पागल और कुत्‍ता संबंध—एक विवेचन

पिछले दिनों हमारा पालतू कुत्ता जब 16 साल की आयु पा कर मरा। उसका तिल-तिल मोत के करीब जाते शरीर को मैने बहुत नजदीक से देखा, हिलती गर्दन, धुँधली हुई आंखे। रात को जब वह उठ कर सोच आदि के लिए अपने बिस्‍तरे से बहार आता। उन शरद रातों में भी वह बिस्‍तरे में शोच आदि नहीं करता था। और मनुष्‍य की मृत्‍यु....महीनों बिस्‍तर में गंद मचा-कर मरता है। और उस सुबह कितनी सहजता से उसका मरना। मरने से आधा घंटे पहले जब मैं उससे मिलने गया। तब न जाने उसने कोन सी भाषा में मुझ से कुछ कहना चाहा, न तो वो उसकी भाषा था। और न हमारी। ऊँ....ऊँ......ओ...ओ.....अई.....ई......करके करीब 15 मिनट तक मुझे कुछ कहता रहा। मैं उसके सर और गर्दन पर प्‍यास से हाथ फेरता रहा। उसने अपनी आंखें बंद कर ली। मुझे नहीं पता था कि वह अपनी आखरी विदाई मुझे ले रहा है। लेकिन इतना जरूरत जानता हूं उसकी मृत्‍यु में ऐ विभेद था। वह किसी कुत्‍ते की मोत नहीं मरा था। उसमें एक होश था, जागरण था, उसे समझ थी कि मुझ अपने रहने के स्‍थान को गंदा नहीं करना। उसका मन काम कर रहा था। और मुझे विश्‍वास ही नहीं यकीन है कि उसकी चेतना ने विकास किया है। और वह अपनी योनि से उच्‍च योनि में गति कर गया। और संभावना है, वह मनुष्‍य के संग साथ रहा है। उसमें मन का विकास हो गया था, वह चाह कर खाना खाता था, उसकी अपनी पंसद ना पसंद थी। वह रूठना मनना जानता था। वह प्‍यार और उसका इजहार कर सकता था। 

