्योदय का चित्र बनाना चाहता था। और जिस दिन उसने वह चित्र पूरा किया उसने सोचा कि अब और कोई समझौता करने की जरूरत नहीं है। जो उसे जीवन को देना था। वह उसने दे दिया। यदि वह पूर्व में हुआ होता तो उसके पास एक विकल्प था। सन्यास, क्योंकि वह पश्चिम में हुआ इसलिए इस विकल्प से चूक गया।
ओशो
किताब की एक झलक--
‘’क्या मैं पागल खाने में हूं? विंसेंट लड़खड़ाता हुआ कोने में रखी हुई एकमात्र कुर्सी पर बैठा और उसने आंखे मिलीं। बारह साल की उम्र से उसने गहरे और धुँधले चित्र देखे थे। उन चित्रों में ब्रश का कान नजर नहीं आता था। कैनवास का हर तफ़सील सही और पूरा होता था और सपाट रंग धीरे से एक दूसरे में धुल जाते थे।
ये चित्र जो दीवालों पर टंगे थे, उसकी हंसी उड़ा रहे थे। वे उनके साथ जरा भी मेल नहीं खाते थे जो उसने देखे थे या जिनकी कल्पना की थी। बारीक सपाट सतहों का कहीं पता ह नहीं था। और न ही उस भावुक सादगी का। विदा हो गई वह ब्राइन तरलता जिसमें योरोप ने सदियों तक अपने चित्रों को डूब गया था। यहां खड़े थे वे चित्र जो पागलों की तरह सूरज के साथ रंगरलियां कर रहे थे। उनमें रोशनी थी, जीवन था और धड़कते हुए प्राण थे। बैले नर्तकियों के चित्र मंच के पीछे बने हुए थे। उनमें आदिम लाल, हरे और नीले रंग धृष्टता के साथ एक दूसरे के साथ मिलाये गये थे। उसने हस्ताक्षर देखे—देगास।
नदी तट पर बनाए हुए कुछ नैसर्गिक दृश्य भी थे। जिनमे ग्रीष्म ऋतु का परिपक्व, रसीला रंग और माथे पर चमकता हुआ सूरज झलक रहा था। चित्रकार का नाम था: मॉनेट। अब तक विंसेंट ने हजारों कैनवास देखे होंगे लेकिन उनमें वह आभा, श्वास का स्पंदन और सुगंध न थी। जो इन आलोकिक चित्रों में थी। मॉनेट ने जो सबसे गहरा रंग इस्तेमाल किया था वह हॉलैंड के चित्रालयों में पाये जाने वाले सबसे फीके रंग से भी फिका था। ब्रश का काम सिर उठाकर मानों देख रहा हो। और आपने जरा उसे छुआ नहीं की वह सिहर जायेगे....सुकड़ जायेगा। कैसे बिना किसी शर्म हया के हर रेखा सुस्पष्ट, थी। बुश का प्रत्येक स्पर्श प्रकृति की लय में प्रवेश करता हुआ नजर आ रहा था। ऐसे रंग और सजीव चित्र विंसेंट देख कर दंग रह गया।
विंसेंट एक चित्र के सामने खड़ा हुआ था। एक आदमी ऊनी बनियान पहने अपनी बोट की पतवार हाथ में लिए खड़ा था। वह फ्रैंच आदमी का प्रतीक था जो रविवार की दोपहर का मजा ले रहा था। उसकी पत्नी चुपचाप नीचे बैठी हुई थी। विंसेंट ने चित्रकार का नाम देखा; मॉनेट। कमाल है। उसके बाह्य दृश्यों में जरा भी समानता नहीं। उसने गौर से देखा। नाम मॉनेट नहीं; मॅनेट था।
पता नहीं क्यों, मॅनेट के चित्र एमिल झोला के पुस्तकों की याद दिला रहे थे। उनमें सत्य की वही तीव्र खोज थी, वही निर्भीक पैनापन, वही अहसास कि चरित्र सुंदरता है; फिर वह कितना ही गंदा क्यों न प्रतीत हो। उसने उसकी तकनीक को ध्यान से देखा। उसे दिखाई दिया कि मॅनेट बुनियादी रंग, बिना किसी फर्क के, एक-दूसरे के करीब रखता है। कई तफसिलों की सिर्फ आहट थी। रंग, रेखाएं, प्रकाश और छायाएं, इन सबकी कोई सुनिश्चत सीमा नहीं थी। बल्कि वे एक दूसरे में पिघल रहे थे।
विंसेंट बोल उठा, ठीक वैसे ही जैसे आँख उन्हें प्रकृति में पिघलता हुआ दिखती है।
उसने कानों में मॉव की आवाज गूँजी; विंसेंट क्या किसी रेखा के बारे में निश्चित वक्तव्य देना तुम्हारे लिए सर्वथा असंभव है?
