लीव्‍स ऑफ ग्रास: वॉल्‍ट विटमैन

जुलाई 1855, वॉल्‍ट विटमैन छत्‍तीस साल का रहा होगा। जब उसकी लीव्‍स ऑफ ग्रासका प्रथम संस्‍करण छपा। यदि वह तारीख चार जुलाई अमेरिका का स्‍वतंत्रता दिवसनहीं रही होगी तो होनी चाहिए। उस दिन विटमैन ने न केवल पत्रकारिता के अपने अभूतपूर्व व्‍यवसाय से, स्‍वच्‍छंद लिखने से और तुकबंदी से बल्‍कि साहित्‍य की उन परंपराओं से जो साहित्‍य को लोकतंत्र के कालवाह्मा बनाती है। स्‍वतंत्र होने की घोषणा की। विटमैन ने ऐसी कविता लिख जिसके व्‍यापक आकार और कल्‍पना में उन अमरीकी लोगों के जीवन की और व्‍यवसाय की झलक थी जिनके पास कविता पढ़ने की फुरसत नहीं थी।


      अपने स्‍वयं के निजी स्‍वभाव का उत्‍सव मनाकरवॉल्‍ट विटमैन ने अमरीका स्‍वभाव का उत्‍सव मनाया। उसकी किताब के छह संस्‍करण प्रकाशित हुए। अगले पैंतीस वर्षों में उसके और कई संस्‍करण छपे। जब कि बराबर उसकी निषेधात्‍मक आलोचनाएं,कविताओं के सेन्‍सर करने के प्रयेत्‍न हो रहे थे। वॉल्‍टन में 1882 में उसे प्रतिबंधित भी किया गया।
      इस किताब की पहली प्रति पढ़ने के बाद इमर्सन ने, साहित्‍य में किये गये विटमैन के ढीठ प्रयोग को बुद्धि ओर प्रज्ञा की असाधारण कलाकृति जो अमेरिका ने आज तक पैदा की है। इन शब्‍दों में नवाजा।
      विटमैन के आलोचकों को क्‍या तकलीफ थीउसके कविता की परिपाटी को तोड़-मरोड़ दिया था। न तो उसने सर्वमान्‍य छंद और मात्राओं की फिक्र की, न अनुप्रास का मेल किया। उसने चालू अमरीकी जबान में अपने आपको मुक्‍त भास से प्रगट किया। उसके लिए सेक्‍स जीवन का एक महत्‍वपूर्ण अनुभव है। जिसका उत्‍सव उसने अनेक कविताओं में मनाया था। उसी वजह विक्‍टोरियन अमेरिका की नैतिकता से उसे बहुत तिरस्‍कार मिला।
      आज विटमैन को अमेरिका का होमर और डांते कहा जाता है। और उसके कृतित्‍व को नये युग में साहित्‍यिक मौलिकता की कसौटी। विटमैन अपने साहित्‍य को सिर्फ साहित्‍यिक प्रयोग नहीं मानता था। वे उसके अपने भावनात्‍मक और व्‍यक्‍तिगत स्‍वभाव की अभिव्‍यक्‍तियां थी। इस अर्थ में लीव्‍स ऑफ ग्रासआत्‍म कथा है। लेकिन कवि की दृष्‍टि पूरे अमेरिका जीवन की जोशीली आत्‍मा को घेर लेती है।
      लीव्‍स ऑफ ग्रास के प्रकाशन के तीस साल बाद, सा 1880 में मरण शय्या पर पड़े विटमैन ने किताब की अंतिम भूमिका लिखते हुए कहा: तीस साल के अनवरत संघर्ष के बाद अब मैं बुढ़ापे की धुँधली रोशनी में, लीव्‍स ऑफ ग्रास को देखता हूं, वह नये जगत के लिए दीप स्‍तंभ है—अगर मैं ऐसा कह सकूँ तो। मुझे अपने समय ने स्‍वीकार नहीं किया और मैं भविष्‍य के सुहाने सपनों के सहारे जीता हूं। सांसारिक और व्‍यावसायिक अर्थों में लीव्‍स ऑफ ग्रास, असफल से भी बदतर रही। लोगों ने मेरी किताब की और उसके लेखक के नाते मेरी जो आलोचना कि, उसमें अभी तिरस्‍कार और क्रोध का स्‍वर है। मेरे दुश्‍मनों की एक मजबूत कतार हर कहीं मौजूद होती है......।
      लेकिन मुझे जो कहना था उसे मैंने पूर्णत: मेरे ढंग से कहा और उसे अचूक दर्ज किया। उसका मूल्‍यांकन समय ही करेगा। इतना जरूर है कि मेरी आत्‍मा के बाहर की किसी भी ताकत से न मैं प्रभावित हुआ, न विकृत हुआ।‘’
      साहित्यिक, पाठक, आलोचक वॉल्‍ट विटमैन से इतने क्रोधित क्‍यों थे? उसने किसी का क्‍या नुकसान किया था? अपना गीत ही तो गाया था। लेकिन यही उसका कसूर था।

ओशो का नजरिया:
      मैं वॉल्‍ट विटमैन से उतना ही प्रेम करता हूं, जितना रवीन्द्र नाथ टैगोर से। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि रवीन्द्र नाथ भारतीय है और वॉल्‍ट विटमैन अमरीकी। दोनों में कुछ है जो इन  मूढता पूर्ण बातों का अतिक्रमण करता है। अमरीकी, हिंदू,भारतीय ईसाई। दोनों अज्ञात में ऊंची उड़ान भरते है। और जो अव्‍याख्‍येय है। उसे व्‍यक्‍त करने की अद्भुत क्षमता रखते है। वॉल्‍ट विटमैन मेरे प्रियजनों में से एक है।
दि लास्‍ट टेस्‍टामेंट

      आज सुबह मैंने वॉल्‍ट विटमैन के शब्‍द कहे। वह कहता हूं, मैं उत्‍सव हूं, मैं गीत हूं।‘’
      यह एक अति सुंदर कविताओं में से एक है। उसमें वह अपना ही गीत गाता है। कोई कारण नहीं है, उत्‍सव होना, गीत होना मेरा स्‍वभाव है। यह स्‍वस्‍थ है। इसका मतलब है, स्‍वयं होना।
      वॉल्‍ट विटमैन जब तक जिंदा रहा। उसकी बड़ी निंदा की जाती रही। क्‍योंकि वह अकारण प्रसन्‍न रहता था। वह अकेला नाच सकता था, गा सकता था। किसी के लिए नहीं बस, स्‍वयं के लिए। यह कि वह स्‍वयं एक गीत था। स्‍वयं मूर्तिमान उत्‍सव था। ईसाई गंभीरता उसे समझ न सकी। साधारण मनुष्‍य जाति या तो उसे पागल समझती थी या शराबी। लेकिन न वह नशे में था न पागल। अमेरिका ने जितने लोगों को पैदा किया है उनमें वह सबसे बुद्धिमान लोगों में से एक था। बुद्धिमानी एक उत्‍सव है।

दि इनविटेशन

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