स्‍वर्ग-पृथ्‍वी आलिंगन—और कैंसर

स्‍वर्ग और पृथ्‍वी–लाओत्‍से के लिए प्रतीक है। आपके भीतर भी दोनों हैं, आपके भीतर स्‍वर्ग ओर पृथ्‍वी दोनों है। और जब आप अपने स्‍वभाव के  अनुकूल चल रहे होते है, तब स्‍वर्ग और पृथ्‍वी के आलिंगन में होते है। जब आप कुछ और होने की कोशिश कर रहे होते है। जो कि आपकी नियति नहीं है, तब आपकी परिधि और आपके केंद्र का संबंध टूट जाता है। तब आपका व्‍यक्‍तित्‍व और आपकी आत्‍मा दो हो जाती हे। तब व्‍यक्‍तित्‍व तो आप जबरदस्‍ती थोपते रहते है। और ऊपर, और आत्‍मा और आपके बीच का फासला बढ़ता चला जाता है। लाओत्‍से की भाषा में, तब पृथ्‍वी और स्‍वर्ग का संबंध टूट जाता है। उनका आलिंगन समाप्‍त हो गया। और इस आलिंगन के टूटने सक ही पीड़ा और संताप और दुःख होता है। 
      लाओत्‍से को बहुत प्रेम करने वाले एक व्‍यक्‍ति ने अभी-अभी एक किताब लिखी है। किताब बड़ी अनूठी है। और चौंकाने वाली भी है। किताब है कैंसर के ऊपर।/ और उस व्‍यक्‍ति का ख्‍याल ठीक मालूम पड़ता है। कैंसर नई बिमारी है; और अब तक उसका कोई इलाज नहीं । इस व्‍यक्‍ति ने लिखा है कि कैंसर इस बात की खबर है कि आदमी के भीतर स्‍वर्ग और पृथ्‍वी का संबंध बिलकुल टूट गया। और बीमारी इसीलिए पैदा हो गई है। जिसका कोई इलाज नही है। क्‍योंकि बीमारी शरीर की होती तो इलाज हो जाता। बीमारी सिर्फ शरीर की नहीं है कैंसर; अगर शरीर की होती तो इलाज हो जाता। बीमारी शरीर और आत्‍मा के बीच के फासले के कारण पैदा हुई है; मात्र शरीर की नहीं है। शायद शरीर और आत्‍मा, दोनों के बीच जो फासला है, उस फासले के कारण पैदा हो रही है। जितना फासला बढ़ता जाएगा उतना कैंसर बढ़ता जाएगी।
      एक लिहाज से शुभ लक्षण है, अगर हम चेत सकें तो। अगर हम चेत सकें तो शुभ लक्षण है; अगर न चेत सकें तो बहुत खतरनाक है। कैंसर बीमारी नहीं है। यह बात समझने जैसी है। कैंसर एक आंतरिक दुर्घटना है। जिसमें हमारे भीतर के सारे सेतु टूट गए है। परिधि अलग हो गई है; केंद्र अलग हो गया है। और हम परिधि के साथ पकड़े हुए है। अपने को, और हमारा अपने ही अंतस्‍तल से सारा संबंध क्षीण होता जा रहा है, इस तनाव से पैदा हो रही है बीमारी वह कैंसर है। कैंसर बढ़ता जाएगा। अगर स्‍वभाव के अनुकूल जीने की क्षमता नहीं बढ़ती तो कैंसर बढ़ता जाएगा। कैंसर सामान्‍य बीमारी हो जाएगी। और उसका इलाज खोजना कठिन है। शायद इलाज खोज भी लिया जाए तो कैंसर से बड़ी बीमारियां पैदा हो जाएंगी। क्‍योंकि वह जो भीतर की विच्‍छेद स्‍थिति हे, भीतर का जो फासला है, वह अगर कैंसर से प्रकटन हुआ, कैंसर को किसी तरह रोका जा सका। तो वह मवाद किसी और बड़ी बीमारी से बहने लगेगी।
      यह पिछले दो सौ साल का इतिहास है कि एक बीमारी सबसे ऊपर होती है। हम किसी तरह उसका इलाज कर लेते है तो उससे बड़ी बीमारी पैदा हो जाती है। हम उस बीमारी का उपाय कर लेते है। तो उससे बड़ी बीमारी पैदा हो जाती है। शायद कोई बहुत आंतरिक वेदना प्रकट होना चाहती है। ओर हम उसके दरवाजे रोकते जोत है। वह नए दरवाजे खोज लेती है।
      पृथ्‍वी का अर्थ है आपकी परिधि, आपके भीतर जो पौदगलिक है, पदार्थ हे, वह। और स्‍वर्ग से अर्थ हे। आपकी चैतन्‍य, आपकी आत्‍मा आपके भीतर वह जो अपौदगलिग है, वह।
      जब दोनों आलिंगन में होते है तो मीठी-मीठी वर्षा होती है।
      बड़ा कठिन है कहना, कि क्‍या होता है। जब आपकी आत्‍मा और आपका व्‍यक्‍तित्‍व दोनों आलिंगन में होते है। जब आपके भीतर कोई फासला नहीं होता। जब आपके भीतर कोई भविष्‍य नहीं होता। वर्तमान के क्षण में आप पूरे के पूरे इकट्ठे होत है। कोई विच्‍छेद नहीं, कोई खंड-खंड स्‍थिति नहीं, जब आप अखंड होते है, तब क्‍या होता है।
ओशो
ताओ उपनिषाद, भाग—4

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