वह फिर से बैठ गया और उसने चित्रों को भीतर उतरने दिया। कुछ समय बाद वह युक्ति उसकी समझ में आयी जिसकी वजह से चित्रकला में आमूल क्रांति घटी थी। ये चित्रकार अपने चित्रों की वायु को पूरा भर देते थे। और वह जीवंत बहती हुई, भरपूर वायु उन बीजों को साथ कुछ करती थी जिन्हें उसमें देखा जा सकता था। विंसेंट जानता था कि सैद्धांतिक लोगों के लिए वायु होती ही नहीं। उनके लिए यह सिर्फ एक खाली अवकाश है जिसमें वे ठोस वस्तुएं रखते है।
लेकिन ये नये मनुष्य, इन लोगों ने वायु खोज ली थी। उन्होंने प्रकाश और सांस वातास और सूरज को खोज लिया था। और उन्होंने उस स्पंदित तरलता में बसने वाली अनगिनत तरंगायित ऊर्जाओं से छनती हुई चीजों को देख लिया था। विंसेंट जान गया था, अब चित्रकला पहले जैसी नहीं रहेगी। कैमरा और सिद्धांतों में उलझे लोग चीजों की सही प्रति छवि बनायेगे। और चित्रकार हर चीज को उनकी अपनी प्रकृति से और सूरज से आंदोलित वायु में से छनता हुआ देखेंगे। ऐसा लगता था जैसे इन लोगों ने एक नवीन कला को जन्म दिया है।
वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों से उतरा। थियो मुख्य कक्ष में था। वह मुड़ा। उसके होंठों पर मुस्कुराहट थी। और आंखे उत्सुकता से अपने भाई के चेहरे को खोज रही थी।
‘’क्या हुआ विंसेंट? उसने पूछा।
आह थियो। विंसेंट ने आह भरकर कहा। उसने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। उसने ऊपर की और देखा और चित्रालय की इमारत के बाहर दौड़ गया।
बेलों से ढ़ंके चौड़े रास्ते पर चलते हुए वह ऑपेरा तक पहुंचा। पत्थर की इमारतों के बीच से उसे पुल दिखाई दिया और वह नदी की और चल पडा। वह पानी की सतह तक पहुंचा और उसने सीन नदी में अपनी उंगलियां डुबोई। फिर वहां से उठकर वह निरूद्देश्य पेरिस की सड़कों पर घूमता रहा। बिना इसकी फिक्र किये कि वह कहां जा रहा है। बड़े-बड़े साफ सुथरे सायादार मार्गों पर भव्य दुकानें, फिर सड़ी सी गलियाँ, फिर प्रतिष्ठित रास्ते और उन अंतहीन शराब की दुकानें....।
आखिर जब दोपहर ढलने लगी तब उसे रू लावल, उसके रहने का स्थान मिला। उसके भीतर का हलका सा दर्द उसकी थकान ने दबा दिया था। वह सीधे वहां गया जहां उसके चित्र गठरियों बंधे थे। उसने उन सबको फर्श पर बिछाया। वहाँ अपने कैनवासों को ध्यान से देखता रहा। हे भगवान। वे अँधियारे और रूखे-सूखे थे। बड़े बोझिल, निष्प्राण और मुद्रा। वह अनजाने में बीती हुई सदी के चित्र बना रहा था।
थियो घर आया। उसने अपने भाई को जमीन पर उदास बैठा हुआ पाया। वह नीचे उसके पास बैठ गया। प्रकाश की आखिरी किरण कमरे से विदा हो गई। कुछ देर थियो खामोश रहा।
विंसेंट, मैं जानता हूं, तुम पर क्या गुजर रही है। तुम अवाक हो गये हो, अभिभूत करने वाली बात है। है न?चित्रकला ने आज तक जो-जो पवित्र माना है उसे सबको यहां पर फेंक दिया गया है।
विंसेंट की छोटी-छोटी आंखे थियो की आँखो से चार हुई। थियो, तुमने मुझे क्यों नहीं बताया? मुझे क्यों नहीं पता चला? तुम मुझे उससे पहले यहां क्यों नहीं ले आये? मेरे छह लंबे वर्ष बरबाद हो गये।
