अद्वैत—’’ध्‍यान''


यह बहुत पुराने मंत्रो में से एक है। जब भी आप विभाजित महसूस करें जब भी आप देखें कि द्वैत आ रहा है, तो भीतर सिर्फ कहें: ‘अद्वैत’। लेकिन इसे होश से कहें, यांत्रिक ढंग से न दोहराएं, जब भी आप महसूस करें कि प्रेम उठ रहा है, कहें: ‘अद्वैत’। नहीं तो पीछे घृणा प्रतीक्षा कर रही है—वे एक ही है। जब महसूस करें कि घृणा पैदा हो रही है, कहें: ‘अद्वैत’। जब आप महसूस करें कि जीवन पर पकड़ पैदा हो रही है, कहें: ‘अद्वैत’। जब आप मौत का भय महसूस करें, कहें: ’अद्वैत’। एक ही है। और यह कहना आपको अनुभूति होना चाहिए। यह आपके बोध से, आपकी अंतर्दृष्टि से आना चाहिए। और अचानक आप अपने भीतर एक शांति अनुभव करेंगे। जिस क्षण आप कहते हैं ‘अद्वैत’—यदि आप इसे पूरे बोध से कह रहे हैं, सिर्फ यांत्रिक ढंग से दोहरा नहीं रहे हैं—तो अचानक आप एक प्रकाश से भर उंठेंगे। ओशो—( आरेंज बुक)

No comments:

Post a Comment

Must Comment

Related Post

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...