दि आऊटसाइडर: ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

(अजनबी)—कॉलिन विलसन
(प्रसिद्ध लेखक एच. जी. वेल्‍स भी एक अजनबी है। वह स्‍वयं को ‘’अंधों के देश में आँखवाला आदमी’’ कहता है। सोरेन किर्कगार्ड एक गहरा आध्‍यात्‍मिक  दार्शनिक था। ‘’अस्तित्ववाद’’ उसी ने प्रचलित की हुई संज्ञा है। उसने तर्क और दर्शन को बिलकुल ही नकार दिया। वह कहता था: मैं कोई गणित का फार्मूला नहीं हूं—मैं वास्‍तव में ‘’हूं’’।
     बीसवीं सदी के मध्‍य में जो शब्‍द लोकप्रिय हुआ उनमें से एक है: आऊटसाइडर। अस्तित्ववादी दार्शनिक सार्त्र और आल्बेर कामू ने अपनी किताबों में इस शब्‍द का बहुत प्रयोग किया है। आऊटसाइडर। इस किताब पर एक फिल्‍म भी बनी थी जो बहुचर्चित रही।

      क्‍या अर्थ है ‘’आऊटसाइडर’’ कि? शब्दशः: आऊटसाइडर वह है जो बाहरी व्‍यक्‍ति है, जिंदगी के बाहर खड़ा है। साथी द्रष्‍टा, तटस्‍थ। जीवन के कोलाहल में वह अजनबी है। साक्षी और द्रष्‍टा आध्‍यात्‍मिक शब्‍द है, और आऊटसाइडर दार्शनिकों के दिमाग से पैदा हुआ। बीसवीं सदी के प्रारंभ में पाश्‍चात्‍य विचारक मानव जीवन के प्रति हताश ओर निराशा से भर गये थे। उनकी बुद्धि इतनी प्रखर हो गई थी कि वह साधारण सामाजिक जीवन में रस नहीं ले पाती थी। उस दौर में जो भी अस्तित्ववादी साहित्‍य पैदा हुआ उसमे लेखकों का जीवन के प्रति रूख ऐसा था जैसे वे एक कमरे में खड़े है और दूसरे कमरे में घटने वाली घटनाओं को दूर से देख रहे है। इन अर्थों में आऊटसाइडर याने अजनबी।
      यह किताब आधुनिक युग का प्रतीक है। आधुनिक समय न जाने कैसी सभ्‍यता और संस्‍कृति विकसित हई है, आज हर शख्स जिस में थोड़ी भी सजगता है। अपने आपको बेगाना मानता है। वह जिंदगी से उखड़ा-उखड़ा जीता है। जैसे कोई अपना नहीं है। किसी से लगाव नहीं है। आऊटसाइडर या अजनबी होने को ख्‍याल ही इस मनोभूमि में अंकुरित हुआ है।
      यह किताब वक्‍त की जरूरत थी। एक ही तथ्‍य इसे सिद्ध करता है कि यह किताब कॉलिन विलसन ने 1956 में लिखी और 1960 तक इसके तेरह संस्‍करण प्रकाशित हुए। यह इस बात का प्रतीक है कि उन दिनों यह विचार बुद्धिजीवियों पर किस कदर छाया हुआ था। एक अजनबियों की जमात इस किताब की प्रतीक्षा कर रही थी। इस किताब में कॉलिन विलसन ने उन सब लेखकों की किताबों को शामिल किया है। जो असाधारण रूप से प्रतिभाशाली है। जो सतही, समाजिक जीवन से असंतुष्‍ट है; जिनकी कोई गहरी खोज है।
      जो अजनबी है उनकी समस्‍या क्‍या है? लोगों की भीड़ में अजनबी बनकर जीना सरल नहीं है। समस्‍या वह है कि एक ही शरीर में बंदर और मनुष्‍य दोनों जीते है। और जैसे ही बंदर की इच्‍छाएं पूरी होने के करीब होती है। वह गायब हो जाता है। और उसकी जगह मनुष्‍य आ जाता हे। और यह मनुष्‍य अपने बंदर से सषत नफरत करता है।
      विलसन किताब की शुरूआत में लिखता है: ‘’इस किताब के दौरान हम भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार से इस समस्‍या का साक्षात करेंगे—दार्शनिक तल पर सार्त्र और कामू के साथ (जहां उसे अस्तित्ववाद कहा जाता है) धार्मिक स्‍तर पर बोहेमें और किर्कगार्ड के साथ.....समस्‍या कमोवेश रूप में वैसी ही रहती है।
