मैं चाहता हूं कि तुम इस सत्य को ठीक-ठीक
देह का सम्मान करे, अपमान न करना।
देह को गर्हित न कहना: निंदा न करना।
देह तुम्हारा मंदिर है।
मंदिर के भीतर देवता भी विराजमान है।
मगर मंदिर के बिना देवता भी अधूरा होगा।
यह अपूर्व आनंद का अवसर है।
इस अवसर को तूम खँड़ सत्यों में तोड़ो।
--ओशो
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