मैं तुम्हारा सम्मान करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है—
तुम्हारी निंदा तुम्हारे भीतर बैठे परमात्मा की निंदा है।
मैं तुमसे यह नहीं कहता हूँ तुम असाधारण हो जाना है।
मैं तुमसे कहता हूं, तुम साधारण हो जाओ, तो सब मिल जाए।
असाधारण होने की दौड़ अहंकार की दौड़ है।
कौन नहीं असाधारण होना चाहता,
मैं तो संन्यासी उसको कहता हूं,
जो साधारण होने में तृप्त है।
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