      विलसन अजनबी की परिभाषा बड़ी मजेदार करता है। वह कहता है, ‘’अजनबी व्‍यक्‍ति एक समाजिक समस्‍या होता है। याने कि वह हर कहीं बेमेल होता है।‘’
      विलसन हमे तथ्‍य से आगाह करता है कि हर कलाकर अजनबी नहीं होता। शेक्‍सपीयर, डांटे, कीट्स बिलकुल सामान्‍य थे। सामाजिक थे अजनबी व्‍यक्‍ति कुछ बेगाना होता है। उस सब कुछ सपने जैसा प्रतीत होता है। अजनबी व्‍यक्‍ति आरामदेह, प्रतिष्‍ठित लोगों का सुरक्षित जीवन नहीं जी सकता। वह बहुत ज्‍यादा और बहुत गहरे देख लेता है। मूलत: उसकी पैनी नजर अराजक को देख लेती है। वह अराजक के प्रति जाग जाता है। और उसी में जीवन का बीज छिपा होता है। क़बाला नाम के कबीले यह मानते है कि अराजक या कै ओस वह स्‍थिति है जिसमे व्‍यवस्‍था छिपी हुई है। जैसे अंडा पक्षी का अराजक है, कै ओस है।
      प्रसिद्ध लेखक एच. जी. वेल्‍स भी एक अजनबी है। वह स्‍वयं को ‘’अंधों के देश में आँख वाला आदमी’’ कहता है। सोरेन किकगार्ड एक गहरा आध्‍यात्‍मिक दार्शनिक है। ‘’अस्‍तित्‍ववाद’’ उसी ने प्रचलित की हुई संज्ञा हे। उसने तर्क और दर्शन को बिलकुल की नकार दिया। वह कहता था। ‘’मैं कोई गणित का फार्मूला नहीं हूं—मैं वास्‍तव मैं, ‘’हूं’’।
      किर्कगार्ड और फ्रेडरिक नीत्‍शे दोनों विचारक अपने आप को अजनबी मानते थे।
      विलसन की किताब पढ़ते हुए एक बात बड़े प्रभावशाली रूप से उभरती है। और वह है, कॉलिन विलसन का आर्श्‍चयजनक अध्‍ययन। उसने पिछले दो शताब्‍दियों के सभी पाश्चात्य दार्शनिकों और विचारकों का लेखन न केवल पढ़ा है। बल्‍कि हजम किया है। और उस पूरे अध्‍ययन का सार निचोड इस किताब में प्रस्‍तुत किया है।  इसलिए विलसन का ‘’आऊटसाइडर’’ कामू और सार्त्र के आऊटसाइडर से बहुत विशाल है।
      यह आऊटसाइडर या अजनबी व्‍यक्‍ति, एक संकल्‍पना है, और पश्‍चिम के जिन लेखकों न इस संकल्‍पना को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है उन सबको किताबों के परिछेद और उन लेखकों के विभिन्‍न पहलू सामने लाकर विलसन तटस्‍थता की धारणा को बहु आयामी ओर बहुत अमीर बनाता है। गहरे में, हर प्रतिभाशाली, जीनियस इस दुनिया में अजनबी की तरह जीता है।
      आऊटसाइडर को अस्‍तित्‍ववाद के छोटे दायरे से मुक्‍त कर विलसन उसे ‘’रोमांटिक आऊटसाइडर’’ की नई दिशाएं बहाल करता है। पुस्‍तक के तीसरे परिच्‍छेद में वह लिखता है।
      ‘’अस्तित्ववादियों ने पैदा किए हुए आऊटसाइडर के वातावरण में सांस लेना दुखद है। उसमें कुछ मितली आने जैसा है, जीवन विरोधी है। ये निरूदेश्‍य लोग एक ही कमरे में रहते है क्‍योंकि कुछ और करने जैसा नहीं है। इनके जीवन में कोई मूल्य नहीं है। यह बुज़ुर्गों का जगत है। इससे विपरीत बच्‍चों का जगत बिलकुल साफ-सुथरा है। उसकी हवा में अपेक्षाओं का स्‍पंदन है। क्रिसमस के समय सजी-धजी बड़ी दुकान नये का जगत का हिस्‍सा है। रूग्ण चित के लिए, इस दुकान के बाहर खड़े हुए आदमी के लिए यह नया जगत भय पैदा करता है। यह यांत्रिक सभ्‍यता का प्रतीक है जो लकीरों पर चलती है मानों ग्रामोफोन रेकार्ड हो।
