कोई तो अमीरों का गुरु हो--[8}—ओशो

मरने की स्‍वतंत्रता होनी चाहिए--
(अमेरिका में तथा विश्‍व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्‍व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्‍ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्‍ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
(डेर श्‍पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ)
प्रश्‍न-–बस एक और प्रश्‍न उन लोगों के बारे में जो आपसे जुड़ रहे है। आपके साथ खड़े होने वालों के बारे में। मेरा ख्‍याल है कि सैद्धांतिक रूप से पश्‍चिम के हताश युवा आपके पास आ रहे है जो अधिक आज्ञाकारी है और जो बहुत से प्रश्‍न नहीं पूछते। क्‍योंकि भारतीय अधिक व्‍यावहारिक दिमाग के लोग नहीं है?

ओशो—क्‍या तुम सोचते हो कि तुम भारतीय हो?


प्रश्‍न–नहीं-नहीं।
ओशो—क्‍या तुमसे अधिक हताश व्‍यक्‍ति यहां कोई दिख रहा है?

प्रश्‍न–नहीं—नहीं।
ओशो—तुम कम्‍यून में जाओं और देखो यदि तुम एक भी हताश व्‍यक्‍ति ढूंढ़ पाओ।
प्रश्‍न–यहां नहीं, परंतु ऐसा दिखता है कि वे पश्‍चिमी सभ्‍यता से संतुष्‍ट नहीं है......
ओशो—वे असंतुष्‍ट है क्‍योंकि वे प्रतिभावान है। सिर्फ भैंसें असंतुष्‍ट नहीं होती।
प्रश्‍न–आप अपने गृह देश में भी बहुत से प्रतिभावान लोग पाएंगे। वे आपके पास क्‍यों नहीं आतें?
ओशो—मैं तुम से कह रहा हूं कि भारत मरा हुआ देश है। और प्रत्‍येक चीज जो जन्‍म लेती है, एक दिन मरती है। सभ्‍यता भी जन्‍म लेती है और उन्‍हें भी मरना होता है। परंतु     यह लोगों के लिए बहुत कठिन है। कि पुरातन अतीत, पुराना मान, परंपरा की लाशों को त्‍याग दें। वे लाशों को अपने कंधों पर ढोये चले जाते है। वे बहुत परंपरावादी है। बहुत रूढ़िवादी, और किसी भी नई चीज के लिए पूरी तरह से बंद। वे सोचते है कि उनके शास्‍त्रों में सभी सत्‍य उपलब्‍ध है, उन्‍हें जरूरत नहीं है......।
प्रश्‍न—हमारा विचार है कि आपके अधिकांश अनुयायियों में, मैं आलोचना की तरह नहीं कह रहा हूं—पश्‍चिमी सभ्‍यता से छिटक गये लोग है।

ओशो—नहीं।
प्रश्‍न—मैंने एन ड्रेस एल्‍टन की एक किताब पढ़ी है और उसने लिखा है कि वह पश्‍चिमी सभ्‍यता से पूरी तरह असंतुष्‍ट था, और....

ओशो—क्‍या तुम जां पाल सात्र को बर्ट्रेंड रसल को छिटका हुआ कहोगे?

प्रश्‍न—पश्‍चिमी सोच में हां......
ओशो—बर्ट्रेंड रसल, छिटका हुआ।
प्रश्न—पश्‍चिमी सोच में हां, मैं उसे छिटका हुआ कहूंगा।
ओशो—किसी भी सोच में क्‍या बट्रे्रड़ रसेल को छिटका हुआ कह सकते हो? एक तरफ तुम उस व्‍यक्‍ति को नोबल पुरस्‍कार देते हो और दूसरी और उसे छिटका हुआ कहते हो।
प्रश्‍न–ठीक जीवन विरोधाभासों से भरा पडा है।
ओशो-मैं समझा तुम क्‍या कहना चाहते हो। कोई भी प्रतिभावान है जो दुनिया, समाज, परिवार की हकीकत से थोड़ा सा भी वाकिफ है उसे छिटका हुआ होना ही पड़ेगा। छिटका होना पूरी तरह से विधायक है। यदि घर में आग लगी हो तो तुम उसमें से भाग कर बहार आ जाओगे। यह पलायन नहीं है।
प्रश्‍न—परंतु आप सोचते है कि आपका ढंग ही मात्र निदान है, आप  मानते है।
ओशो—नहीं, मैं नहीं कहता कि मात्र मैं ही रक्षक हूं, या निदान हूं, परंतु......
प्रश्‍न—तब आप क्‍या विकल्‍प बताते है?

