परिशिष्‍ट प्रकरण— ( 5 ) सत्‍य का आचरण

एक दिन मैं खेल रहा था। मेरी आयु चार पाँच साल कि रही होगी, उससे अधिक नहीं। जिस समय किसी ने दरवाजे पर दस्‍तक दी, उस समय मेरे पिता अपनी दाढ़ी बना रहे थे। मेरे पिता ने मुझसे कहा, जरा चले जाओ और उनसे कह दो, ‘मेरे पिता जी धर पर नहीं है।’
      मैं बहार चला गया और मैंने कहा: ‘मेरे पिता दाढ़ी बना रहे है और वे आपको बताने के लिए कह रहें है कि मेरे पिता घर पर नहीं है।‘
      उस व्‍यक्ति ने कहा: ‘क्‍यावे भीतर है।’
      मैंने कहा: ‘हां लेकिन जो उन्‍होंने मुझसे कहा वह यही है। मैंने आपको पूरा सत्‍य बता दिया है।’
      वह व्‍यक्ति‍ भीतर आया और मरे पिता ने मेरी और देखा, क्‍या हो गया, और वह व्‍यक्ति बहुत क्रोधित हो गया था, उसने कहा: ‘जरूर कोर्इ बात है, आपने मुझको इस समय घर आने को कहा था, और आपने इस लड़के के द्वारा मुझे खबर भेज दी कि आप बाहर चले गए है।’   
      मेरे पिता ने उससे पूछा, लेकिन आप को किस तरह पता चला कि मैं घर के भीतर हूं।
      उसने कहा: ‘इस लड़के ने मुझको पूरी बात बता दी है कि मेरे पिता भीतर है। वे अपनी दाढ़ी बना रहे है और उन्‍होंने मुझको आपसे यह बताने के लिए कहा है कि वे बाहर गए हुए है।’
      मेरे पिता ने मेरी और देखा। मैं समझ गया कि वह कह रहे हैं, जरा प्रतीक्षा करो, इन सज्‍जन को जाने दो और मैं तुम्‍हें बताऊंगा।‘
      और मैंने उनसे कहा: ‘इससे पूर्व कि ये सज्‍जन जाएं मैं जा रहा हूं।’
      उन्‍होंने कहा: ’लेकिन मैंने तो तुमसे कुछ नहीं कहा।‘
      मैंने कहा: ‘लेकिन मैं सब समझ गया हूं।’
      मैंने उन सज्‍जन से कहा: ‘जरा यहीं रुकिए, पहले मुझको बाहर निकलने दीजिए, क्‍योंकि मेरे लिए परेशानी खड़ी होने वाली है। लेकिन जाते समय मैंने अपने पिता से कहा: आप मुझको सिखाते है, सत्‍य का आचरण करो......लेकिन, ‘मैंने कहा, यह सत्‍य का आचरण का अवसर है और यह इस बात की जांच का भी एक मौका है क्‍या आपका वास्‍तव में यही अभि‍प्राय है कि मैं सत्‍य का आचरण करुँ या आप मुझकेा चालाकी सिखाने की कोशिश कर रहे है? ’
            निस्‍संदेह वे समझ गए कि उस समय चुप रहना ही बेहतर था, तब‍ उन सज्‍जन के सामने मुझसे झगड़ना ठीक नहीं है। क्‍योंकि जब वे सज्‍जन विदा हो जाएंगे मुझको लौट कर घर आना ही पड़ेगा। मैं दो तीन घंटे बाद लौट कर आया, जिससे कि वे शांत हो चुके हों या वहां पर और लेाग भी  रहे। ओरा कोई समस्‍या न खड़ी हो। वे अकेले थे। मैं भीतर गया और उन्‍होंने कहा: ’चिंता मत करो, मैं अब कभी तुमसे उस तरह की बात नहीं कहूंगा। तुमको मुझे क्षमा करना ही पड़ेगा। इस प्रकार से वे एक श्रेष्‍ठ व्‍यकित थे। वरना चार या पाँच वर्ष के बच्‍चे की चिंता कौन करता है।’
      और अपने पूरे जीवन में उन्‍होंने इस तरह की कोई बात नहीं कही। वे जानते थे कि मेरे प्रति दूसरे बच्‍चों से भिन्‍न होना पड़ेगा।


--ओशो

No comments:

Post a Comment

Must Comment

Related Post

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...