      ‘’बच्‍चों के और बड़ों के जगत में जो फर्क है वही फर्क उन्‍नीसवीं शताब्‍दी और वर्तमान समय के बीच है। जॉज स्टूवर्ड मिल, हक्सले, डार्विन, इमर्सन, कार्ल इल, रस्‍किन इन विक्‍टोरियन युन के ऋषियों ने विचार के जगत में जो क्रांति लायी उससे मानव जीवन में  अंतहीन परिवर्तनों का सिलसिला शुरू हुआ। और मनुष्‍य अपनी ही मृत आत्‍माओं को सीढ़ी बनाता हुआ आगे बढ़ता चला गया। इससे पहले कि हम उसकी निंदा करें हम—जो कि दो विश्‍व युद्धों और अणु बम से बचकर निकले है—उन बुज़ुर्गों की स्‍थिति में है जो बच्‍चों की बुराई करते है। अठारहवीं और उन्‍नीसवीं सदी का बुद्धिवाद मन की मुर्दा, ऊबाऊ स्‍थिति नहीं थी। वह तीव्र और स्‍वस्‍थ आशावादिता का दौर था जिसे कठिन श्रम और साधारण तर्क से कोई एतराज न था। क्‍योंकि उसने अपने आपको इतना आजाद कभी न अनुभव किया था।
      बीसवीं सदी के पाश्‍चात्‍य लेखकों में हरमन हेस (सिद्धार्थ) का लेखक अर्नेस्‍ट, हमिंग्‍वे, एच जी वेल्‍स इत्‍यादि उपन्‍यासकारों की कृतियां अजनबी के विभिन्‍न पहलुओं को चित्रित करने वाली रचनाएं थी। कला के क्षेत्र में देखा जाए तो ऐसे कई कलाकार थे जो असाधारण प्रतिभा को न झेल पाने की वजह से विक्षिप्‍त हुए। उन्‍हें कॉलिन ‘’कलाकार आऊटसाइडर’’ कहता है। विन सेन्ट वॉन गाग, ऐसा अजनबी है जिसने चित्रकला को अपनी माध्‍यम चूना। विन सेंट वॉन गाग, टी ई लॉरेंस, विलक्षण रशियन नर्तक निजिन्‍सकी इसके कुछ उदाहरण है। इनमें निजिन्सकी पर ईश्‍वर या जीसस क्राइस्‍ट बनने की धुन सवार थी। इसके चलते, अंतिम दिनों में निजिन्सकी का पागल होना वाजिब था। उसकी डायरी उसके दर्दनाक जीवन पर काफी प्रकाश डालती है।
      नृत्‍य निजिन्सकी के भीतर बसे अजनबी की अभिव्‍यक्‍ति का माध्‍यम था; लेकिन वह सिर्फ कलाकार नहीं था, उसकी खोज धार्मिक थी। वह लिखता है, ‘’मैं अपने शरीर में ईश्‍वर को अनुभव करता हूं, कभी वह मेरे सिर में आग बनता है।....मेरा शरीर बीमार नहीं है, मेरी आत्‍मा बीमार है। लेकिन डॉ इसे नहीं समझते।
अपनी डायरी में निजिन्सकी बार-बार लिखता है: मैं ईश्‍वर हूं, मैं ईश्‍वर हूं। मैं अपनी मांस मज्‍जा में इसे अनुभव करता हूं।‘’ निजिन्सकी का जिस्‍म उसकी सृजन ऊर्जा की अभिव्‍यक्‍ति बना और उसके उन्‍मेषों का आज्ञाकारी सेवक की तरह अनुसरण करता रहा। लोग इसे नृत्य कहते थे।
      अजनबी का यह भी मनभावन रूप था........
      फ्रेडरिक नीत्‍शे एक गंभीर, मौलिक चिंतन करने वाला अजनबी था। उसकी प्रतिभा उसे ही भारी पड़ गई। और निजिन्सकी की तरह आखिर वह भी पागल खानें में पहुंच गया। प्रसिद्ध रशियन उपन्यासकार दोस्‍तोव्‍सकी के उपन्‍यास ‘’ब्रदर्स कार्मोझोव’’ की सविस्‍तार समीक्षा करते हुए विलसन ‘’आऊटसाइडर’’ नाम के प्राणी की कुछ ख़ूबियाँ बताता है।
      1. आऊटसाइडर तटस्‍थ बने रहना नहीं चाहता।
      2. वह संतुलित होना चाहता है।
      3. वह मनुष्‍य की आत्‍मा और उसकी कार्य शैली को समझना चाहता है।
      4. वह क्षुद्रता से मुक्‍त होकर अधिक विशाल जीवन जीना चाहता है।
      5. सबसे बढ़कर वह स्‍वयं को अभिव्‍यक्‍ति करना चाहता है। क्‍योंकि उसी के द्वारा         वह  खुद को और खुद की अज्ञात संभावनाओं को समझ सकता है।
      6.किबात के अंतिम दो  परिच्‍छेदों में अजनबी का स्‍तर बौद्धिक न रहकर आध्‍यात्‍मिक हो जाता है। इन परिच्‍छेदों में विलसन रहस्यदर्शीयों को शामिल करता है। उनमें एक है रामकृष्‍ण परमहंस, और दूसरे है, जॉर्ज गुरूजिएफ। रामकृष्‍ण परमहंस का परिचय देते हुए विलसन कहता है।‘’