ओशो—मैं कोई विकल्‍प नहीं बताता।
प्रश्‍न—ठीक आप कहते है नये मनुष्‍य का निर्माण.....
ओशो—मैं मात्र जो मैंने अनुभव किया है उनको बता देता है, और यदि वे स्‍वयं मेरे साथ किसी तरह कोई आंतरिक सह संवेदन महसूस करते है, तो यह उनका मामला है। वे मेरे साथ रहना चाहते है या घर लौट जाना चाहते है। मैं कभी किसी को यहां रहने के लिए नहीं कहता। और न ही रोकता हूं। यह सब कुछ उन पर निर्भर है। यह कम्‍यून पूरी तरह से स्‍वतंत्र है।
प्रश्‍न—परंतु फिर भी, आप नये मनुष्‍य के निर्माण में लगे है। जैसा की आप कहते है जैसा की आपने लिखा हे।
ओशो—मैं नये मनुष्‍य के निर्माण में लगा हूं यह मात्र एक सोच है। यह ऐसा नहीं है कि नया मनुष्‍य मूर्ति की तरह बनाना है। मैं सिर्फ कह रहा हूं कि नया मनुष्‍य कैसा होना चाहिए।
प्रश्‍न—लेनिन, मार्क्‍स, एडोल्‍फ हिटलर ऐसे कई लोगों द्वारा नये मनुष्‍य की बात कही गई है। परंतु कोई भी नया मनुष्‍य बनाने में सफल नहीं हो सका.....
ओशो-क्‍योंकि उन सबके तरीके सही नहीं थे, वे अस्‍तित्‍व के साथ तालमेल नहीं बैठा पाये, वे सभी असफल हुए।
प्रश्‍न—आपके नये मनुष्‍य और नाज़ियों के महा मानव में क्‍या फर्क है?

ओशो—महा मानव अतिवादी सोच है। नया मनुष्‍य किसी ढंग से महान नहीं है। नया मनुष्‍य सामान्‍य व साधारण व्‍यक्‍ति है। एक बात समझने की कोशिश करो; मैं चाहता हूं कि लोग सहज जीयें, सामान्‍य, महान बनने की कोशिश के बगैर। स्‍वर्ग की तीर्थ यात्रा पर जाये बगैर। मात्रा यहां और अभी होना। और जो भी जिंदगी तुम्‍हें दे उसका आनंद लो। सृजनात्‍मक बनो, प्रतिभावान बनो—परंतु यह तुम्‍हें यह तुम्‍हें महा मानव नहीं बनता। नाझी का महा मानव एडोल्‍फ हिटलर पैदा करता है। और मूर्खता ऐसी कि सभी उसका अनुसरण करते है। नया मनुष्‍य महा मानव नहीं है।

प्रश्‍न—ओशो के मरने के बाद क्‍या होगा? क्‍या कोई उतराधिकारी होगा?

ओशो—कौन चिंता लेता है?

प्रश्‍न—आपके अनुयायी।
ओशो—यह उन पर निर्भर करता है।

प्रश्‍न–क्‍या वे किसी एक के लिए वोट देंगे? क्‍या चुनाव होगा?

ओशो—मेरा इसमें कोई लेना देना नहीं है। जिस क्षण मैं मरता हूं.......
प्रश्‍न–उनका चुनाव कैसे होगा?

ओशो—तुम मुझे समझने की कोशिश करो, मैं परवाह नहीं करता।
प्रश्‍न–तो आप अपनी चर्च के प्रति कोई जिम्‍मेदारी नहीं समझते।
ओशो—जो भी हो, कोई जिम्‍मेदारी नहीं, क्‍योंकि सभी जिम्मेदारियाँ गुलाम बनाती है। तब मैं सर्व सत्ताधिकारी हूं।
प्रश्‍न—एक बार आपने कहा कि जब आप जाएंगे ‘’बहुत से तुममें से मेरे साथ जाएंगे इसका क्‍या अर्थ है? इससे आपका क्‍या आशय है?

ओशो—ऐसा मैंने कब कहां?

