हममें से कोई गरीब नहीं है।
हममें से कोई भी भिखारी नहीं है।
परमात्मा भिखारी पैदा ही नहीं कर ता।
परमात्मा भिखारी पैदा करना भी चाहे तो नहीं कर सकता है।
परमात्मा जिसे भी बनाएगा उसे सम्राट ही बनाएगा।
उसके हाथों से सम्राट ही निर्मित हो सकते है।
तुम भी सम्राट हो इसे जान लेना संबोधी है।
तुम भी मालिक ों के मालिक हो।
इसे पहचान लेना बुद्धत्व है।
तुम्हारे भीतर एक लोक है—अकूत संपदा का,
अपरिसीम आनंद का, रहस्यों का,
कि उघाड़ते जाओ कितने ही, कभी पूरे उखाड़ ना पाओगें।
ऐसी अनंत शृंखला है उसकी। इतने दीये जल रहे है भीतर ,
इतनी रोशनी है, और तुम अंधेरे में जी रहे हो।
क्योंकि तुम्हारी आंखे बाहर अटकी है।
बाहर अंधकार है, भीतर आलोक है।
जो भीतर मुड़ा, जिसने अपने आलोक को पहचाना,
वही बुद्ध है।
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