      ‘’अब तक हम पाश्‍चात्‍य रहस्यदर्शीयों पर चिंतन करते रहे, अब हिंदू रहस्‍यदर्शी रामकृष्‍ण के जीवन का थोड़ा      अवलोकन करें। यह वातावरण अलग है। भारत में ध्‍यान और आत्‍म ज्ञान की लंबी परंपरा है। यहां हम देख सकते है कि आऊटसाइडर जब किसी परंपरा में प्रवेश करता है, जहां वह एक अकेला अजनबी नहीं रहता, तब क्‍या होता है।‘’
      रामकृष्‍ण उनकी शिशु वत निश्‍छलता को बरकरार रखने में सफल रहे। हमारी जटिल आधुनिक सभ्‍यता में हम अपने आसपास एक सषत पर्त ओढने को मजबूर हो जाते है। अंत: यह कहाना गलत नहीं होगा कि हमारे भौतिकवादी और मानवतावादी विचारधारा के लिए हमारी सभ्‍यता जिम्‍मेदार है। उधर रामकृष्‍ण कल्‍पना की उस उन्‍मत्‍त अवस्‍था में गहरे उतर सके जहां पश्‍चिम का आदमी विरला ही पहुंचा है।‘’
      ‘’किताब का समापन करते हुए विलसन ने यह स्‍वीकार किया है कि जीवन में जो भी आऊटसाइडर है, अजनबी है। वह कई समस्याओं से जूझता है। यह समाज साधारण व्‍यक्‍तियों के लिए बना है। उसमें असाधारण व्‍यक्‍ति सदा बेचैन और बेमेल ही रहेंगे। लेकिन ये ही वे व्‍यक्‍ति है जिन्‍होंने समाज को कुछ दिया है, विकास को गतिमान किया है। मनुष्‍य जीवन को समृद्ध बनाया है।
      एक और अजनबी है जो आध्‍यात्‍मिक तल पर जीता है, वह है साक्षी या द्रष्‍टा। वहीं वास्‍तविक तटस्‍थता को उपलब्‍ध हुआ है। सचमुच जीवन के खेल से ही बाहर है। यह अजनबी आनंदमय है, चैन और सुकून में जीता है। यहां तक पहुंचने के लिए मन को छोड़ना पड़ता है। लेकिन पश्‍चिम के बुद्धिजीवी के लिए यह बहुत लंबा सफर है। इसका एक इशारा विलसन के अंतिम वाक्‍य में है।
      ‘’आत्‍म विकास की अंतिम यात्रा पर जब कोई निकलता है तो उसकी शुरूआत अजनबी की तरह होती है और अंत, संत की तरह।‘’
ओशो का नज़रिया:
 ‘’कॉलिन विलसन ने लिखी हुई ‘’दि आऊटसाइडर’’ इस सदी की सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण किताबों में से एक है। लेकिन यह आदमी साधारण है। वह अद्भुत क्षमता का विद्वान है। और उसमें कुछ अंतदृष्टियां भी है—यह किताब सुंदर है।
      जहां तक कॉलिन विलसन का सवाल है, वह खुद आऊटसाइडर नहीं है, वह सांसारिक आदमी है। मैं ‘’आऊटसाइडर’’ हूं, इसलिए मुझे यह किताब अच्‍छी लगती है। मुझे इसलिए अच्‍छी लगती है क्‍योंकि यद्यपि वह उन आयामों को नहीं जानता जिनका वर्णन करता है। वह सत्‍य के बहुत करीब जाकर लिखता है। लेकिन ध्‍यान रहे, तुम सत्‍य के कितने ही करीब होओ, होओगे असत्‍य ही। या तो  तुम सत्‍य हो, या असत्‍य; इसके बीच कुछ नहीं है।
      कॉलिन ने बहुत बड़ा प्रयास किया है। वह आऊटसाइडर के बाहर खड़ा होकर उसके भीतर झांकने का प्रयास करता है। जैसे कोई दरवाजे के बाहर खड़ा होकर ‘’की होल’’ से अंदर झांके। वह थोड़ा बहुत तो देख ही सकता है। और कॉलिन विलसन ने  देखा है।
      यह किताब पढ़ने जैसी है—सिर्फ पढ़ने जैसी। अध्‍ययन करने जैसी नहीं है। इसे पढ़ो और फिर फेंक दो। क्‍योंकि जब तक कोई किताब वास्‍तविक अजनबी से नहीं आती तब तक वह सत्‍य सिर्फ एक प्रतिध्‍वनि होगी—दूर की प्रतिध्‍वनि ....प्रतिध्‍वनि की प्रतिध्‍वनि ।
ओशो
बुक्‍स आय हैव लव्‍ड

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