आत्‍मा का अशरीरी रूप क्‍या होता है ?.............आपस में कोई डायलॉग की भी संभावना होती है ?भाग--3 (ओशो)

प्रश्न--परिचय नहीं हो सकता दो आत्‍माओं का? एक दूसरे की पहचान?
ओशो—परिचय की जहां तक बात है, दो प्रेतात्‍माएं भी अगर परिचित होना चाहें तो भी दो व्‍यक्‍तियों में प्रवेश करके ही परिचय हो सकती है। सीधी परिचय नहीं हो सकती। करीब-करीब ऐसी हालत है, जैसे हम बीस आदमी इस कमरे में सो जाएं। तो हम बीस रात भर यहीं रहेंगे। लेकिन परिचित नहीं हो सकते। हमारे जो परिचय है वह जागने के ही होंगे। जब हम जागेंगे तो फिर कंटी न्यू हो जायेंगे। लेकिन नींद में हम परिचित नहीं हो सकते। हमारा कोई संबंध नहीं हो सकता। हां, यह हो सकता है। कि एक आदमी जाग जाए, इसमें एक आदमी जाग जाए, वह सबको देख ले।

      इसका मतलब यह है कि अगर एक आत्‍मा किसी के शरीर में प्रवेश कर जाए, तो वह आत्‍मा इन सारी आत्‍माओं को देख सकती है। फिर भी वे आत्माएं उसे नहीं देखेगी। और अगर एक आत्‍मा किसी के शरीर में प्रवेश कर जाए तो वह दूसरी आत्माओं को जो कि अशरीरी है, उनके बाबत कुछ जान सकती है। लेकिन वे आत्माएं उसके बाबत कुछ भी नहीं जान सकती।
      असल में जानना जो है, परिचय जो है, वह भी जिस मस्‍तिष्‍क से संभव होता है वह भी शरीर के साथ ही विदा हो जाता है। हां कुछ संभावनाएं फिर भी शेष रह जाती है जो कि हो सकती है। जैसे अगर किसी व्‍यक्‍ति ने जीते जी मस्‍तिष्‍क मुक्‍त टेलीपैथी या कलैरवांयस के संबंध निर्मित किए हों, किसी व्‍यक्‍ति ने जीते जी मस्‍तिष्‍क के बिना जानने के मार्ग निर्मित कर लिए हों, तो वह प्रेत या देव योनि में भी जान सकेगा। पर ऐसे तो बहुत कम लोग है, इसलिए जिन आत्‍माओं ने कुछ खबरें दी है उस लोक की आत्‍माओं के बाबत वे इस तरह की आत्‍माएं है।
      यह करीब-करीब स्‍थिति ऐसी है कि जैसे बीस आदमी शराब पी लें, सब बेहोश हो जाएं। लेकिन एक आदमी ने शराब पीने का इतना अभ्‍यास किया हो कि वह कितनी ही शराब पी ले और बेहोश न हो, तो वह शराब पीकर भी होश में बना रहे। और जो व्‍यक्‍ति शराब पीकर भी होश में बना रह सकता है, वह शराब के अनुभव के संबंध में कुछ कह सकता है। जो बेहोश रहने वाले नहीं कह सकते। कभी नहीं कह सकते। क्‍योंकि वह जानने के पहले ही बेहोश हो गए होते है।
      तो इस तरह के भी छोटे-मोटे संगठन काम करते है। दुनिया में जो कुछ लोगों को तैयार करते है कि वे मरने के बाद जा लोक होगा, उस लोक के संबंध में कुछ जानकारी दें। जैसे लंदन में एक छोटी सी संस्‍था थी। जिसके कुछ बड़े-बड़े लोग—ऑलिवर लाज जैसे लोग सदस्‍य थे। जिन्‍होंने पूरी कोशिश की, ऑलिवर लाज मरा, तो उन्‍होंने पूरी चेष्‍टा की कि मरने के बाद वह खबर दे सके।