बरबाद हुए? कतई नहीं, ‘’थियो ने जोर से कहा, ‘’तुमने तुम्हारी कलाकारी को निर्मित किया है। तुम विंसेंट वैनगो की तरह चित्र बनाते हो, संसार में और कोई तुम्हारी तरह चित्र नहीं बना सकता। अगर तुम अपना ढांचा बनाने से पहले यहां आ जाते तो पेरिस तुम्हें अपने ढाँचे में ढाल लेता।
‘’लेकिन मुझे क्या करना होगा? इस कचरे को देखता रहूँ? वैनगो ने एक बड़े कैनवास को ठोर मारते हुए कहा, ‘’यह मरा हुआ है, थियो, और दो कौड़ी का।
‘’तुमने मुझे पूछा कि तुम्हें क्या करना होगा। मैं बताता हूं, तुम्हें इंप्रेशनिस्ट (प्रभाव वादी) चित्रकारी से प्रकाश और रंग के विषय में सीखना होगा। तुम्हें उनमें केवल उतना भर लेना होगा। उससे अधिक नहीं। तुम्हें नकल नहीं करनी। उनके साथ वह मत जाओ। पेरिस कही तुम्हें दबोच न ले।
लेकिन थियो, मुझे सब कुछ अ. ब. स. से सीखना है। मैं जो भी करता हूं, गलत है।
तुम जो भी करते हो वह सब सही है। सिर्फ तुम्हारे प्रकाश और रंग को छोड़कर। जिस दिन तुमने बॉरिनेज से पेंसिल उठायी उस दिन से तुम इंप्रेशनिस्ट हो। तुम्हारे रेखांकन को देखो। तुम्हारे ब्रश के काम को देखो। मॅनेट से पहले किसी ने इस तरह का काम नहीं किया। तुमने जो चेहरे बनाये है, तुम्हारे वृक्ष, खेत में काम करती हुई आकृतियां.....ये सब तुम्हारे इंप्रैशन, तुम्हारे प्रभाव है। वे अनगढ़ है, अधूरे है, तुम्हारे व्यक्तित्व से झर कर आते है। तुम्हारी रेखाओं को देखकर लगता है कि तुम कभी भी निश्चित वक्तव्य नहीं देते। इंप्रेशनिस्ट होने का यही अर्थ है—दूसरों की तरह चित्र नहीं बनाना; नियम और क़ायदों के गुलाम नहीं बनना। तुम तुम्हारे युग के प्रतिनिधि हो विंसेंट। और तुम इंप्रेशनिस्ट हो; तुम्हें अच्छा लगे या बुरा।
‘’थियो मुझे पुलक हो रही है।‘’
‘’पेरिस के युवा चित्रकारों में तुम्हारा नाम हो चुका है। मेरा मतलब उनसे नहीं जिनके चित्र बिकते है। मेरा मतलब उनसे है जो महत्वपूर्ण प्रयोग कर रहे है। वे तुमसे परिचित होना चाहते है। तुम उनसे बढ़िया चीजें सीखोंगे?
वे मेरा काम जानते है? युवा इंप्रेशनिस्ट चित्रकारों ने मेरा काम देखा है?
विंसेंट घुटनों के बल बैठ गया ताकि वह थियो को अच्छी तरह से देख सके। थियो को झुंडर्ट के पुराने दिन याद आये जब वे नर्सरी के फर्श पर एक साथ खेलते थे।
‘’निश्चित ही इतने साल मैं पेरिस में क्या करता रहा? वे सोचते है कि तुम्हारे पास पैनी नजर है, और है ड्राफ्ट्समैन की पकड़। अब तुम्हें कुछ इतना ही करना है कि तुम्हारे रंगों को हलका करके जीवंत, आलोकित हवा को चित्रित करना सीखना है। विंसेंट, क्या उस दौर में जीना एक वरदान नहीं है जब इतनी महत्वपूर्ण घटनाएं घट रही हो।‘’
‘’थियो शैतान कहीं है, शानदार शैतान।‘’
‘’चलो, उठकर खड़े हो जाओ। दीया जलाओ, आओ।‘’
‘’ सुंदर कपडे पहनो और खाना खाने बाहर चलें। मैं तुम्हें ब्रेसरी यूनिवर्सल ले चलता हूं। वहां पेरिस के सबसे स्वादिष्ट चेतोब्रां मिलते है। मैं तुम्हें असली भौज का जायका देता हूं। शैंपेन की बोतल के साथ। आज के महान दिवस का जश्न मनाऐंगे, प्यारे, जब पेरिस और विंसेंट वैनगो को मिलन हुआ था।‘’
ओशो का नज़रिया--