प्रश्‍न—ओह, मुझे नहीं पता कि आपने कब कहां, परंतु मैंने आपकी किसी किताब में पढ़ा है। वह था। ‘’यदि मैं गया तो तुममें से कई मेरे साथ जाएंगे। क्‍या इसका आशय यह है कि जब आप मरेंगे तो दूसरे भी आपका अनुसरण करें?

ओशो—नहीं, यदि तुमने कहीं पढ़ा है, तुमने निश्‍चित ही गलत पढ़ लिया है, बगैर संदर्भ के।
प्रश्‍न—यह बहुत मजेदार सवाल है क्‍योंकि ऐसा ही यह बाइबल में भी आता है। आप मृत्‍यु की स्‍वतंत्रता के समर्थक है—सुखमृत्यु—व्‍यक्‍ति को मरने का अधिकार हो, वह मेडिकल बोर्ड के पास जाकर शरीर से मुक्‍त होने को कह सके।
ओशो-हां।
प्रश्‍न—इसी लिए इस बात को मैं जारी रखना चाहता हूं। और यह भी कि आपका पहला बुद्धत्‍व इससे प्रारंभ होता है.........
ओशो—तुम किसी बात को जारी नहीं रख रहे हो। मैं कोशिश कर रहा हूं कि तुम.........
प्रश्‍न—मुझे अपने पाठकों का भी मनोरंजन करना है, न कि सिर्फ आपका.....
ओशो—मेरा तुम्‍हारे पाठकों से कोई लेना-देना नहीं है। मेरा संबंध सत्‍य से है जो मैं तुम्‍हें बता सकता हूं।
प्रश्‍न—कौन सा सच, मृत्‍यु नियंत्रण के बारे में?

ओशो—जब जन्‍म नियंत्रण है तो मृत्‍यु नियंत्रण होना भी जरूरी है। यह बस जन्‍म नियंत्रण का तार्किक परिणाम है। यदि तुम सिर्फ जन्‍म नियंत्रण की कोशिश कर रहे हो तो तुम बस एक सिरे का नियंत्रण कर रहे हो। दूसरे सिरे के बारे में क्‍या? तुम नये बच्‍चों का जन्‍म रोक रहे हो; यह बहुत जरूरी है, कि लोग अस्‍पतालों में सड़े नहीं। वे मरना चाहते है; यदि वे मरना चाहते है तो यह उनका अधिकार है। और सभी तरह की मेडिकल सहायता इन लोगों को मिलनी चाहिए।
प्रश्‍न—मैं सोचता हूं, यहां में एक बात पूछना चाहता हूं। मैंने आपके अखबार में पढ़ा है, जिसमें आप कहते है, ‘’मैं होश पूर्वक मरना सिखाता हूं, ताकि तुम हमेशा के लिए विदा न ले सको।‘’ इसका क्‍या मतलब है? क्‍या इसका मतलब है कि आप आत्‍महत्‍या सिखा रहे है। अपने धर्म के एक आयाम कि तरह। क्‍या यह चाहने जैसा है?

ओशो—मैं सिर्फ यह कहा रहा हूं कि मृत्‍यु में कुछ भी गलत नहीं है। यह उतनी ही सुंदर है जितनी जिंदगी, यदि तुमने जीवन जिया है और तुम महसूस करते हो कि अब जीवन और कुछ नहीं दे सकता, और तुम महसूस करते हो कि तुम थक चुके हो, खत्‍म हो चुके हो तो इसका क्‍या मतलब है कि तुम्‍हें जीने के लिए घसीटा जाये। क्‍योंकि उस मूर्ख बूढे, हिपोक्राइट्रस ने डॉक्टरों के लिए शपथ बनाई कि वे हमेशा आदमी को बचाने कोशिश करें? आदमी मरना चाहता है; और वे उसे जिंदा रखने की कोशिश किये जा रहे है। तुम कौन हो?

प्रश्‍न—क्‍या आप भी किसी विशेष परिस्‍थिति में आत्‍महत्‍या करेंगे?

ओशो—नहीं, मैं कभी किसी को किसी चीज के लिए प्रेरित नहीं करता। मैं मात्र अपने को व्‍यक्‍त करता हूं, मैं कभी किसी को प्रेरित नहीं करता।
ओशो
दि लास्‍ट टेस्‍टामेंट, भाग—1
(डेर श्‍पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ)

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