तीसरी विधि:
‘हे प्रिये, ज्ञान और अज्ञान, अस्तित्व और अनस्तित्व पर ध्यान दो। फिर दोनों को छोड़ दो ताकि तुम हो सको।’
ज्ञान और अज्ञान, अस्तित्व और अनस्तित्व पर ध्यान दो।
जीवन के विधायक पहलू पर ध्यान करो और ध्यान को नकारात्मक पहलू पर ले जाओ, फिर दोनों को छोड़ दो क्योंकि तुम दोनों ही नहीं हो।
फिर दोनों को छोड़ सको ताकि तुम हो सको।
इसे इस तरह देखो: जन्म पर ध्यान दो। एक बच्चा पैदा हुआ, तुम पैदा हुए। फिर तुम बढ़ते हो, जवान होते हो—इसे पूरे विकास पर ध्यान दो। फिर तुम बूढ़े होते हो। और मर जाते हो। बिलकुल आरंभ से, उस क्षण की कल्पना करो जब तुम्हारे पिता और माता ने तुम्हें धारण किया था। और मां के गर्भ में तुमने प्रवेश किया था। बिलकुल पहला कोष्ठ। वहां से अंत तक देखो, जहां तुम्हारा शरीर चिता पर जल रहा है। और तुम्हारे संबंधी तुम्हारे चारों और खड़े है। फिर दोनों को छोड़ दो, वह जो पैदा हुआ और वह जो मरा। वह जो पैदा हुआ और वह जो मरा। फिर दोनों को छोड़ दो और भीतर देखो। वहां तुम हो, जो न कभी पैदा हुआ और न कभी मरा।
‘ज्ञान और अज्ञान, अस्तित्व और अनस्तित्व....फिर दोनों को छोड़ दो, ताकि तुम हो सको।’
यह तुम किसी भी विधायक-नकारात्मक घटना से कर सके हो। तुम यहां बैठे हो, मैं तुम्हारी और देखता हूं। मेरा तुमसे संबंध होता है। जब मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं तो तुम नहीं रहते और मेरा तुमसे कोई संबंध नहीं हो पाता। फिर संबंध और असंबंध दोनों को छोड़ दो। तुम रिक्त हो जाओगे। क्योंकि जब तुम ज्ञान और अज्ञान दोनों का त्याग कर देते हो तो तुम रिक्त हो जाते हो।
दो तरह के लोग है। कुछ ज्ञान से भरे है और कुछ अज्ञान से भरे है। ऐसे लोग है जो कहते है कि हम जाने है;उनका अहंकार उनके ज्ञान से बंधा हुआ है। और ऐसे लोग है जो कहते है, ‘हम अज्ञानी है।’वे अपने अज्ञान से भरे हुए है। वे कहते है कि ‘हम अज्ञानी है’, हम कुछ नहीं जानते। एक ज्ञान से बंधा हुआ है और दूसरा अज्ञान से, लेकिन दोनों के पास कुछ है, दोनों कुछ ढो रहे है।
ज्ञान और अज्ञान दोनों को हटा दो, ताकि तुम दोनो से अलग हो सको। न अज्ञानी, न ज्ञानी। विधायक और नकारात्मक दोनों को हटा दो। फिर तुम कौन हो? अचानक वह ‘कौन’ अचानक वह कौन तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा। तुम उस अद्वैत के प्रति बोधपूर्ण हो जाओगे जो दोनों के पार है। विधायक और नकारात्मक दोनों को छोड़कर तुम रिक्त हो जाओगे। तुम कुछ भी नहीं रहोगे, न ज्ञानी और न अज्ञानी। घृणा और प्रेम दोनों को छोड़ दो। मित्रता और शत्रुता दोनों को छोड़ दो। और जब दोनों ध्रुव छूट जाते है, तुम रिक्त हो जाते हो।
और यह मन की एक चाल है। वह छोड़ तो सकता है। लेकिन दोनों को एक साथ नहीं। एक चीज को छोड़ सकता है। तुम अज्ञान को छोड़ सकते हो। फिर तुम ज्ञान से चिपक सकते हो हो। तुम पीड़ा को छोड़ सकते हो। फिर तम सुख को पकड़ लोगे। तुम शत्रुओं को छोड़ दोगे तो मित्र को पकड़ लोगे। और ऐसे लोग भी है जो बिलकुल उलटा करेंगे। वे मित्रों को छोड़कर शत्रुओं को पकड़ लेंगे। प्रेम को छोड़ कर घृणा को पकड़ लेंगे। धन को छोड़कर निर्धनता को पकड़ लेंगे और ज्ञान तथा शास्त्रों को छोड़कर अज्ञान से चिपक जाएंगे। ये लोग बड़े त्यागी कहलाते है। तुम जो कुछ भी पकड़े हो वे उसे छोड़कर विपरीत को पकड़ लेते है। लेकिन पकड़ते वे भी है।
पकड़ ही समस्या है। क्योंकि यदि तुम कुछ भी पकड़े हो तो तुम रिक्त नहीं हो सकते। पकड़ो मत। इस विधि काय हीं संदेश है। किसी भी विधायक या नकारात्मक चीज को मत पकड़ो क्योंकि न पकड़ने से ही तुम स्वयं को खोज पाओगे। तुम तो हो ही, पर पकड़ के कारण छिपे हुए हो। पकड़ छोड़ते ही तुम उघड़ जाओगे। प्रकट हो जाओगे।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—पांच,
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