सेक्‍स नैतिक या अनैतिक—ओशो (भाग दो)

हास्‍य और सेक्‍स के बीच क्‍या संबंध है--
     इनमें निश्‍चित संबंध है; संबंध बहुत सामान्‍य है। सेक्‍स का चरमोत्कर्ष और हंसी एक ही ढंग से होता है; उनकी प्रक्रिया एक जैसी है। सेक्‍स के चरमोत्कर्ष में भी तुम तनाव के शिखर तक जाते हो। तुम विस्‍फोट के करीब और करीब आ रहे हो। और तब शिखर पर अचानक चरम सुख घटता है। तनाव के पास शिखर पर अचानक सब कुछ शिथिल हो जाता है। तनाव के शिखर और शिथिलता के बीच इतना बड़ा विरोध है कि तुम्‍हें ऐसा लगता है कि तुम शांत, स्‍थिर सागर में गिर गये—गहन विश्रांति, सधन समर्पण।

      यही कारण है कि कभी भी किसी की मृत्‍यु सेक्‍स क्रिया के दौरान हार्ट अटेक से नहीं हुई। यह आश्‍चर्यजनक है। क्‍योंकि सेक्‍स क्रिया श्रमसाध्‍य कार्य है। यह महान योग है। लेकिन कभी कोई नहीं मरा इसका सामान्‍य सा कारण है कि यह गहन विश्रांति लाता है। सच तो यह है कि कार्डियोलॉजिस्‍ट और हार्ट स्‍पेशलिस्‍ट तो हार्ट के मरीजों को सेक्‍स औषधि की तरह सिफारिश करने लगे है। सेक्‍स उनके लिए बहुत मददगार हो सकता है। यह तनाव को विश्रांत करता है। और जब तनाव चला जाता है, तुम्‍हारा हार्ट अधिक प्राकृतिक ढंग से कार्य करने लगता है।
      यही प्रक्रिया हंसी के साथ भी है: यह भी तुम्‍हारे भीतर का निर्माण करता है। एक निश्‍चित कहानी और तुम सतत उपेक्षा किये चले जाते हो। कि कुछ होगा। और जब सचमुच कुछ होता है वह इतना अनउपेक्षित होता है कि वह तनाव को मुक्‍त कर देता है। वह होना तार्किक नहीं है। हंसी के बारे में यह बहुत महत्‍वपूर्ण बात समझना आवश्‍यक है। यह होना बहुत मजाकिया होना चाहिए, इसे निश्‍चित हास्‍यास्‍पद होना चाहिये। यदि तुम इसका तार्किक ढंग से निष्‍कर्ष निकाल सको, तब वहां हंसी नहीं होगी।
      एक और अर्थ में हंसी और सेक्‍स मन में गहरे से जुड़े है। तुम्‍हारी सेक्‍स की इंद्री तुम्‍हारे सेक्‍स का बाहरी हिस्‍सा है। असल में सेक्‍स वही नहीं है। सेक्‍स दिमाग के किसी केंद्र पर है। इसलिए देर-सबेर मानव इस पुराने तरह के सेक्‍स से मुक्‍त हो जायेगा। यह सचमुच हास्‍यास्‍पद है। यही कारण है कि लोग सेक्‍स अंधेरे में, रात के कंबल की ओट में करते है। यह इतनी बेतुकी क्रिया है कि यदि तुम स्‍वयं अपने को सेक्‍स क्रिया में रत देखो, तुम फिर इसके बारे में कभी नहीं सोचोगे। इसलिए लोग छुपाते है। वे अपने दरवाजे बंद कर लेत है। दरवाज़ों पर ताले लगा लेते है। विशेष रूप से वे बच्‍चों से बहुत डरते है। क्‍योंकि वे इस हास्‍यास्‍पद स्‍थिति को तत्‍काल देख लेते हे। तुम क्‍या कर रहे हो। डैडी आप क्‍या कर रहे थे? क्‍या आप पागल हो गये है? और यह पागलपन लगता है। जैसे कि मिरगी का दौरा पडा हो।
      सेक्‍स और हंसी के केंद्र दिमाग में बहुत पास-पास है, इसलिए कभी-कभी वे एक दूसरे को ढाँक सकते है। इसलिए जब तुम सेक्‍स क्रिया में जाते हो, यदि तुम इसे सचमुच होने दो, स्‍त्री को गुदगुदी होने लगेगी। यह गुदगुदाता है। क्‍योंकि केंद्र बहुत पास है। शिष्टता वश वह हंसेगी नहीं, क्‍योंकि पुरूष को बुरा लग सकता है। लेकिन केंद्र बहुत पास है। और कभी-कभी जब तुम गहरी हंसी में होते हो तो आनंद का वैसा ही विस्‍फोट होगा जैसा सेक्‍स में होता है।
      वह मात्र सांयोगिक नहीं है। कि कई खूबसूरत चुटकुले सेक्‍स से जुड़े होते है। केंद्र बहुत नजदीक है.....मैं क्‍या कर सकता हूं?
