प्रेम का पाठ


मैं तुमसे कहता हुँ: आदमी को प्रेम करे। वही तुम प्रेम का पहला पाठ सीखोगे। और वही पाठ तुम्‍हें इतना मदमस्‍त कर देगा, कि तुम जल्‍दी ही पूछने लगोगे: और बड़ा प्रेम पात्र कहां से खोजू। मनुष्‍य से ही प्रेम करने से ही तुम्‍हे अनुभव होगा। कि मनुष्‍य छोटा पात्र है, प्रेम को जगा तो देता है। लेकिन तृप्‍त नहीं कर पाता, प्रेम को उकसा तो देता है। लेकिन संतुष्‍ट नहीं कर पाता, प्रेम की पुकार तो पैदा कर देता है, खोज शुरू हो जाती है, लेकिन पुकार इतनी बड़ी है। और आदमी इतना छोटा कि फिर पुकार पुरी नहीं हो पाती। फिर वही बडी पुकार, जो आदमी तृप्‍त नहीं कर सकता, परमात्‍मा की तलाश में निकलती है।

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