आज की पहली किताब है: अरविंग स्टोन की ‘’लस्ट फॉर लाइफ’’। प्रसिद्ध डच चित्रकार विंसेंट वैनगो के जीवन पर आधारित उपन्यास है। स्टोन ने इतना अद्भुत काम किया है कि मैं नहीं सोचता कि किसी और ने इस तरह का काम किया है। किसी ने किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में इतनी घनिष्ठता से नहीं लिखा। जैसे वह अपने अंतरतम के बारे में लिख रहा हो।
‘’लस्ट ऑफ लाईफ’’ सिर्फ उपन्यास नहीं है। एक आध्यात्मिक किताब है। जिसे में आध्यात्मिक कहता हूं, उन अर्थों में आध्यात्मिक। मेरी दृष्टि में, जीवन के सभी आयाम एक संश्लेषण में समाहित करने चाहिए। तभी व्यक्ति आध्यात्मिक बनता है। इस किताब को अरविंग स्टोन ने इतनी खूबसूरती से लिखा है कि वह खुद अपना अतिक्रमण करे इसकी संभावना कम है।
इस किताब के बाद उसने बहुत सी किताबें लिखी। आज की मेरी दूसरी किताब भी अरविंग स्टोन की ही है। मैं उसे दूसरी कहता हूं क्योंकि वह गौण है। वह ‘’लस्ट फॉर लाईफ’’ की कोट की नहीं है। यह किताब ‘’अॅगनी एंड दि एक्स्टसी’’ यह भी उसी प्रकार की है। एक और कलाकार की जीवनी। शायद स्टोन सोच रहा होगा कि वह ‘’लस्ट ऑफ लाईफ’’ की छवि बनाये, लेकिन वह असफल रहा। यद्यपि वह असफल हुआ। किताब दूसरे नंबर पर है; किसी दूसरे की तुलना में नहीं, उसकी अपनी ही तुलना में। कलाकार, कवि, चित्रकार, इनके जीवन पर लिखे हुए सैकड़ों उपन्यास है लेकिन उनमें से कोई इस दूसरी किताब की भी ऊँचाई छू नहीं सकता। फिर पहली की तो बात ही क्या करनी। दोनों ही सुंदर है लेकिन पहली की सुंदरता श्रेष्ठतम है।
दूसरी किताब थोड़ी कनिष्ठ है लेकिन इसमे अरविंग स्टोन की गलती नहीं है। जब तुम ‘’लस्ट ऑफ लाइफ’’ जैसी किताब लिखते हो, तो साधारण मानवीय प्रवृति यही होती है कि उसकी नकल करें; उसी प्रकार की कोई और रचना करे। लेकिन जब तुम नकल करते हो, तब वह उस जैसी नहीं रहती। जब उसने लस्ट......लिखी तब वह नकल नहीं कर रहा था। वह क्वाँरा द्वीप था। जब उसने ‘’अॅगनी एंड दि एक्स्टसी’’ लिखी तब वह नकल कर रहा था। और यह बिलकुल घटिया नकल है। अपने बाथरुम में हर कोई करता है। जब वह आईने में देखता है। दूसरी किताब के बारे में ऐसा ही लगता है। लेकिन मैं कहता हूं, यद्यपि यह आईने का प्रतिबिंब है, यह यथार्थ को झलकाता है। इसलिए मैं उसे सम्मिलित करता हूं।
यह किताब माइकेल एंजेलो के जीवन के बारे में है। महान जीवन। स्टोन बहुत कुछ चूक गया है। यदि ‘’गोगां’’ (फ्रैंच चित्रकार) के बारे में होता तो ठीक था, लेकिन यदि माइकेल एंजेलो के बारे में है तो मैं उसे माफ नहीं कर सकता। लेकिन वह बहुत खूबसूरती से लिखता है। उसका गद्य पद्य जैसा है।
हालांकि दूसरी किताब ‘’लस्ट फॉर लाइफ’’ जैसी नहीं है। हो नहीं सकती। सिर्फ इसलिए क्योंकि विंसेंट वैनगो जैसा दूसरा आदमी नहीं हुआ। वह डच आदमी अतुलनीय था। वह अद्वितीय है। सितारों से भरे हुए पूर आकाश में वह अकेला चमकता है—बिलकुल अलग, अनूठा अपने आप में असाधारण। उस पर उत्कृष्ठ किताब लिखना सरल था। माइकेल एंजेलो के बारे में भी यही हो सकता था लेकिन उसने खुद की नकल करने की कोशिश की, इस लिए चुक गया।
कभी नकल मत करना। किसी के पीछे मत चलना—स्वयं के भी।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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