ओशो
कम, कम, याट अगेन कम

सेक्‍स के प्रति ज़ेन नजरिया क्‍या है?
      ज़ेन का सेक्‍स के प्रति कोई नजरिया नहीं है। और यह ज़ेन की खूबसूरती है। यदि तुम्‍हारा कोई नजरिया होता है इसका मतलब ही होता है कि तुम इस तरह या उस तरह उससे ग्रस्‍त हो। कोई सेक्‍स के विरोध में है—उसका एक तरह का नजरिया है; और कोई सेक्‍स के पक्ष में है—उसका दूसरे तरह का रवैया है। और पक्ष में या विपक्ष में दोनों एक साथ चलते है जैसे कि गाड़ी के दो पहिये। ये शत्रु नहीं है, मित्र है, एक ही व्‍यवसाय के भागीदार।
      ज़ेन का किसी तरह नजरिया नहीं है। सेक्‍स के प्रति किसी का कोई भी नजरिया क्‍यों होना चाहिए? यही इसकी खूबसूरती है—ज़ेन पूरी तरह से सहज है। पानी पीने के बारे में तुम्‍हारा कोई नजरिया है? भोजन करने के बारे में तुम्‍हारा कोई नजरिया है? राज सोने को लेकर तुम्‍हारा कोई नजरिया है? कोई नजरिया नहीं है।
      मैं जानता हूं कि पागल लोग है जिनका इन चीजों के बारे में भी नजरिया है, कि पाँच घटों से अधिक नहीं सोना भी एक तरह का पाप है, कुछ मानों आवश्‍यक बुराई, इसलिये किसी को पाँच घंटे से अधिक नहीं सोना चाहिए। या भारत में ऐसे लोग है जो सोचते है कि तीन घंटों से अधिक नहीं सोना चाहिए।
      कई सदियों से यह बहुत बड़ी दुर्धटना घटी है। लोग सृजनहीन लोगों को पूजते रहे है। और कभी-कभी विकृत चीजों को। तब सोने के प्रति भी तुम्‍हारा नजरिया होगा। ऐसे लोग है जिनका भोजन के प्रति नजरिया है। यह खाओ या वह खाओ, इतना खाओ, इससे अधिक नहीं। वे अपने शरीर की नहीं सुनते है, शरीर भूखा है या नहीं। उनका अपना कोई विचार है जो वे प्रकृति पर थोपते है।
      ज़ेन का  सेक्‍स के बारे में किसी प्रकार का नजरिया नहीं है। जेन बहुत सामान्‍य है, ज़ेन मासूम है। ज़ेन बच्‍चे जैसा है। वह कहाता है कि किसी प्रकार के नज़रिये की जरूरत नहीं है। क्‍यों? क्‍या छींकने को लेकर तुम्‍हारा कोई नजरिया है? छींके या नहीं। यह पाप है या पुण्‍य। तुम्‍हारा कोई नजरिया नहीं है। लेकिन मैंने ऐसा व्‍यक्‍ति देखा है जो छींकने का विरोधी है। और जब कभी वह छींकता है स्‍वयं की रक्षा के लिए तत्‍काल मंत्र जाप करता है। वह एक छोटे से मूर्ख पंथ का हिस्‍सा था। वह संप्रदाय सोचता है जब तुम छिंकते हो तुम्‍हारी आत्‍मा बाहर चली जाती है। छींकने में आत्‍मा बाहर जाती है, और यदि तुम परमात्‍मा को याद नहीं करो तो हो सकता है वापस न आये।  यदि तुम छींकते हुए मर जाते हो तो तुम नर्क चले जाओगे।
      किसी भी चीज के लिए तुम्‍हारा नजरिया हो सकता है। एक बार तुम्‍हारा कोई नजरिया होता है, तुम्‍हारा भोलापन नष्‍ट हो जाता है। और वे नजरिया तुम्‍हारा नियंत्रण करने लगते है। ज़ेन न तो किसी चीज के पक्ष में है न ही किसी के विपक्ष में। ज़ेन के अनुसार जो कुछ सामान्‍य है वह ठीक है। साधारण होना, कुछ नहीं होना, शुन्‍य होना, बगैर किसी अवधारणा के होना, चरित्र के बगैर, चरित्र विहीन......
