कार्य—‘’ध्या न की तरह’’


जब भी आपको लगे कि आपकी मूड अच्छा् नहीं है और काम करना अच्छा नहीं लग रहा है, तो काम करने से पहले पाँच मिनट के लिए गहरी श्वा स बाहर फेंके। भाव करें कि श्वा स के साथ खराब मूड भी बाहर फेंक रहे है। और आप हैरान हो जाएंगे कि पाँच मिनट में अनायास ही आप फिर से सहज हो गए और खराब मूड चला गया, काले बादल छंट गए। यदि हम अपने कार्य को ही ध्यान बना सकें तो सबसे अच्छीच बात है। तब ध्यान हमारे जीवन में कभी द्वंद्व नहीं खड़ा करेगा। जो भी हम करें, ध्या‍नपूर्वक करें। ध्यान कुछ अलग नहीं है, वह जीवन का ही एक हिस्सा है। वह श्वाकस की तरह है—जैसे श्वारस आती-जाती है, वैसे ही ध्यावन भी रहता है। और केवल थोड़ी सी सजगता की बात है—ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। जो चीजें आप असावधानी से कर रहे थे, उन्हें सावधानी से करना शुरू करें। जो चीजें किसी आकांक्षा से कर रहे थे, उदाहरण के लिए, पैसा ..... । वह ठीक है, लेकिन आप उसमें कुछ जोड़ सकते है। पैसा ठीक है और अगर आपके काम से पैसा आता है तो अच्छां है; सबको पैसे की जरूरत है। लेकिन वही सब कुछ नहीं है। और साथ ही साथ यदि और भी आनंद मिलते हों, तो उन्हेंत क्यों चूकना वे मुफ्त ही मिल रहे है। हम कुछ न कुछ काम तो करेंगे ही, चाहे प्रेम से करें या बिना प्रेम कि करें। तो अपने काम में सिर्फ प्रेम जोड़ देने से हमें और बहुत कुछ मिल सकता है, जिन्हें हम वैसे चूक ही जाते। ओशो---( आरेंज बुक )

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