      तब उसकी इस बिदाई के बाद लगा की क्‍या ने पोनी की याद में एक आत्‍म कथा लिखी जाये। तभी से मैं कुत्‍तों की एक-एक हरकत, उसके व्यवहार। पर गोर करने लगा। तभी एक दिन देख की एक पागल आदमी...आया और उसने बहुत सी कंकर उठाई और सोते हुऐ कुत्‍ते को मारने लगा। मैं उसके पास गया और पूछा ऐसा क्‍या किया। तुझे रहने की, खाने की समझ तो है नहीं, पशुओं की तरह से जीता है। परंतु तू नाहक इस कुत्‍ते को कंकर क्‍या मार रहा है। तब वह एक विजयी हंस हंसता हुआ, अपने फटे हुऐ कपड़ों की पोटली लेकर आगे चल दिया। एक पागल आदमी से उत्‍तर की उम्‍मीद नहीं की जा सकती है।
      उसके बाद तो इस बात को मैंने बहुत गोर से लिया। और फिर अचानक ये देखा की पागल और कुत्‍ते का कोई अंदरूनी संबंध है। आप भी इसे बड़ी सहजता से देख सकते है आपने आस पास। मंद बुद्धि या पागल बच्‍चे हो या बूढे कुत्‍ते ये या तो डरेगे या उसे मारेंगे। इसमे आपको साधारण मनुष्‍य की भी गिनती कर सकते है। कितने ही लोग नाहक सोते कुत्‍ते को लात मारते चलेंगें अकारण। ये उनमें भरी हंसा की भावना के साथ हीनता भी है, वह पागल कुछ जरूर उसके अचेतन में कही चोट माता होगा। तब समझो वह मनुष्‍य भी चल दिया पागल पन की और अभी उसमे डिग्री की कमी है। जिस दिन सौ प्रतिशत हो जायेगी वह भी हो जायेगा हिलैरियस। अभी वह चालीस, पचास या साठ पर अटका है। फिर इसकी विपरीत धुव्र भी होनी चाहिए। कोई भी नदी एक किनारे से बह नहीं सकती। जब स्‍थूल है तो सूक्ष्म भी होगा। मैटर है ऐनिमेटर भी होना चाहिए। आज हम उस धुव्र को नहीं जानते तो यह हमारी कमी है। आस्‍तित्‍व अपने अंदर अभी हजारों रहस्‍य छूपाये हुए है। विज्ञान चल रहा है...जैसे-जैसे वह और उलझता जाता है।
      तब मैंने पानी के जीवन को बचपन से मरने तक का विवेचन किया। जब वह हमारे घर आया था तो हमारे बच्‍चें छोटे थे। वह उससे डरते थे। लेकिन कुछ ही दिन में उनके मन से उसके प्रति भय खत्‍म हो गया। और फिर तो वह एक दूसरे के साथ ऐसे हिल मिल गये। जैसे मनुष्‍य में भी प्रेम नहीं होता। क्‍योंकि आपने देखा पशु के पास मन नहीं होता। इस लिए उसमें अहंकार नहीं होता। और प्रेम और विलय में अहंकार ही बाधा है। इसलिए आप कुत्‍ते या दूसरे पशुओं के साथ बड़े स्वाभाविक तरीके से जी सकते हो। वह आपके तनाव, चिंता, को पलभर में काफूर कर देगा।
      करोड़ साल की लम्‍बी यात्रा कर एक जंगली प्राणी आज हमारे बेड़-रूम ही, नहीं किचन तक हमारे साथ आ गया है। बहुत कुछ खोया है। इसके लिए इस पशु (कुत्‍ते) ने बहुत कुछ सहा, जो न वह हमारी भाषा समझता है। न उसका शरीर इस तरह का है। फिर भी हजारों बाधाओं को पार कर आज वह पृथ्‍वी पर मनुष्‍य का सबसे नजदीकी दोस्‍त है। क्‍या किया होगा इस सब को पाने के लिए इस कुत्‍ते ने। कितना कठिन है अपने स्‍वभाव को छोड़ना। एक अनजाने लोक में रहने जैसा है। कितनी ही कथाएं है...मनुष्‍य और कुत्‍ते के प्रेम की,......खो दी बेचारे ने अपनी आजादी, सोप दिया उसने अपने को मनुष्‍य के हाथ में जैसी तेरी मर्जी। कैसा अद्भुत समरपर्ण है। इस पशु का।
      मैंने एक बार एक चित्र देखा था, राष्ट्र संग्रहालय में। मजनू के साथ उसका कूता भी बैठा है। दोनों सुख कर हड्डी-हड्डी हो गये थे। मजनू को तो प्रेम था लेला से...ओर इस कुत्‍ते को प्रेम था मजनू से। सच कुत्‍ता जीता जागता प्रेम का देवालय है। उसके शरीर से निकली तरंगों को महसूस किया जा सकता है। उसके संग साथ रहकर। कुछ ही देर में आप अवसाद से प्रेम से भर जायेंगे कुत्‍ते के साम रहते हुए। मेरा अपना मानना है। जिस घर में कुत्‍ता होगा। उस घर के बच्‍चें अधिक प्रेम पूर्ण होगे। आज नहीं कल विज्ञान इसे सही साबित कर देगा।
      हिन्‍दुओं ने कुत्‍ते के महत्‍व को बहुत पहल समझ लिया था इस लिए उसे भैरव का गण बताया गय। एक पवित्र। महाभारत में भी पांचों पांडवों जब हिमालय में अज्ञात की और जा रहे थे तब चारों भाई रास्‍ते में ही रह गये। कथा कहती है कि युद्धिस्‍ठर के साथ उसका कुत्‍ता ही स्‍वर्ग गया। ये एक प्रतीकात्मक कथा है। आज गाये जितनी पीड़ा और तिरस्‍कार झेल रही है। कृष्‍ण काल में वह उतनी ही पूज्‍य थी। लेकिन कुत्‍ता कल भी मनुष्‍य के संग साथ रहा मित्र बन कर, आज भी रह रहा है।
      मनोवैज्ञानिक भी कुत्‍ते और आदमी के सबंध में बहुत खोज कर रहे है। उसकी गति तो बहुत सहज होती है। कछुवे की चाल। परंतु मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर पागल आदमी कुत्‍ते के संग रहने लगे तो कुछ ही दिन में उसका पागल पन कुछ ग्रहण कर लेगा। लेकिन वह रह नहीं सकता। या तो भाग जायेगा  या कुत्‍ते को मार देगा। क्‍योंकि उसे लगेगा की मुझसे कुछ चूसा जा रहा है। और आदमी अपने कचरे को भी छोड़ना नहीं चाहता। लेकिन हम इतना तो कर ही सकते है। अपने बच्‍चो को इस पशु के संग अधिक-से अधिक लाया जाये। जिससे उनका बोघिक विकास तो होगा ही। उनका मानसिक तनाव भी खत्‍म हो जायेगा। वह अपने अंदर एक खास तरह की शांत महसूस करेंगे। वह अपने आस पास के माहोल को आनंद से भर देता है। आपने देखा जब भी आप घर आते है, अपका पालतू कुत्‍ता लाख काम छोड़ कर सबसे पहले आपका स्‍वागत करेगा। आपको प्‍यार करेगा। मानो घंटो से वह आपकी राह तक रहा है। उसके अंदर तीसरी सेंस भी होती है। रात जब तक एक-एक प्राणी घर पर न आ जाये हमारा कुत्‍ता अंदर नहीं आता था। वह आँगन में बैठ कर इंतजार करता। चाहे कितनी ही शीतल रातें हो। और जिस समय वरूण दूकान बंद करता। ठीक उसी समय वह आँगन में आ कर बैठ जाता। उसे मीलों दूर का कैसे पता चलता कि अब वह वहां से चल दिया क्‍योंकि मैंने कई बार फोन कर के इस बात को जांचा। फिर आप उसे कितना ही प्‍यार करों, दुलार करो, पर वह अपनी जगह से टस से मस नहीं होगा।
      जिस तरह से डोल फिन मछली की तरंगें न बोलने वाले बच्‍चें में भी बोलने की शमता प्रदान कर देती है। ठीक इसी तरह कुत्‍ता भी मनुष्‍य में प्रेम और आनंद का संचार करता है। और उसके अंदर के पागल पन को बहार खिंच लेता है।
      एक अंजाना खिचाव है मंदबुद्धि-पागल और कुत्‍ते में। दो अगल-अलग धुव्र है। इस बात पर डा. को शोध करना चाहिए और पागल खानों में पागलों को अधिक से अधिक कुत्‍तों की देखभाल करने कि लिए उत्‍साहित करना चाहिए। ताकि एक दूसरे का अधिक-से अधिक साथ हो सके। ये एक अच्‍छी शुरू आत हो सकती है। जो आगे बहुत सुंदर परिणाम ला सकती है।
स्‍वामी आनंद प्रसाद ‘’मनसा’’

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