      लेकिन बीस साल तक मेहनत करने पर भी कोई खबर न मिल सकी। ऐसी संभावना मालूम होती है कि ऑलिवर लाज ने बहुत कोशिश की, क्‍योंकि कुछ और आत्‍माओं ने खबर दी कि ऑलिवर लाज पूरी कोशिश कर रहा है। लेकिन कोई टुयुनिंग नहीं बैठ पाई। बीस साल निरंतर, बहुत दफा ऑलिवर लाज ने खटखटाया उन लोगों को, जिनसे उसने वादा किया था। कि मैं खबर दूँगा। मैं मरते ही पहला काम यह करूंगा कि कुछ खबर दे दूँ। उसकी सारी तैयारी करवाई गई थी कि वह खबर दे सकेगा। जैसे नींद में सोए हुए आदमी  को वह—हड़बड़ा कर, घबरा कर उसका साथी बैठ जाएगा। उसे लगेगा कि ऑलिवर लाज कही पास में है। और फिर बात खत्‍म हो जाएगी।
      टुयुनिंग नहीं बैठ पाई। ऑलिवर लाज तैयार गया, लेकिन कोई दूसरा आदमी तैयार नहीं था इस योग्‍य, जो ऑलिवर लाज कुछ कहे तो उसे पकड़ लें। बीस साल तक निरंतर चेष्‍टा करता रहा। न मालूम कितनी दफे रास्‍ते में अकेले में कोई जा रहा है, एक दम कंधे पर हाथ रख दें। मित्र जो कि ऑलिवर लाज के हाथ का स्‍पर्श जानते थे। वे एकदम चौंक कर कहते की लाज। लेकिन सब बात खत्‍म हो जाती। बीस साल, उसके साथी तो घबरा गये। और परेशान हो गए कि यह क्‍या हो रहा है। लेकिन कोई संदेश नहीं आया। एक भी संदेश नहीं दिया जा सका। संदेश कुछ नहीं हो सका, हालाकि उसने द्वार बहुत खटखटाएं।
      दोहरी तैयारी चाहिए। अगर टेलीपैथी का ठीक अनुभव हुआ हो जीते जी, बिना शब्‍द के बोलने की क्षमता आई हो। बिना आँख के देखने की क्षमता आई हो। तो फिर उस योनि में भी उस तरह का व्‍यक्‍ति बहुत चीजें जान सकेगा। जानना भी सिर्फ हमारे होने पर निर्भर नहीं होता।
      जैसे हम एक बग़ीचे में जाएं, और एक वनस्‍पति शास्‍त्री भी उस बग़ीचे में जाए, और एक कवि भी उस बग़ीचे में जाए। एक दुकानदार भी उस बग़ीचे में जाये। एक छोटा बच्‍चा भी उस बग़ीचे में जाए। वे सब एक ही बग़ीचे में है। लेकिन एक ही बग़ीचे में नहीं होते। दुकानदार बैठ कर अपनी दूकान की बातें सोचने लगेगा। कवि अपनी कल्‍पना में खो जायेगा। वनस्पति शास्‍त्री कुछ जानता है जिसकी उसकी ट्रेनिंग है भारी—पचास साल या बीस साल या तीस साल उसने वनस्‍पति की जो जानकारी ली है। वह उससे बोलना शुरू कर देगा। वह एक-एक जड़, एक-एक पत्‍ते और एक-एक फूल में उसे दिखाई पड़ने लगता है, बहुत कुछ, जो इनमें से किसी को दिखाई नहीं पड़ सकता है।
      तो उस लोक में, जो ऐसे ही मर जाते है इस जीवन में शरीर के अतिरिक्‍त बिना कुछ जाने, उनका तो कोई परिचय, कोई संबंध, कुछ नहीं हो पाता। वे तो एक कोमा में, एक गहरी तंद्रा में पड़े रह कर नये जन्‍म की प्रतीक्षा करते है। लेकिन जो कुछ तैयारी करके जाते है।
      इसकी तैयारी के भी शास्‍त्र है। और मरने के पहले अगर कोई वैज्ञानिक ढंग से मरे, विज्ञान पूर्वक मरे, और मरने की पूरी तैयारी करके मरे, पूरा पाथेय लेकर, मरने के बाद के पूरे सूत्र लेकि कि क्‍या–क्‍या करेगा। तो बहुत काम कर सकता है। विराट अनुभव की संभावनाएं वहां है। लेकिन साधारणत: नहीं। साधारणत: आदमी मरा, अभी जन्‍म जाए कि वर्षों बाद जन्‍मे। वह इस बीच से कुछ भी लेकिन कुछ भी करके नहीं आता है। और सीधे संवाद की कोई संभावना नहीं है। कोई संभावना नहीं है।
ओशो
मैं कहता आंखन देखी,
प्रवचन—4
(संस्‍करण-1996)

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