      जब तुम्‍हारे पास कोई चरित्र होता है तुम किसी तरह के मनोरोगी होते हो। चरित्र का मतलब है कि कुछ तुम्‍हारे भीतर पक्‍का हो चुका है। चरित्र का मतलब है तुम्‍हारी अतीत। चरित्र का मतलब है संस्‍कार, परिष्‍कार। जब तुम्‍हारा कोई चरित्र होता है तब तुम इसके कैदी हो जाते हो, तुम अब स्‍वतंत्र नहीं रहे। जब तुम्‍हारे पास चरित्र होता है तब तुम्‍हारे आसपास कवच होता है। तुम स्‍वतंत्र व्‍यक्‍ति नहीं रहे। तुम अपना कैद खाना अपने साथ लेकिन चल रहे हो; यह बहुत सूक्ष्‍म कैद खाना है। सच्‍चा आदमी चरित्र विहीन होगा।
      जब मैं कहता हूं चरित्र विहीन तब इसका क्‍या मतलब होता है। वह अतीत से मुक्‍त होगा। वह क्षण में व्‍यवहार करेगा। क्षण के अनुसार। सिर्फ वही तात्‍कालिक हो सकता है। वह स्‍मृति ने नहीं देखा कि अब क्‍या करना। एक तरह की स्‍थिति बनी और तुम अपनी स्‍मृति में देख रहे हो—इसका मतलब है कि तुम्‍हारे पास चरित्र है। जब तुम्‍हारे पास कोई चरित्र नहीं होता है तब तुम सिर्फ स्‍थिति को देखते हो और स्‍थिति तय करती है कि क्‍या किया जाना चाहिए। तब यह तात्‍कालिक होता है तब वहां जवाब होगा न कि प्रतिक्रिया।
      ज़ेन के पास किसी बात के लिए कोई विश्‍वास-प्रक्रिया नहीं है। और इसमे सेक्‍स भी आ जाता है—ज़ेन इसके बारे में कुछ नहीं कहता है। और यह मूलभूत बात होनी चाहिए। समाज ने दमित मन पैदा किया, जीवन निरोधी मन, आनंद का विरोधी। समाज सेक्‍स के बहुत अधिक विरोध में है। समाज सेक्‍स के इतना विरोध में क्‍यों है। क्‍योंकि यदि तुम लोगों को सेक्‍स का मजा लेने दो, तुम उन्‍हें गुलाम नहीं बना सकते। यह असंभव है—एक आनंदित व्‍यक्‍ति गुलाम बनाये जा सकते है। आनंदित व्‍यक्‍ति स्‍वतंत्र व्‍यक्‍ति है; उसके पास अपनी आत्म निर्भयता है।
      तुम एक आनंदित व्‍यक्‍ति को युद्ध के लिए भरती नहीं कर सकते। वे युद्ध के लिए क्‍यों जायेंगे? लेकिन यदि व्‍यक्‍ति ने अपने सेक्‍स का दामन किया है तो वह युद्ध के लिए तैयार हो जायेगा।  वह युद्ध में जाने के लिए तत्‍पर होगा। क्‍योंकि  उसने जीवन का आनंद नहीं लिया। वह जीवन का आनंद लेने काबिल नहीं रहा, इसलिए वह सृजन के भी काबिल नहीं रहा। अब वह मात्र एक काम कर सकता है—वह विध्‍वंस कर सकता है। उसकी सारी उर्जा जहर हो गई है।
      यदि समाज आनंदित होने के पूरी स्‍वतंत्रता देता है, तो कोई भी विध्वंसात्मक नहीं होगा। जो लोग सुंदर ढंग से प्‍यार कर सकते है वे कभी विध्वंसात्मक नहीं हो सकते। और जो लोग सुंदर ढंग से प्रेम कर सकते है और जीवन का आनंद मना सकते हे वे प्रतियोगिक भी नहीं होंगे। सिर्फ प्रेम की मुक्‍ति इस दुनिया में क्रांति ला सकती है। साम्‍यवाद असफल हो गया, तानाशाही असफल हो गया। सभी वाद असफल हो गये क्‍योंकि गहरे में ये सभी सेक्‍स का दमन करते है। इस मामले में उनके बीच कोई फर्क नहीं है—वाशिंगटन और मॉस्को में कोई मतभेद नहीं है। बीजिंग और दिल्‍ली में—कोई मतभेद नहीं है। ये सभी एक बात पर सहमत है—सेक्‍स पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। लोगों को सेक्स में सहज आनंद लेने की अनुमति नहीं देते है।
      सामान्‍यतया समाज सेक्‍स के विरोध में है, तंत्र मानवता की मदद करने के लिए आया है, मानवता को सेक्‍स पुन: देने के लिए। और जब सेक्‍स वापस दिया जायेगा, तब ज़ेन की उत्पती होती है। ज़ेन का कोई नजरिया नहीं है। ज़ेन शुद्ध स्‍वास्‍थ्‍य है।
ओशो
दि डायमंड सूत्रा

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