परंपरा और धर्म परंपरा और धर्म

धर्म विद्रोह है। 
धर्म का और कोई रूप होता ही नहीं।
धम्र कभी परंपरा बनता ही नहीं,
जो बन जाता है, परंपरा वह धर्म है ही नहीं।
परंपरा तो ऐसे है जैसे आदमी गुजर गया,
उसके जूते के चिन्‍ह रेत पर पड़े रह गए। 
वे चिन्‍ह जीवित आदमी तो है ही नहीं,
आदमी के जूते भी नहीं है।
जीवित आदमी तो छोड़ो, 
मुर्दा जूते भी उन चिन्‍हों में नहीं है, 
छाया की भी छाया है।
धर्म खतरनाक है,
धर्म से ज्‍यादा खतरनाक और को चीज़ पृथ्‍वी पर नहीं है।
लेकिन अक्‍सर देखोगे भीरूओं को धार्मिक बने।
घुटने टेके, प्रार्थनाएं-स्‍तुति करते हुए, भयाक्रांत।
उनका भगवन उनके भय का निचोड़ है।
धर्म तो खतरनाक ढंग से जीने का नाम है।
धर्म का अर्थ है निरंतर अभियान।
धर्म का अर्थ ही है पुराने और पीटे-पिटाए से राज़ी न हो जाना।
नए की, मौलिक की खोज।
धर्म का अर्थ है, अन्‍वेषण। 
धर्म का अर्थ है, जिज्ञासा, मुमुक्षा।
धर्म का अर्थ है, उधार और बासे से तृप्‍त न हो जाना,
धर्म वेद से राज़ी नहीं होता,
जब तक अपना वेद निर्मित न हो जाए।
धर्म स्‍मृति में नहीं है। धर्म अनुभूति में है।
श्रुति और स्‍मृति। या तो सुना, या याद रखा।
लेकिन धम्र तो है, अनुभूति, न श्रुति, न स्मृति

--एस धम्‍मो सनंतनो 

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